Uddhav Thackeray Open challenge: शिवसेना (UBT) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को खुली चुनौती दी। इंटरव्यू में उद्धव ने कहा, ‘यदि आप मुझे खत्म करना चाहते हैं तो मैं उन्हें ऐसा करने की चुनौती देता हूं। फिर देखते हैं।’
इसके बाद सियासी गलियारे में सवाल उठाने लगा है कि उद्धव ठाकरे बहादुरी दिखा रहे हैं या यह उनकी हताशा है। क्योंकि चुनाव आंकड़े सिर्फ और सिर्फ कोरी बयानबाजी की ओर इशारा कर रहे हैं।
ऑपरेशन लोटस के बाद शिवसेना में पड़ी फूट
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के ऑपरेशन लोटस से शिवसेना में फूट पड़ी थी। इससे पहले ही राज्य में पार्टी का चुनावी ग्राफ गिर रहा था। 1999 में पार्टी ने विधान सभा चुनावों में 69 सीटें (17.33% वोट शेयर) जीतीं। 20 साल बाद 2019 में शिवसेना केवल 56 सीटें (16.41% वोट शेयर) जीतने में सफल रही। उसे 13 सीटों का नुकसान हुआ।
दिलचस्प बात यह है कि इसी अवधि में तत्कालीन गठबंधन सहयोगी भाजपा को काफी फायदा हुआ। 1999 में भाजपा को 56 सीटें (14.54% वोट शेयर) मिलीं, और 2019 तक यह 105 सीटों (25.75% वोट शेयर) तक पहुंच गई । भाजपा को 49 सीटों का फायदा हुआ।
2014 में अलग-अलग लड़ा था चुनाव
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का कई दशकों तक साथ रहा है। 2014 में शिवसेना और भाजपा ने अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस वक्त सेना ने 63 सीटें (19.35% वोट शेयर) जीती थीं और भाजपा ने 122 सीटें (27.81% वोट शेयर) जीती थीं।
इससे पहले 2009 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 46 सीटों के साथ 44 सीटें जीतने वाली शिवसेना को पीछे छोड़ दिया। पांच साल बाद 2014 में बीजेपी अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जब 2019 में भाजपा ने शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा तो उसकी सीटें घटकर 105 सीटें रह गईं।
हालांकि, लोकसभा चुनाव में शिवसेना अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रही है। 1989 में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन हुआ था। तब भाजपा ने 10 लोकसभा सीटें जीतीं और शिवसेना ने सिर्फ एक सीट जीती। 1999 में लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने 15 सीटें हासिल की, वहीं बीजेपी महज 13 सीट जीत पाई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में, जहां उन्होंने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, भाजपा ने 23 सीटें और शिवसेना ने 18 सीटें जीती थीं।
तो अब क्या वापसी की संभावना नहीं?
हालांकि गठबंधन 1989 से 2019 तक कायम रहा, लेकिन उद्धव ठाकरे का मानना है कि अब यह उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां से वापसी संभव नहीं है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर भाजपा ने सत्ता में समान हिस्सेदारी का अपना वादा निभाया होता, तो चीजें अलग होती। हमें एक अलग रास्ता अपनाना पड़ा क्योंकि भाजपा अपना वादा निभाने में विफल रही। अतीत में, यह दिवंगत बाल ठाकरे ही थे जिन्होंने दोनों (मोदी और शाह) को बचाया और इस तरह उन्होंने आभार व्यक्त किया।
अब चुनाव करीब है तो भाजपा और उद्धव गुट में जुबानी जंग तेज होने की उम्मीद है। 27 जुलाई को उद्धव के जन्मदिन पर उनके समर्थकों ने उन्हें संभावित प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए पोस्टर लगाए। हालांकि, उद्धव को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें अपनी पार्टी को अपने पैरों पर वापस लाना और राज्य में खोई हुई जमीन वापस पाना है।
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