तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने शनिवार को परिसीमन के मुद्दे पर एक अहम बैठक बुलाई। सीएम एमके स्टालिन की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हिस्सा लिया। साथ ही शिरोमणि अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंडर और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग केरल के महासचिव पीएमए सलाम भी पहुंचे। DMK ने कहा कि यह सिर्फ एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश का मुद्दा है।
परिसीमन चुनौती क्यों?
देश में जब भी परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी, उसका क्या फार्मूला रहेगा, ये तय करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। राजनीतिक विरोध की भी पूरी संभावना है, क्योंकि जिन राज्यों को इससे नुकसान का डर है वो सभी डीएमके सुप्रीमो के नेतृत्व में इस मामले पर एकजुटता दिखा रहे हैं।
1971 की जनगणना के आधार पर तय सीटों की संख्या 545 अब असंतुलित हो चुकी है। ऐसे में सांसदों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और नए संसद भवन का निर्माण भी भविष्य की जरूरत के हिसाब से बनाया गया है। अब लोकसभा में 880 और राज्यसभा में 384 संसद बैठ सकते हैं। ये बात तो तय है कि लोकसभा में सीटों की संख्या में जबरदस्त इजाफा होगा, लेकिन इसका तरीका क्या होगा?
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जनसंख्या के आधार पर सीट बढ़ाने से किसको होगा फायदा
इस वक्त लोकसभा में सीटों की संख्या 545 है, लेकिन भारत की आबादी अब लगभग 140 करोड़ हो चुकी है। देश के कई लोकसभा क्षेत्रों में 25 लाख से अधिक की आबादी है। इसे लेकर सांसदों और आम जनता को एक-दूसरे तक पहुंचने में मुश्किल होती है। ऐसे में अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया हुई तो अकेले उत्तर प्रदेश की सीटों में आधे के करीब इजाफा हो सकता है। वैसे ही बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल की सीटों में भी बढ़ोतरी होगी। दक्षिण भारत के राज्यों के लिए ये नुकसानदेह होगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर उनकी वर्तमान स्थति कमजोर हो सकती है। जहां दक्षिण के राज्यों में मोटे तौर पर प्रजनन दर 1.7 फीसदी के आसपास रही है तो वहीं नार्थ में ये लगभग 2.5 फीसदी में आसपास है तो इससे दक्षिण को नुकसान हो सकता है।
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