सोने से पहले अगर आप भी लंबे समय तक फोन चलाते हैं तो इससे आपको गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। कई लोग देर रात तक सोशल मीडिया चलाते हैं, फोन पर गेम खेलते हैं, गाने सुनते हैं, पढ़ाई से जुड़ी चीजें सर्च करते हैं, उन्हें फोन पर पढ़ते हैं इससे आपको नींद न आने की बीमारी यानी की इनसोम्निया का खतरा बढ़ जाता है। लल्लन टॉप की रिपोर्ट के अनुसार, बेड में हर एक घंटे फोन चलाने से इनसोम्निया का रिस्क 59 परसेंट तक बढ़ जाता है। इनसोम्निया एक स्लीप डिसऑर्डर है, यानी नींद से जुड़ी एक समस्या। जिस भी व्यक्ति को इनसोम्निया होता है, उसे सोने में परेशानी आती है। अक्सर उसे नींद नहीं आती। अगर आ भी जाए, तो अच्छी नींद आएगी। ऐसे लोगों की नींद आधी रात को खुल भी जाती है।
क्या कहती है रिसर्च?
फ्रंटियर्स इन साइकेट्री नाम के जर्नल में एक स्टडी छपी, इसे नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया और स्वीडन के रिसर्चर्स के रिसर्च के अनुसार, बेड में हर एक घंटे फोन चलाने से इनसोम्निया का रिस्क 59 परसेंट तक बढ़ जाता है। यही नहीं, सोने का टाइम भी कम हो जाता है। साथ ही आपको औसतन 24 मिनट कम नींद आती है। स्टडी को करने के लिए रिसर्चर्स ने ‘नॉर्वेजियन 2022 स्टूडेंट्स हेल्थ एंड वेलबीइंग सर्वे’ का डेटा लिया। इसमें 18 से 28 साल के 45 हजार से ज्यादा युवाओं का डेटा था। इसमें उनसे उनके स्लीप पैटर्न और स्क्रीन के इस्तेमाल के बारे में पूछा गया था। वो कब सोने जाते हैं, कितना टाइम लगता है सोने में, कब उठते हैं, नींद की क्वालिटी कैसी है और सोने से पहले वो किस तरह का कॉन्टेंट देखते हैं।
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रिजल्ट में आया सामने
कॉन्टेंट के लिए उन्हें 6 ऑप्शन दिए गए फिल्में या सीरीज देखना, सोशल मीडिया चलाना, इंटरनेट पर कुछ ढूंढना, गाना, कोई ऑडियो बुक या पॉडकास्ट देखना, गेम खेलना और पढ़ाई से जुड़ी चीज़ें देखना। फिर उनके जवाब के आधार पर, उन्हें तीन कैटेगरी में बांटा गया। पहली कैटेगरी उनकी, जो सोशल मीडिया चलाते हैं। दूसरी उनकी, जो सोशल मीडिया के साथ-साथ कुछ और भी करते हैं। तीसरी उनकी, जो सोशल मीडिया नहीं चलाते। इससे पता चला कि आप स्क्रीन पर कुछ भी देख रहे हों। इसका आपकी नींद पर असर पड़ता ही है। चाहें आप सोशल मीडिया चला रहे हों या पढ़ाई कर रहे हों। अगर सोने से पहले फोन या लैपटॉप की स्क्रीन आपके सामने है, तो आपकी नींद डिस्टर्ब होनी ही है। इनसोम्निया का खतरा बढ़ सकता है।
क्यों होता है इनसोम्निया?
जब आप स्क्रीन पर कुछ देख रहे होते हैं। तो आपका दिमाग एक्टिव होता है। आप लेटे भले होते हैं, लेकिन आराम नहीं कर रहे होते। सो नहीं रहे होते है नतीजा ये होता है कि नींद देर से आती है। उसकी क्वालिटी कम जाती है। फिर धीरे-धीरे ये एक पैटर्न बन जाता है और इनसोम्निया होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, ज़रूरी है कि सोने से कम से कम आधे-एक घंटे पहले फोन या लैपटॉप चलाना बंद कर दें। नेट भी ऑफ कर दें ताकि नोटिफिकेशन आपका ध्यान को फोन की और न खींचे।
इनसोम्निया को कैसे करें कम
नियमित नींद का समय तय करें- रोज एक ही समय पर सोना और उठना से आपको रात के अच्छी नीद आएगी । साथ ही छुट्टियों और वीकेंड में भी यही रूटीन रखें।
सोने से पहले स्क्रीन टाइम कम करें- मोबाइल, लैपटॉप, टीवी का इस्तेमाल सोने से 1 घंटे पहले बंद कर दें। इनसे निकलने वाली ब्लू लाइट दिमाग को एक्टिव कर देती है।
कैफीन और निकोटीन से बचें- शाम के बाद चाय, कॉफी या सिगरेट न लें। ये चीजे नींद में रुकावट डालती हैं। साथ ही इनसोम्निया का खतरा भी बढ़ जाता है।
रिलैक्सेशन तकनीक अपनाएं- मेडिटेशन, डीप ब्रीथिंग या योग निद्रा करने से दिमाग शांत होता है। सोने से पहले 10 से 15 मिनट का में ट्राई करें।
हर्बल चाय- कैमोमाइल टी, अश्वगंधा, या गर्म दूध में हल्दी का सेवन मदद कर सकता है। सोने से पहले नहाने से रिलैक्स फील होता है और आपको एक अच्छी नींद आती है।
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