Supreme Court on Isha Foundation: सद्गुरु ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ईशा फाउंडेशन सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी क्रिमिनल केस की जानकारी देने का निर्देश पुलिस को दिया था। हाईकोर्ट ने यह आदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज की ओर से हाईकोर्ट में दायर हेबियस कॉर्प्स याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए थे।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ब्रेनवॉश कर ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में रखा गया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाएंगे। मामले पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप ऐसे संस्थान में पुलिसकर्मियों की फौज नहीं भेज सकते। हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि वो चैंबर में ऑनलाइन मौजूद दोनों महिलाओं से बात करेंगे और उसके बाद आदेश पढ़ेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में लंबित इस मामले को अपने पास ट्रांसफर किया है। अब जांच की स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा होगी। 18 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई करेगा।
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क्या है पूरा मामला
चीफ जस्टिस ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस. कामराज की दोनों बेटियों से बात करने के बाद यह आदेश पारित किया। कामराज की बेटियों ने फोन पर बातचीत के दौरान चीफ जस्टिस को बताया कि वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। और अपनी मर्जी से आश्रम से बाहर आ जा सकती हैं।
कामराज ने हाईकोर्ट में दायर हैबियस कॉर्पस पिटीशन में आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है। उसके बाद हाईकोर्ट ने आश्रम के खिलाफ जांच का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया है।
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ईशा फाउंडेशन का पक्ष
बता दें कि प्रोफेसर की दोनों बेटियां 42 और 39 साल की हैं। दोनों हाईकोर्ट में भी पेश हुई थीं और अपना बयान दर्ज कराया था। प्रोफेसर की याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी शिवगनम की पीठ ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक से पूछा कि ‘हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से स्थापित किया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांतवासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है।’
ईशा फाउंडेशन ने दावा किया कि महिलाओं ने स्वेच्छा से उनके साथ रहने का विकल्प चुना है। फाउंडेशन ने कहा था कि वे विवाह न करने और संन्यासी बनने पर जोर नहीं देते हैं, क्योंकि ये व्यक्तिगत फैसला है। ईशा योग केंद्र में हजारों लोग रहते हैं, जो संन्यासी नहीं हैं, साथ ही कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने ब्रह्मचर्य या संन्यासी बनने का निर्णय लिया है।