Maa Durga Murti: नवरात्रि के शुरू होते ही मां दुर्गा की मिट्टी से बनी मूर्तियों की मांग भी बढ़ जाती है. इस बार 22 सितंबर 2025 से शारदीय नवरात्रि पर्व का आरंभ हो रहा है, लेकिन मां दुर्गा की प्रतिमाएं महीनों पहले बननी शुरू हो जाती हैं. यूं तो नवरात्रि पूरे देश के लिए खास उत्सव है, लेकिन कोलकाता में मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. इसलिए मां दुर्गा की सबसे ज्यादा प्रतिमाएं भी कोलकाता में ही बनती हैं. हालांकि, यहां प्रतिमाओं को बनाने के लिए एक खास और अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसके बारे में हम आपको आज बताने जा रहे हैं.
वेश्याओं के घर से लाई जाती है मिट्टी
उत्तरी कोलकाता में कुमारतुली नामक एक प्रसिद्ध और पारंपरिक कुम्हारों की बस्ती है, जो मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. खासकर दुर्गा पूजा के लिए माता दुर्गा की मूर्तियां बनाने के लिए. यह इलाका हुगली नदी के किनारे स्थित है, जो करीब 150 परिवारों और उनकी कार्यशालाओं का घर है. बता दें कि यहां माता दुर्गा की जो मूर्तियां बनाई जाती हैं, उसकी पहली मिट्टी वेश्याओं के घर से लाई जाती है.
ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्रि 2025: जानिए किस वाहन पर सवार होकर आएंगी जगतजननी?
काफी पवित्र होती है ये मिट्टी
मान्यता है कि वेश्याएं जब अपना घर छोड़ती हैं तो उनकी “अच्छाई” आत्मा में समा जाती है और वो अपनी पवित्रता पीछे छोड़ जाती हैं. इसलिए उनके घर की मिट्टी काफी पवित्र होती है, जिसे ‘पुण्या माटी’ और ‘पवित्र मिट्टी’ भी कहा जाता है.
मूर्तिकार खुद वेश्याओं के घर जाते हैं और आदरपूर्वक विनती करके उनसे मिट्टी लेकर आते हैं. लोगों का मानना है कि यह न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि समाज में वेश्याओं को सम्मान और स्थान देने का प्रतीक भी है.
महालया के दिन बनाई जाती हैं आंखें
मूर्तियों को नवरात्रि से काफी समय पहले ही बना लिया जाता है, लेकिन उनकी आंखें नहीं बनाई जाती हैं. महालया के दिन मूर्तियों की आंखें बनाने की रस्म की जाती है, जिसे चौखूदान कहा जाता है. यह अनुष्ठान माता रानी को धरती पर आने का निमंत्रण देता है. यह वो ही क्षण होता है, जब मूर्तियां केवल मिट्टी की प्रतिमा नहीं रहतीं बल्कि उनमें शक्ति और भाव समा जाता है.
ये भी पढ़ें- Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि में राशि अनुसार करें ये उपाय, जगतजननी पूरी करेंगी हर इच्छा