हिंदू धर्म में देवी माता के अलग-अलग रूपों का वर्णन मिलता है। इन सभी देवियों की सवारियां भी अलग-अलग होती हैं। कोई देवी माता शेर पर तो कोई घोड़े पर सवारी करती हैं। किसी की सवारी हाथी तो किसी की उल्लू मानी जाती है। आज हम आपको एक ऐसी ही देवी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी सवारी वैशाखनंदन यानी गधा है।
गधे की सवारी करने वाली माता का नाम शीतला देवी है। माता शीतला को रोग नाशक माना गया है। माता की पूजा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को माता शीतला का पूजन बेहद फलदाई माना गया है। माता के पूजन से हर प्रकार की बीमारियों का अंत हो जाता है। आइए जानते हैं कि माता शीतला की सवारी इतनी अनोखी क्यों है।
कैसा है मां का स्वरूप?
स्कंद पुराण के अनुसार, शीतला माता गधे की सवारी करती हैं। वे अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू धारण करती हैं। इसके साथ ही वे नीम के पत्तों की माला भी पहनती हैं।
क्यों है मां की सवारी गधा?
देवी शीतला को रोग नाशक माना जाता है। माता गधे की सवारी करती हैं। गधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक होती है। वह हर प्रकार की परिस्थिति में काम कर लेता है। गधा एक साधारण, धैर्यवान जानवर होता है। गधे का जल्दी रोग प्रभावित नहीं करते हैं। इस कारण मां की सवारी गधा बताया गया है।
इस कारण रखती हैं झाड़ू और कलश
झाड़ू सफाई का प्रतीक होती है और जहां सफाई होती है, वहां रोग नहीं आते हैं। इसके साथ ही झाड़ू नकारात्मक शक्तियों का भी नाश करती है। यही कारण है कि मां के एक हाथ में हमेशा झाड़ू रहती है।
माता के दूसरे हाथ में जल कलश होता है, ऐसा इस कारण है क्योंकि कलश में जल शुद्धता और शीतलता का प्रतीक है। माता सिर्फ रोगों का नाश नहीं करती हैं बल्कि स्वस्थ जीवन का वरदान भी देती है। इस कारण कलश को जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक माना गया है।
नीम की पत्तियों की माला
नीम को आयुर्वेद में रोग नाशक माना जाता है। यह एक औषधि है। इस कारण माता गले में नीम के पत्तों की माला धारण करती हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।