Ramayana Story: महाराज दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र, भगवान राम, अपनी नवविवाहिता पत्नी देवी सीता के साथ जनकपुरी से लौटे थे. अयोध्या की नगरी उस समय दीपों और फूलों से जगमगा रही थी. उनके आगमन का शहरवासियों ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया. सबने पुष्पों की वर्षा की, और नगर के गलियों में उत्सव की धूम मच गई. राम और सीता का यह मिलन केवल विवाह का उत्सव नहीं था, बल्कि प्रेम, श्रद्धा और परिवार के बंधन का प्रतीक भी था. राजमहल में आनंद की लहर दौड़ रही थी.
कुछ दिनों बाद परंपरा के अनुसार नववधू सीता की ‘मुंह दिखाई’ की रस्म रखी गई. यह रस्म केवल एक रीत नहीं थी, बल्कि नववधू और ससुराल वालों के बीच प्रेम और सम्मान का प्रतीक थी. नववधू पहली बार अपना घूंघट हटाकर परिवार के बड़ों के सामने अपने चेहरे को प्रस्तुत करती थी. बदले में उन्हें आशीर्वाद और उपहार मिलते थे.
मुंह दिखाई की रस्म
राजमहल के भव्य अंत:पुर में रस्म का आयोजन हुआ. सीता जी सज-धज कर एक सुंदर आसन पर बैठीं. एक-एक कर राजपरिवार की महिलाएं और राम की सखियां आईं. उन्होंने सीता को रत्न जड़ित आभूषण, सुंदर वस्त्र और सोने-चांदी के बर्तन उपहार स्वरूप दिए. सीता जी ने सबका सम्मान करते हुए उन्हें धन्यवाद दिया और आशीर्वाद ग्रहण किया. यह दृश्य अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण था.
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माताओं ने दिए ये अनमोल उपहार
माता कौशल्या: उन्होंने राम का हाथ सीता के हाथ में देकर पूरे राजपरिवार की जिम्मेदारी सीता के भरोसे सौंप दी.
माता सुमित्रा: उन्होंने अपने पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न को सीता जी की सेवा और संरक्षण के लिए समर्पित किया.
माता कैकेयी: उन्होंने सीता को मुंह दिखाई के अवसर पर एक भव्य सोने का महल भेंट में दिया, जिसे ‘कनक भवन’ कहा जाता था.
राम की अनूठी भेंट
अंत में जब बारी आई श्री राम की, तो सबकी निगाहें उन पर टिक गईं. सभी उत्सुक थे कि युवराज अपनी पत्नी को क्या अनमोल उपहार देंगे. क्या वह कोई रत्न या कीमती वस्तु होगी?
राम अत्यंत शांत और सौम्य भाव से सीता के सामने आए. उनके चेहरे पर मुस्कान थी, जिसमें प्रेम और समर्पण झलक रहा था. उन्होंने सीता का घूंघट धीरे से उठाया. सीता ने शालीनता से अपनी आंखें झुका लीं. फिर राम ने सीता के हाथों को अपने हाथ में लिया और किसी भौतिक वस्तु की बजाय उन्हें अमूल्य वचन दिया.
राम ने कहा, “हे सीते, आज इस मुंह दिखाई की रस्म पर मैं तुम्हें वह देता हूँ जो मेरे पास सबसे मूल्यवान है. मेरा हृदय और अटूट वचन.”
उन्होंने वचन दिया:
“सीते, आज से मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि इस जीवन में, और किसी भी भावी जीवन में, मैं तुम्हारे अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करूंगा. मेरा प्रेम और मेरा वैवाहिक बंधन केवल और केवल तुम्हारे लिए समर्पित रहेगा. मैं ‘एक पत्नी व्रत’ (एक ही पत्नी का व्रत) का पालन करूंगा, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों.”
यह वचन उस युग में अत्यंत अद्भुत और क्रांतिकारी था, क्योंकि तब राजा, स्वयं उनके पिता दशरथ, अनेक विवाह करते थे.
सीता की प्रसन्नता
राम का यह वचन सुनकर राजमहल में उपस्थित सभी लोग चकित रह गए. कुछ क्षण के बाद हर्ष की लहर दौड़ गई. सीता की आंखों में प्रेम और आभार के आंसू छलक उठे. उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने केवल पति नहीं पाया, बल्कि ऐसा जीवनसाथी पाया है जो प्रेम में निस्वार्थ और वचनबद्ध है.
उनके लिए राम का यह प्रेम भौतिक उपहारों से कहीं अधिक मूल्यवान था. सीता ने हाथ जोड़कर अपने पति का धन्यवाद किया. उनकी चुप्पी में गहरा विश्वास और संतोष छिपा था.
मर्यादा पुरुषोत्तम का आदर्श
भगवान राम का यह काम केवल वैवाहिक प्रेम नहीं दिखाता था. यह उनके चरित्र की महानता का प्रमाण था. उन्होंने यह सिद्ध किया कि रिश्तों की मर्यादा और वचन की पवित्रता किसी भी राजसी सुख या परंपरा से ऊपर है. राम ने व्यक्तिगत इच्छाओं पर वैवाहिक मर्यादा को प्रधानता दी.
उन्होंने स्त्री के सम्मान को सर्वोच्च स्थान दिया. यही कारण है कि उन्हें “मर्यादा पुरुषोत्तम” की उपाधि मिली. उनके इस आदर्श से यह सिखने को मिलता है कि प्रेम केवल भावनाओं का नाम नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण और वचनबद्धता का भी नाम है.
सीता-राम का पवित्र बंधन
यह मुंह दिखाई की रस्म केवल एक विवाहिक आयोजन नहीं थी. यह उस आधारशिला की स्थापना थी जिस पर राम और सीता का पवित्र संबंध खड़ा हुआ. राम ने सीता को प्रेम, विश्वास और आजीवन वफादारी दी.
यह घटना आज भी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और सम्मान भौतिक धन से कहीं अधिक मूल्यवान होता है. राम का चरित्र बच्चों और बड़ों के लिए आदर्श है- एक आदर्श पति, पुत्र और राजा.
सीख और संदेश
भगवान राम और देवी सीता की यह कहानी आज भी हमारे जीवन में आदर्श रूप से कार्य करती है. यह हमें सिखाती है कि रिश्तों की मर्यादा और प्यार की पवित्रता हमेशा सर्वोपरि होनी चाहिए. यह कथा यह भी सिखलाती है:
– सच्चा प्रेम वचनबद्धता में छिपा है.
– परंपरा और भौतिक चीजों से बढ़कर सम्मान और विश्वास महत्वपूर्ण हैं.
– मर्यादा और धर्म का पालन ही महानता का मार्ग है.
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