केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र-एक चुना (One Nation, One Election)’ के लिए जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया तो सवाल उठने शुरू हो गए कि क्या यह इतना आसान होगा? सवाल है कि किसी वजह से किसी राज्य में सरकार गिर गयी, तब क्या होगा? तब क्या अगले लोकसभा चुनाव तक पुरानी वाली सरकार केअर टेकर की भूमिका में रहेगी या उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगेगा?
एक और सवाल है कि अभी अभी जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनका क्या होगा?
ऐसे ही सवालों के जवाब के लिए आइये लॉ कमीशन के 2018 की उस ड्राफ्ट रिपोर्ट पर नज़र डालते हैं, जिसमें कमीशन ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की जरूरत बताते हुए कहा था कि इससे कई बार चुनाव कराने के चलते सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ में कमी आएगी। चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों की तैनाती और प्रशासन पर बोझ को कम किया जा सकेगा। यही नहीं आयोग ने यह भी कहा था कि एक साथ चुनाव होने से सरकारें और प्रशासन गवर्नेंस और डेवलपमेंट पर अधिक ध्यान दे पाएंगी।
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ कैसे हो पाएगा, इस सम्बंध में लॉ कमीशन के तत्कालीन चेयरमैन जस्टिस बीएस चौहान की अगुवाई में तैयार ड्राफ्ट रिपोर्ट में कुछ सुझाव दिए गए थे।
- जिन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने वाला है उनका कार्यकाल लोकसभा चुनाव तक के लिए बढ़ा दिया जाएगा!
- जिन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा चुनाव के बाद पूरा होने वाला होगा, उनका विधानसभा भंग कर लोकसभा चुनाव के साथ चुनाव करा लिया जाएगा। राज्य सरकारें चाहें तो खुद ही विधानसभा भंग कर सकती हैं, नहीं तो भंग कर दिया जाएगा।
- लॉ कमीशन ने एक और विकल्प दिया था। कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ विधानसभा अपने कार्यकाल के मध्य में है। इन राज्यों की विधानसभा भंग करने जैसी प्रक्रिया से बचने के लिए पूरे देश मे विधानसभा सभा चुनाव दो किश्तों में कराया जा सकता है।
- अविश्वास प्रस्ताव की सूरत में सरकार के गिरने जैसी स्थिति से बचने के लिए लॉ कमीशन की सिफारिश थी कि ऐसी स्थिति में संसद या विधानसभा में ‘अविश्वास प्रस्ताव’ के स्थान पर
‘रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव’ की व्यवस्था की जा सकती है। जिसमें सरकार के खिलाफ़ अविश्वास होने पर उसी स्थिति में सरकार गिरेगी जब वैकल्पिक सरकार के पक्ष में सदन विश्वास व्यक्त करेगा। लॉ कमीशन ने ये भी कहा था कि बार- बार ऐसी स्थिति आने से बचाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की संख्या सीमित कर दी जाएगी। - लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इसके लिए संविधान संशोधन के साथ साथ जनप्रतिनिधित्व क़ानून 1952 में संशोधन और लोकसभा तथा विधानसभा के संचालन से जुड़े रूल ऑफ प्रोसीजर में भी बदलाव करने होंगे। लॉ कमीशन ने ये भी कहा था कि ऐसा संविधान संशोधन को आधे से अधिक यानी कम से कम 50% राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदित होना चाहिए।
- हंग असेंबली या संसद यानी जब किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीट नहीं मिली हो उस सूरत में लॉ कमीशन की राय थी कि सबसे बड़ी पार्टी को उसकी सहयोगी पार्टी/ पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए। अगर फिर भी सरकार नहीं बनती तो समाधान के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाया जा सकता है। अगर किसी भी तरह सरकार नहीं बनती और चुनाव अवश्यम्भावी हो जाता है तब जो चुनाव हो, वह 5 वर्ष के लिए न होकर शेष अवधि के लिए ही होना चाहिए। इसके लिए जरूरी संविधान संशोधन किया जा सकता है।
- नियत अवधि से पूर्व सरकार गिरने की बड़ी वजह दल बदल होता है। इसके लिए लॉ कमीशन ने सलाह दी थी कि दल बदल क़ानून में संशोधन कर यह प्रावधान होना चाहिए कि दल बदल की सूरत में पीठासीन अधिकारी 6 महीने में अयोग्यता पर फैसला ले।
रातों-रात हासिल नहीं किया जा सकता यह लक्ष्य
जस्टिस बीएस चौहान के पहले 1999 में जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अगुवाई में भी लॉ कमीशन ने वन नेशन, वन इलेक्शन की जरूरत बताई थी। तब आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि स्टेबिलिटी इन गवर्नेंस के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जरूरी है, लेकिन प्रत्येक पांच साल में एक साथ चुनाव कराने का यह लक्ष्य रातों-रात हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए कई चरणों में काम करना होगा।
नए शगूफे से छेड़ दी बहस
बीते कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की वकालत मजबूती से करते आए हैं। अब इस पर विचार करने के लिए कमेटी का गठन केंद्र सरकार की गम्भीरता बताता है। नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होंगे। इस बीच लोकसभा के चुनाव होंगे। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लिए संविधान में कई जरूरी संशोधन करने होंगे, राज्यों की सहमति की जरूरत होगी। ऐसे में यह फिलहाल इतना आसान भी नहीं लगता, लेकिन इस नए शगूफे से एक नई बहस जरूर छेड़ दी है।