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Gupt Navratri 2025: आषाढ़ नवरात्रि कल से शुरू, जानें कलश स्थापना का मुहूर्त; दुर्गा सप्तशती पाठ में न करें ये गलतियां

Gupt Navratri 2025: हिंदू धर्म में गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है, जिसमें देवी शक्ति की दस महाविद्याओं की आराधना की जाती है। साल 2025 की आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 25 जून से शुरू हो रही है। आइए जानते हैं, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है और दुर्गा सप्तशती पाठ के दौरान कौन-सी गलतियां नहीं करनी चाहिए?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Shyamnandan Updated: Jun 25, 2025 12:17
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Gupt Navratri 2025: हिन्दू धर्म में मातृ उपासना का विशेष महत्व है। नवरात्रि के 9 दिन मातृ उपासना के सबसे खास दिन माने गए है। इसके लिए साल में कुल 4 नवरात्रि होते हैं, जिनमें से 2 प्रत्यक्ष और 2 गुप्त होते हैं। चैत्र माह की बसंत नवरात्रि और आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि सार्वजनिक यानी प्रत्यक्ष नवरात्रि होते हैं। वहीं, आषाढ़ माह और माघ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 की आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि कल गुरुवार यानी 25 जून से आरंभ हो रही है। यह इस साल की पहली गुप्त नवरात्रि है। इस नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के के अलग-अलग 9 रूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी। इसके साथ ही देवी शक्ति के दस मुख्य स्वरूपों, जिसे दश महाविद्या कहते हैं, के उपासना की जाएगी।

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आपको बता दें कि इन दश महाविद्या की आराधना मुख्य तौर पर गुप्त नवरात्रि में ही की जाती है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष कलश या घट स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है और यदि आप इस पूजा अवसर पर दुर्गा सप्तशती ग्रंथ का पाठ करते हैं, तो कौन-सी गलतियां नहीं करनी चाहिए?

आषाढ़ नवरात्रि घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

धार्मिक रिवाज के मुताबिक, नवरात्रि का विधिवत आरंभ आषाढ़ मास की प्रतिपदा तिथि को घट स्थापना मुहूर्त में कलश स्थापना से होती है। पंचांग के अनुसार, इस बार कलश स्थापना द्वि-स्वभाव वाली मिथुन लग्न के दौरान होना है। इसकी समयावधि बृहस्पतिवार 26 जून को इस प्रकार है:

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  • सुबह में घटस्थापना मुहूर्त 05:25 ए एम से 06:58 ए एम तक है यानी इसकी अवधि 01 घंटा 33 मिनट है।
  • घटस्थापना का दूसरा मुहूर्त 26 जून के अभिजित मुहूर्त में 11:56 ए एम से 12:52 पी एम तक है, जो केवल 56 मिनट की अवधि है।

दुर्गा सप्तशती पाठ के दौरान न करें ये गलतियां

दुर्गा सप्तशती का पाठ एक शक्तिशाली और पुण्यदायी साधना माना गया है और दुर्गा सप्तशती को ‘शक्तिपाठ’ का सर्वोच्च रूप कहा गया है। इस ग्रंथ के पाठ से साधक के जीवन से सभी प्रकार के संकट, भय और बाधाएं अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इसके पाठ से न केवल परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा और दुर्भाग्य का नाश होकर, जीवन में शुभता और सौभाग्य का वास होता है। नवरात्रि में बहुत से साधक और भक्त देवी मां की उपासना 9 दिनों तक दुर्गा सप्तशती ग्रंथ के पाठ से करते हैं। आइए जानते हैं, दुर्गा सप्तशती पाठ के दौरान कौन-सी गलतियां करने से बचना आवश्यक है?

  • दुर्गा सप्तशती का पाठ को करते समय इसे कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए। ज्योतिषाचार्य हर्षवर्धन शांडिल्य बताते हैं कि इस ग्रंथ के पाठ का क्रम सही होना चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले किताब को लाल कपड़े पर रखें और उस पर अक्षत (चावल) और फूल चढ़ाएं। इस बात का ध्यान रखें कि पाठ करते समय किताब को हाथ में लेकर कभी न पढ़ें।
  • पाठ शुरू करने से पहले शिखा अवश्य बांध लेनी चाहिए। इसके बाद पूरब दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठकर 4 बार आचमन करना चाहिए।
  • इसके बाद देवी मां को रोली, कुमकुम, लाल पुष्प, अक्षत और जल अर्पित करके श्रद्धापूर्वक पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
  • पाठ करते समय केवल कुशा या ऊन से बने आसन पर ही बैठें। ध्यान रखें, पाठ के दौरान हाथों से पैरों का स्पर्श न करें।
  • दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करने से पहले ग्रंथ का श्रद्धापूर्वक प्रणाम कर ध्यान करें और फिर पाठ आरंभ करें।
  • हर दिन सबसे पहले अर्गला स्तोत्रम्, कीलक और कवच का पाठ करना चाहिए और फिर मुख्य पाठ की शुरुआत करनी चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती के पाठ में प्रत्येक शब्द का उच्चारण शुद्ध, स्पष्ट और सही प्रकार से होना आवश्यक है। किसी भी शब्द को न उल्टा-पुल्टा बोलें और न ही कोई हेरफेर करें।
  • पाठ के दौरान जब माता किसी राक्षस का वध करती हैं, तो उस जगह पाठ को बीच में न रोकें। प्रसंग पूरा पाठ होने के बाद ही पाठ रोकें।
  • दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय बीच में कभी भी रुकना नहीं चाहिए। एक बार पाठ शुरू करें तो बिना रुके पूरा करना चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती का पाठ के दौरान यदि शौच-नित्य क्रिया आदि लग जाए, तो फिर से नहाकर और शुद्ध वस्त्र धारण पाठ आरंभ करना चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती के पाठ की गति न तो बहुत तेज हो और न ही बहुत धीमी। हमेशा मध्यम गति में ही पाठ करना चाहिए।
  • पाठ समाप्त होने के बाद ग्रंथ को प्रणाम कर सही तरीके से बंद कर उचित स्थान पर रखना चाहिए।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jun 25, 2025 12:17 PM

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