Mahabharat Story: कौरवों के पास भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और कर्ण जैसे महान योद्धा थे। श्रीकृष्ण की सेना भी कौरवों के साथ थी, फिर भी पांडवों ने महाभारत युद्ध जीता। भीष्म पर यह आरोप भी लगे थे कि उन्होंने अपनी पूरी शक्ति से पांडवों का अंत नहीं किया, इसलिए वे पांडवों का वध करने में विफल रहे। कहते हैं, तब भीष्म ने पांचों पांडवों को मारने के लिए सोने के खास 5 तीर तैयार किए थे। लेकिन दुर्योधन की एक गलती के कारण महाभारत की पूरी बाजी पलट गई। आइए जानते हैं, भीष्म पितामह, 5 सोने के तीर और महाभारत की एक अनूठी कहानी…
युद्ध होते बीत चुके थे 10 दिन
भीष्म पितामह के नेतृत्व में महाभारत युद्ध शुरू हुए 10 दिन हो चुके थे। भीष्म इतने निपुण योद्धा थे कि एक ही दिन में हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया करते थे। हालांकि, भीष्म 10 दिनों से पांडव सेना पर भारी पड़े थे, लेकिन अभी तक कोई पांडव हताहत नहीं हुआ था। इससे दुर्योधन के मामा शकुनि ने दुर्योधन से कहा। “भांजे, पितामह पांडवों से बहुत प्रेम करते हैं। वे उन्हें मारना ही नहीं चाहते हैं, अन्यथा उनके जैसे शस्त्र ज्ञाता और धनुर्विद्या में निपुण महायोद्धा के लिए ये बहुत बड़ी बात नहीं थी।”
दुर्योधन भी इस बात को समझता था और भीष्म पितामह से खुश नहीं था। शकुनि ने दुर्योधन को भीष्म से सीधे बात करने का विचार दिया। उसकी सलाह पर दुर्योधन आधी रात में भीष्म के शिविर में पहुंचा।
दुर्योधन ने भीष्म को दिया उलाहना
बेवक्त अपने शिविर में दुर्योधन को आया देख भीष्म हैरान और चिंतित हुए। उन्होंने दुर्योधन से आने का कारण पूछा। दुर्योधन ने बहुत रूखे और क्रोधित शब्दों में कहा, “मुझे तो लगता है कि आप केवल लड़ने का अभिनय कर रहे हैं। आपका पांडवों से प्रेम गया नहीं है। आप जिसने परशुराम तक को हराया है, आपके लिए ये पांडव क्या चीज हैं।”
उसने यह भी कहा कि युद्ध को 10 दिन हो गए हैं, लेकिन एक भी पांडव का वध नहीं कर पाए हैं। ऐसा लगता है, आप मेरे पक्ष में होकर भी मेरे कम और पांडवों के अधिक हैं। आपको अपनी कर्तव्यनिष्ठा याद नहीं है।
भीष्म ने अभिमंत्रित किए 5 स्वर्ण बाण
दुर्योधन से ऐसी बातें सुनकर भीष्म के दिल को बहुत चोट लगी। वे दुखी बहुत हो गए, लेकिन हस्तिनापुर राज्य के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा से बंधे हुए थे। वे दुर्योधन से बोले, “तुम व्यर्थ में मेरी कर्तव्यनिष्ठा पर संदेह करते हो। मैं कल एक ही दिन में पांचों पांडवों को खत्म कर दूंगा।”
इसके बाद भीष्म ने अपने शस्त्र भंडार में से 5 स्वर्ण बाण (सोने से बने तीर) निकाले और अपनी विशेष धनुर्विद्या मंत्र से उन सोने के तीरों को अभिमंत्रित कर दिया। वे बोले, ‘दुर्योधन, कल पांडवों का अंतिम दिन होगा और उनकी मृत्यु के बाद युद्ध का परिणाम तुम्हारे पक्ष में होगा।”
दुर्योधन ने भीष्म से ले लिए वे बाण
अब दुर्योधन बहुत खुश था, लेकिन उसे शकुनि की बाद याद थी। उसे अभी भी शक था कि कहीं सुबह होते-होते भीष्म का इरादा न बदल जाए। उसने भीष्म से कहा, “पितामह, मुझे अभी भी संदेह है कि जब आपके पास पांडवों को मारने का समय होगा, तब मोह में पड़ सकते हैं। इसलिए अभी ये बाण आप मुझे दीजिए। मैं युद्धभूमि में उचित समय आपको ये पांचों बाण लौटा दूंगा। तब आप मेरे सामने पांडवों का वध कर देना।”
दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म एक बार फिर दुखी हो गए। उन्होंने वे पांचों बाण दुर्योधन को दे दिए। दुर्योधन बहुत बहुत खुश था लेकिन उसे नियति का खेल पता नहीं था।
श्रीकृष्ण की तत्परता ने किया कमाल
श्रीकृष्ण के गुप्तचर युद्ध क्षेत्र के चप्पे-चप्पे में फैले हुए थे। संयोगवश भीष्म और दुर्योधन की ये बातें श्रीकृष्ण एक गुप्तचर ने सुन ली थीं। उसने श्रीकृष्ण को इसकी सूचना दी।
तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “हे अर्जुन, तुम अभी दुर्योधन के पास जाओ और पांचों बाण मांग लो।” अर्जुन भौचक हो गए कि दुर्योधन वो तीर उसे क्यों देने लगा। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि कैसे अर्जुन ने एक बार यक्ष और गंधर्वों के हमले से दुर्योधन की जान बचाई थी। तब दुर्योधन ने खुश होकर कहा था कि अर्जुन जो चाहे कीमती वस्तु उससे मांग सकता है। लेकिन उस दिन अर्जुन ने दुर्योधन से कुछ नहीं मांगा था। श्रीकृष्ण के याद दिलाने पर अर्जुन को भी इस घटना का स्मरण हो आया।
जब अर्जुन ने मांगे वो पांचों बाण…
अर्जुन दुर्योधन के शिविर में पहुंचे। दुर्योधन अर्जुन को अपने शिविर में देखकर चौकन्ना हो गया, फिर भी शिष्टाचार वश उसने अर्जुन से आने का कारण पूछा। अर्जुन ने आने का कारण बताते हुए दुर्योधन से ‘वही पांच बाण’ मांगे। इस पर दुर्योधन ने साफ-साफ मना कर दिया। तब अर्जुन ने दुर्योधन को यक्ष और गंधर्वों के हमले से उसकी जान बचाने की घटना की याद दिलाई। अर्जुन ने दुर्योधन को अपना क्षत्रिय धर्म निभाने के लिए कहा।
अब दुर्योधन वचनबद्ध था और उसे बड़ा पछतावा हुआ। अर्जुन की बातें सुनकर दुर्योधन ने पांचों बाण अर्जुन को दे दिए। इस तरह से भीष्म से अभिमंत्रित सोने के बाण लेने की गलती दुर्योधन पर भारी पड़ी। श्रीकृष्ण की तत्परता से पांडवों की मौत टल गई, नहीं तो 11वें दिन ही महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया होता।
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