Healthy Tips: दाल सेहत के लिए काफी लाभकारी मानी जाती है। बच्चा हो या बुजुर्ग, डॉक्टर दाल खाने की सलाह सभी को देते हैं। लेकिन कई बार कुछ लोगों को दाल खाने के बाद गैस, भारीपन, पेट दर्द या बलोटिंग की समस्या होती है। ऐसे में समझ नहीं आता कि ये क्यों हो रहा है।
क्या आप जानते हैं, एक्सपर्ट के अनुसार दालें भी अलग-अलग प्रकार की होती हैं, और हर दाल को भिगोने का समय अलग होता है। अगर आप भी सभी दालों को एक ही तरह से भिगोकर रखते हैं, तो आज से यह गलती करना बंद कर दें।
दाल को सही समय तक भिगोना क्यों जरूरी है?
एक्सपर्ट के अनुसार दाल को सही समय तक भिगोने से उसमें मौजूद फाइटिक एसिड (phytic acid) और एंटी न्यूट्रिएंट्स कम हो जाते हैं, जिससे वह आसानी से पच जाती है और पेट संबंधी समस्याएं नहीं होतीं।
30 मिनट भिगोने वाली दालें
छिलका रहित और हल्की दालें
- लाल मसूर
- मूंग दाल
- अरहर दाल
इन दालों को पकाने से 30 मिनट पहले भिगोने से वे जल्दी पकती हैं और पचने में आसान होती हैं। इससे बलोटिंग और गैस की समस्या नहीं होती।
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2–4 घंटे तक भिगोने वाली दालें
हल्का छिलका वाली दालें
- मूंग छिलका
- उड़द छिलका
- चना दाल
इन दालों को 2–4 घंटे भिगोने से वे नरम हो जाती हैं और जल्दी पक जाती हैं। साथ ही ये पाचन में हल्की रहती हैं और गैस व सूजन से बचाती हैं।
6–8 घंटे तक भिगोने वाली दालें
साबुत दालें
- साबुत मूंग
- साबुत मसूर
- साबुत उड़द
- लोबिया
- मटकी (माठ)
एक्सपर्ट के मुताबिक इन दालों को 6 से 8 घंटे भिगोने से वे अच्छी तरह फूल जाती हैं और पकने में समय कम लगता है। इससे अपच, बलोटिंग और भारीपन नहीं होता।
8–12 घंटे (रातभर) भिगोने वाली दालें व बीन्स
भारी और मोटी दालें व बीन्स
- राजमा
- काला चना
- सफेद चना
ये सभी दालें भारी होती हैं और पचने में अधिक समय लेती हैं। इन्हें रातभर भिगोना जरूरी है। साथ ही, इन्हें पकाते समय तेज पत्ता और बड़ी इलायची डालने से पाचन में मदद मिलती है और पेट की परेशानी नहीं होती।
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