Rath Yatra 2025: जगत के नाथ यानी जगन्नाथ, जिन्हें महाप्रभु, दारुमूर्ती, चौक्का आंखी, कालिया और न जानें कितने ही अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उनके बारे में अगर आप नहीं जानते हैं, तो जान लीजिए। प्रभु जगन्नाथ कलियुग के देवता हैं, जो अपनी अधूरी मूर्ति के साथ ही भक्तों को भर-भर के आशीर्वाद देते हैं। उनका मुख्य मंदिर भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा में स्थापित है। ओडिशा का पुरी जिला, श्रीमंदिर के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ के महीने में रथयात्रा मनाई जाती है।
यह यात्रा दुनिया में किसी भी देवी-देवता की यात्रा की तुलना में सबसे ज्यादा भव्य और विशालकाय होती है। हालांकि, देश के कई राज्यों समेत कई देशों में इस पर्व को मनाया जाता है लेकिन यहां हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं। 11 जून को महाप्रभु को स्नान पूर्णिमा के अवसर पर 108 कलश के पानी से नहलाया गया था, अब वह अनवसर काल में चले गए हैं। इसका मतलब है कि वे अब बीमार हो गए हैं। जब वे बीमार होते हैं, तो इस समय उनकी “ज्वरलीला” देखने को मिलती है।
भावना से जुड़ा है ज्वरलीला का संबंध
भगवान जगन्नाथ की ज्वरलीला को अत्यंत भावनात्मक और रहस्यमय लीला कहा जाता है, जो भगवान जगन्नाथ के वार्षिक रथ यात्रा उत्सव से जुड़ी हुई है। यह लीला अनवसर काल के समय होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रभु जगन्नाथ इस समय अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ बीमार हो जाते हैं। वह आराम मुद्रा में चले जाते हैं और भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं। इस दौरान मुख्य पुजारी “पंडा” और मुख्य सेवक “दायतापति” ही प्रभु की सेवा करते हैं। उन्हें भोग में औषधि, काढ़ा जैसी चीजें दी जाती हैं। वहीं, दायतापति उन्हें लेप लगाकर उनकी सेवा करते हैं, ताकि उनके शरीर की पीड़ा कम हो सके।
दायतापति करते हैं सेवा
दायतापति भगवान जगन्नाथ की सेवा में लगे सेवकों का वर्ग होता है। अनवसर काल में केवल मुख्य दायतापति ही उनकी सेवा कर सकते हैं। वे उन्हें इस समय जड़ीबूटियों व औषधीय तेलों से तीनों भाई-बहनों के शरीर की मालिश करते हैं। दरअसल, बुखार की वजह से भगवान के बदन में दर्द होता है, जिसे कम करने के लिए ये किया जाता है।
ज्वरलीला में शरारतें करते हैं भगवान
मुख्य पुजारी कहते हैं प्रभु बाकी दिनों में तो भोग ग्रहण कर लेते हैं लेकिन अनवसर काल के दौरान वे भी बच्चों की भांति दवा खाने से मना करते हैं। खासतौर पर छोटी बहन सुभद्रा जड़ीबूटी और काढ़ा पीने में थोड़े नखरे करती है। वहीं, जगन्नाथ जी भी अपने स्वादिष्ट और 56 भोग में परोसी जाने वाले खाद्य पदार्थ को खाने की जिद करते हैं। मगर बीमार होने की वजह से उन्हें सिर्फ सादा और हल्का भोजन दिया जाता है। जब बड़े भइया दाऊ की डांट पड़ती है, तो उसके बाद फिर दोनों भाई-बहन चुपचाप दवा और भोजन पान कर लेते हैं। ये सभी एकांत वास में होने वाली लीलाएं है, जो भगवान जगन्नाथ करते हैं।
View this post on Instagram
माना जाता है कि भगवान की ये लीलाएं उन्हें जीवंत बनाती है और वह सिर्फ मूर्ति के रूप में वहां विराजमान नहीं है, यह बताती हैं। इसलिए, उन्हें कलियुग के भगवान कहा जाता है। जब वे ठीक हो जाएंगे, तो 15 दिनों बाद अपने रथ “नंदीघोष” पर सवार होकर भक्तों से मिलने जाएंगे। इस यात्रा में वह सबसे पहले अपनी मौसी के घर जाएंगे और फिर वहां से आगे बढ़कर श्री “गुंडिचा मंदिर” में जाएंगे। गुंडिचा मंदिर में वह छुट्टियां मनाने और अपने बालपन की यादों को ताजा करने जाते हैं।
अनवसर काल के बाद नए अवतार में दिखते हैं प्रभु
महाप्रभु जगन्नाथ को स्नान के बाद गजानन वेश में सुसज्जित किया जाता है। उनके इस अवतार को गणेश जी से मिलता-जुलता बनाया जाता है। स्नान के बाद पहंडी और मंगल आरती के साथ कार्यक्रम की शुरुआत होती है। कल यानी 11 जून से 8 जून तक रथयात्रा और उससे जुड़े अन्य रीति-रिवाज मनाए जाएंगे। वहीं, रथ यात्रा 27 जून को मनाई जाएगी।
ये भी पढ़ें: पैर घसीटकर चलना शुभ है या अशुभ, कौन ग्रह है जिम्मेदार; जानें क्या कहता है सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।