सुप्रीम कोर्ट: उच्च शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण की संवैधानिक वैधता और वित्तीय स्थिति के आधार पर सार्वजनिक रोजगार के मुद्दों से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट को 7 नवंबर को इस पर अपना आदेश सुनाएगा। सितंबर में मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें पूरी करने के बाद इस मामले में ऑर्डर रिजर्व किया था।
North East Delhi riot: Court frames charges against Tahir Hussain, 7 others for attempt to murder
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#NorthEastDelhiRiots #TahirHussain pic.twitter.com/mtPk362ahF— ANI Digital (@ani_digital) November 5, 2022
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बता दें कि संविधान पीठ आर्थिक स्थितियों के आधार पर आरक्षण की संवैधानिक वैधता से संबंधित मुद्दों पर विचार कर रही थी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई 13 सितंबर से शुरू की थी और सात दिन तक सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था कि एससी, एसटी और ओबीसी गैर-क्रीमी लेयर को छोड़कर आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण प्रदान करना, समानता संहिता का उल्लंघन है। केंद्र ने पहले सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया है कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
इससे पहले भारत के तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए, आरक्षण मूल संरचना सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि एससी-एसटी और ओबीसी के लिए कुछ भी नहीं बदला गया है, लेकिन गुणात्मक रूप से ईडब्ल्यूएस कोटा का उद्देश्य 50 प्रतिशत आरक्षण को छूना नहीं था। यह 10 प्रतिशत एक अलग डिब्बे में है, उन्होंने प्रस्तुत किया। एजी संविधान के 103 संशोधनों का बचाव कर रहे थे जो संवैधानिक सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रदान करते थे।