Sankashti Chaturthi 2025: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत मार्गशीर्ष यानी अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान गणेश के विशेष ‘गणाधिप’ स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. गणाधिप शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: गण और अधिप. गण का अर्थ है समूह या दल यानी मुख्य रूप से भगवान शिव के गण और अधिप का मतलब है अधिपति, स्वामी या प्रमुख. इस प्रकार गणाधिप का अभिप्राय गणों के अधिपति या गणों के स्वामी से है. आइए जानते हैं, गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि क्या है? साथ ही यह भी जानते हैं कि हनुमान जी ने यह व्रत क्यों किया था?
हनुमान जी ने किया था यह व्रत
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि यह स्वयं भगवान हनुमान से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान हनुमान ने पक्षीराज सम्पाति के सुझाव पर इस गणाधिप संकष्टी व्रत का विधि-विधान से पालन किया था. कहते हैं, यह व्रत हनुमान जी के लिए अत्यंत पुण्यप्रदायक सिद्ध हुआ. इसी व्रत के प्रभाव से उन्हें वह शक्ति और आत्मविश्वास मिला, जिसके बल पर वे विशाल समुद्र को लांघ कर लंका तक पहुंचने में सफल हुए थे.
असंभव को संभव बनाता है यह व्रत
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत अत्यंत पुण्यप्रदायक माना जाता है. इस दिन भक्तजन एक दिवसीय उपवास का पालन करते हैं. इस व्रत को करने से बाधाओं का नाश, मनोरथ सिद्धि और सौभाग्य-समृद्धि मिलती है.
- बाधाओं का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है. इस व्रत को पूर्ण भक्तिभाव से करने से जीवन की कठिन से कठिन बाधाएं और संकट दूर हो जाते हैं.
- मनोरथ सिद्धि: मान्यता है कि इस उपवास और पूजा से व्यक्ति के कठिन से कठिन मनोरथ और इच्छाएं भी सिद्ध हो जाते हैं.
- सौभाग्य-समृद्धि प्राप्ति: गणेश जी की कृपा से भक्तों को बुद्धि, ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
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कब है गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025?
द्रिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष यानी अगहन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 08 नवम्बर को सुबह 07 बजकर 32 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 09 नवम्बर को सुबह 04 बजकर 25 मिनट पर होगा. चूंकि इस गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत और पूजा का संबंध चंद्रोदय से है, इसलिए साल 2025 में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी शनिवार 8 नवंबर, 2025 को मनाई जाएगी.
गणाधिप संकष्टि चतुर्थी 2025: पूजा का शुभ मुहूर्त
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा शाम में चंद्रमा के उदय के बाद की जाती है. शनिवार, 8 नवंबर को चंद्रोदय का समय संध्याकाल में लगभग 07 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है. व्रतराज ग्रंथ के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय काल में करने से सर्वोत्तम फल प्राप्त होता है.
ऐसे करें गणेश जी की पूजा
संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है. इस दिन मुख्य रूप से ये कार्य किए जाते हैं:
- सूर्योदय से चंद्रोदय तक शुद्ध तन-मन से निराहार या फलाहार व्रत रखें.
- शाम को भगवान गणेश के गणाधिप स्वरूप की विधिवत पूजा करें. उन्हें दूर्वा घास, मोदक, तिल, वस्त्र आदि अर्पित करें.
- संध्याकाल में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन करें.
- चंद्रमा को जल का अर्घ्य अर्पित करके इस व्रत का पारण करें.
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