Digital vs Real Books: डिजिटल किताबों और रियल किताबों की अगर तुलना की जाए तो दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं। किताब चाहे जो भी हो कभी बुरी नहीं होती, लेकिन ये बात भी सच है कि लोगों ने समय के साथ-साथ खुद में भी बदलाव कर लिया है। उदाहरण के लिए जैसे ही डिजिटल का दौर आया लोगों ने डिजिटल किताबों को ही अपना दोस्त बना लिया और रियल किताबों से दूरी।
आपको बता दें रियल किताबों को पढ़ने का अनुभव अलग ही होता है रियल किताबों को पढ़ने से आंखों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वहीं डिजिटल किताबों की पूरी लाइब्रेरी बिना किसी वजन के अपने साथ लेकर चलने की सुविधा लाजवाब है। फिर कई बार डिजिटल किताबें रियल किताबों से काफी सस्ती भी होती हैं।
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कहीं फायदे है तो कहीं नुकसान
हां, डिजिटल किताबों को पीढ़ी दर पीढ़ी चला नहीं सकते और एक पुरानी रियल किताब को पढ़ने का जो आनंद है वो एक डिजिटल किताब से नहीं आता, लेकिन फिर कई बार काफी बड़ी किताबें उदारहण के लिए लियो टॉलस्टॉय की युद्ध और शांति को डिजिटल रूप में अपने साथ लाना, ले जाना रियल किताब से आसान पड़ता है।
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स्कूल कॉलेज में भी अब नाम की रह गयी किताबें
हर स्कूल और कॉलेज में आपको एक लाइब्रेरी जरूर मिल जाएगी लेकिन क्या उस लाइब्रेरी में आपके विषय से रिलेटेड सभी किताबें होती है? जवाब होगा नहीं, अरे स्कूल में बच्चों को कब लाइब्रेरी में ले जाया जायेगा ये तक तय नहीं होता। बच्चों को बचपन से ही किताबों को पढ़ने की आदत डालनी चाहिए और स्कूल और कॉलेज में हर दिन बच्चों को लाइब्रेरी लेकर जाना चाहिए, अगर बच्चा किसी किताब को घर ले जाना चाहे तो उसे मना न करके ले जाने देना चाहिए।
रियल किताबों को पड़ना न छोड़ें
हमारा मानना यही है कि आप डिजिटल और रियल किताबों के बीच संतुलन बनाकर चलिए। सहूलियत के लिए डिजिटल को यूज करें और किताब पढ़ने को अगर महसूस करना चाहते हैं उसे एक एक्सपीरियंस बनाना चाहते हैं तो वास्तविक किताब को पढ़ें। दोनों ही अच्छे हैं। कोई भी बुरा नहीं है लेकिन डिजिटल ज्ञान के चलते अपनी रियल किताबों को पड़ना न छोड़ें।