Chhath Puja 2024: आज छठ पूजा का तीसरा दिन है। इस पूजा की शुरुआत मंगलवार 5 नवंबर को नहाय खाय से हुई थी, वहीं बुधवार को खरना पूजा से छठी मैया का आह्वान किया गया। आज बृहस्पतिवार को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को जल का अर्घ्य देकर उनकी आराधना की जाएगी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को तिथि यह पूजा किए जाने कारण इसे ‘सूर्य षष्ठी पूजन’ भी कहते हैं। लोकप्रिय रूप में इसे ही ‘छठ पूजा’ कहते हैं। आइए 5 पॉइंट में जानते हैं, छठ पूजा का महत्व क्या है?
1. डूबते और उगते सूर्य को नमस्कार
पूरी दुनिया में छठ पूजा एक मात्र ऐसा त्योहार है, जब डूबते हुए यानी अस्ताचलगामी सूर्य को नमस्कार किया जाता है। बता दें कि डूबता हुए सूर्य भले ही कितना खूबसूरत क्यों न हो, उनकी पूजा नहीं की जाती है। लेकिन सनातन धर्म में ढलते सूरज की पूजा का भी विधान है। संध्याकालीन सूर्य षष्ठी पूजन अंधेरा के बाद नए सवेरा के रूप फिर उजाला होने और निराशा पर आशा जीत का प्रतीक है।
2. जमीन से जुड़ाव का पर्व का छठ
छठ स्थानीयता और जमीन से जुड़ाव का पर्व है। छठ पूजा का प्रसाद चाहे वह खरना का की रोटी (सोहारी) हो या खीर हो या फिर डाला और सूप में चढ़ने वाला ठेकुआ, ये सब मिटटी के चूल्हे पर बनाने जाते हैं। इसमें केवल आम की लकड़ी और गाय के गोबर से बने उपले यानी गोएठे का इस्तेमाल होता है। हम कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएं, यह पर्व में हमें अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश देता है।
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वीडियो: छठ में ठेकुआ क्यों चढ़ाते हैं?
3. स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
छठ में ऐसा कोई आइटम नहीं है, जो दूर देश से आयातित हो। कच्चे बांस से बने डाला और सूप स्थानीय कारीगरों के पेशे और आजीविका को बढ़ावा देते हैं। छठ प्रसाद बनाने में प्रयुक्त आटा, मैदा, तेल, घी और शक्कर आदि की खरीद फरोख्त सब स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का काम करते हैं। इस पूजा में जो भी होता है, वो स्थानीय होता है, स्थानीय जरूरतों के मुताबिक़ होता है
4. प्रकृति पूजा का पर्व है छठ
छठ पूजा में जरा-सा भी आडंबर नहीं होता है और न ही कोई भेदभाव होता है। यह प्रकृति पूजा का महापर्व है, जहां हर वस्तु प्रसाद में रूप में विशुद्ध रूप से प्राकृतिक होता है। केला, नारियल, गन्ना, गागर नींबू, सिंघारा, शकरकंद, सुथनी, बालकन, पत्ता सहित हल्दी और अदरक, मूली, केराव (मटर) आदि ये सब स्थानीय और प्राकृतिक उपज हैं। भावार्थ के रूप में कहें तो, तो छठ पर्यावरण और प्रकृति की पूजा है।
5. देता है पर्यावरण संरक्षण का संदेश
छठ महापर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। छठ पूजा नदी, सरोवर, तालाब आदि के किनारे ही संपन्न किए जाते हैं, जो जलाशय और जल का मानव जीवन में क्या महत्व है, इसको स्थापित करता है। बारिश के मौसम के बाद छठ के मौके पर जलाशयों और नदियों के घाटों की सफाई का सुअवसर देता है। इस रूप में छठ जल स्रोतों के स्वच्छता और संरक्षण का महान संदेश देता है।
कहते हैं, महाभारत काल कर्ण ने सूर्य पूजा को स्थापित किया था। वहीं त्रेता युग में माता सीता ने सूर्य षष्ठी पूजन यानी छठ पूजा की थी। कोई परंपरा हजारों सालों से यूं बदस्तूर नहीं चली आती है, जब तक उसमें जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं और मूल्यों की रक्षा नहीं होती हो।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।