Kaal Bhairav Jayanit 2025: भगवान काल भैरव भगवान शिव के एक उग्र और शक्तिशाली रूप हैं. उन्हें समय और मृत्यु का स्वामी कहा गया है. वे भयानक रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य भय को दूर करना और बुरी शक्तियों का नाश करना है. काल भैरव को शिव के ऐसे अवतार के रूप में माना जाता है जो संकट, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट आत्माओं से रक्षा करते हैं. उनके नाम का अर्थ भी यही बताता है, ‘काल’ यानी समय और ‘भैरव’ यानी भय का निवारण करने वाला. वे भक्तों के रक्षक माने जाते हैं, जो जीवन से भय और संकट को दूर करते हैं.
भगवान काल भैरव की जयंती हर वर्ष मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. वर्ष 2025 में यह पर्व बुधवार, 12 नवंबर को मनाया जा रहा है. भगवान भैरव का स्वरूप भयंकर होते हुए भी अत्यंत कल्याणकारी है. उन्हें खोपड़ियों की माला पहने, त्रिशूल धारण किए और काले कुत्ते पर सवार दिखाया जाता है. आइए जानते हैं इस शुभ अवसर पर पूजा का मुहूर्त, उनकी उत्पत्ति से जुड़ी कथा, आरती और मंत्र.
काल भैरव की पूजा से मिलता है ये फल
भगवान काल भैरव की आराधना संकटों और भय से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है. उनकी पूजा से जीवन में रुके हुए कार्य पूरे होते हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है. भक्तों में साहस, आत्मबल और निडरता का संचार होता है. यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से भैरव जी की उपासना करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है.
काल भैरव की पूजा का शुभ मुहूर्त
काल भैरव की पूजा प्रायः मध्यरात्रि में की जाती है, क्योंकि यह समय अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है. हालांकि भक्त अपनी सुविधा के अनुसार दिन में भी पूजा कर सकते हैं. प्रमुख शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं (इन समयों में पूजा, दीपदान और आरती करना विशेष फलदायी माना गया है):
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:55 ए एम से 05:48 ए एम
- अभिजित मुहूर्त: 11:43 ए एम से 12:27 पी एम
- विजय मुहूर्त: 01:53 पी एम से 02:36 पी एम
- गोधूलि मुहूर्त: 05:29 पी एम से 05:56 पी एम
- अमृत काल: 12:01 पी एम से 01:35 पी एम
- निशिता मुहूर्त: 11:39 पी एम से 12:32 ए एम (12 नवम्बर की रात्रि)
ऐसे हुई काल भैरव की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय देवताओं के बीच यह विवाद हुआ कि ब्रह्मांड का सर्वोच्च देवता कौन है. इस विवाद में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव का अपमान कर दिया. यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए. उसी समय उनके क्रोध से उनके ललाट यानी माथे से काल भैरव की उत्पत्ति हुई.
काल भैरव ने अहंकार से भरे ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को अपने नाखून से अलग कर दिया. इस कारण उन्हें ‘ब्रह्महत्या’ का दोष लग गया. इस दोष से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव ने काशी (वाराणसी) में निवास किया. तब से उन्हें काशी का कोतवाल या रक्षक देवता माना जाता है. यह विश्वास है कि बिना उनकी अनुमति के कोई भी व्यक्ति काशी में प्रवेश नहीं कर सकता है.
काल भैरव जी की आरती
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा.
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा..
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक.
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक..
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी.
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी..
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे.
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे..
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी.
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी..
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत.
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत..
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें.
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें..
काल भैरव पूजा मंत्र
काल भैरव की उपासना के लिए इन मंत्रों का जप अत्यंत शुभ माना गया है:
1. ॐ कालभैरवाय नमः
2. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं
3. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन
4. ॐ कालकालाय विद्महे कालतीतया धीमहि तन्नो भैरवः प्रचोदयात्
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