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Jagaddhatri Puja 2025: मां जगद्धात्री कौन हैं, क्यों और कब होती हैं उनकी पूजा; जानें पौराणिक कथा

Jagaddhatri Puja 2025: मां जगधात्री को संपूर्ण सृष्टि का पालनकर्ता माना है. आइए मां जगद्धात्री कौन हैं? कब और क्यों होती हैं उनकी पूजा और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

Author Written By: Shyamnandan Author Published By : Shyamnandan Updated: Oct 28, 2025 14:30
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Jagaddhatri Puja 2025: जगद्धात्री का अर्थ है, ‘जगत की धारक’ यानी वह देवी जो संपूर्ण सृष्टि का पालन करती हैं. यह देवी दुर्गा का ही एक शांत, सौम्य और सात्त्विक रूप है, जिसे मां जगद्धात्री के रूप में पूजा जाता है. इन्हें शक्ति, धैर्य और नियंत्रण की देवी माना जाता है, जो अहंकार और अज्ञान पर विजय दिलाती हैं. आइए जानते हैं, क्यों और कब होती हैं उनकी पूजा और इससे जुडी पौराणिक कथा क्या है.

कब मनाई जाती है जगद्धात्री पूजा?

सनातन पंचांग के अनुसार, मां जगद्धात्री की पूजा हर साल कार्तिक शुक्ल नवमी को की जाती है. साल 2025 में यह तिथि शुक्रवार 31 अक्टूबर, 2025 को पड़ेगी. पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और त्रिपुरा में यह पर्व दुर्गा पूजा के समान ही उत्साह से मनाया जाता है.

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ऐसा है मां जगद्धात्री का रूप

भविष्यपुराण के अनुसार, मां जगद्धात्री का स्वरूप अत्यंत मनोहर और शांत है. वह सिंह पर सवार रहती हैं. उनके हाथों में शंख, चक्र, धनुष और बाण सुशोभित होते हैं. उनके नीचे एक गज यानी हाथी दबा हुआ है. जिसे अहंकार का प्रतीक माना जाता है, जो दर्शाता है कि देवी के समक्ष अहंकार का नाश निश्चित है. उनका लाल वस्त्र शक्ति का प्रतीक है, जबकि त्रिनेत्र यह दर्शाता है कि वह भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनों कालों की अधिष्ठात्री देवी हैं.

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मां जगद्धात्री की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत को अहंकार हो गया और वह शापित होकर एक राक्षस बन गया, जिसे करिन्द्रासुर कहा जाता है. अपने अहंकार में और शक्ति के मद में चूर होकर वह उसने देवी गंगा के रूप-सौन्दर्य से आकर्षित हो गया. उसने देवी गंगाको विवाह का प्रस्ताव दिया, जिसे देवी ने ठुकरा दिया. इसके बाद उसने देवी का हरण करने का प्रयास किया. तब गंगा ने देवी आदिशक्ति की आराधना की. देवी ने जगद्धात्री रूप में अवतार लेकर करिन्द्रासुर का वध किया. करिन्द्रासुर के मारे जाने के बाद वह पापमुक्त होकर पुनः ऐरावत के रूप में स्थापित हुआ. यह कथा बताती है कि मां जगद्धात्री, अहंकार के विनाश और विनम्रता के उदय का प्रतीक हैं.

ऐसे हुई पूजा की शुरुआत

मां जगद्धात्री पूजा की शुरुआत पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के कृष्णनगर में 18वीं शताब्दी में हुई मानी जाती है. कहते हैं, यहां राजा कृष्णचंद्र राय ने दुर्गा पूजा न कर पाने के बाद पश्चाताप-स्वरूप मां जगद्धात्री की आराधना प्रारंभ की. समय के साथ यह परंपरा पूरे बंगाल और पूर्वी भारत में लोकप्रिय हो गई.

रामकृष्ण परमहंस भी थे मां के उपासक

पश्चिम बंगाल के महान संत रामकृष्ण परमहंस जी मां जगद्धात्री के परम भक्त थे. उनके अनुसार, ‘मां जगद्धात्री की उपासना से मनुष्य के भीतर के भय, क्रोध, वासना और अहंकार नष्ट हो जाते हैं.’ उनकी पूजा हमें आत्मनियंत्रण, संतुलन और आध्यात्मिक शांति का संदेश देती है. वास्तव में, जगद्धात्री पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम और आत्मविजय का उत्सव है.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.

First published on: Oct 28, 2025 02:30 PM

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