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‘कानून की नजर में अपराध, लड़की की नजर में नहीं’, कार्यकाल के आखिरी दिन SC के जस्टिस एएस ओका ने सुनाया बड़ा फैसला

Justice Abhay Shreeniwas Oka: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने शुक्रवार को अपने अंतिम कार्यदिवस पर 11 फैसले सुनाए, जबकि उनकी मां का निधन एक दिन पहले हुआ था। न्यायमूर्ति ओका गुरुवार को अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मुंबई गए थे और उसके बाद शुक्रवार को अपने अंतिम कार्यदिवस पर दिल्ली लौट आए। वे 24 मई (शनिवार) को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। शुक्रवार को परंपरा से हटकर उन्होंने अपनी सामान्य बेंच में बैठकर 11 फैसले सुनाए, उसके बाद वे भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के साथ औपचारिक बेंच में बैठे।

Author Reported By : Prabhakar Kr Mishra Edited By : Satyadev Kumar Updated: May 23, 2025 18:28
Justice Abhay Shreeniwas Oka, Supreme Court।
अपने कार्यकाल के आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस ओका ने सुनाया बड़ा फैसला।

सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन जस्टिस एएस ओका की बेंच ने नाबालिग लड़की के साथ रेप के दोषी की सजा माफ करने का फैसला सुनाया। कलकत्ता हाई कोर्ट की फैसले में की गई विवादित टिप्पणियों के चलते यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस केस में नाबालिग लड़की के साथ रेप के दोषी 25 साल के व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि लड़कियों को अपनी सेक्स की इच्छा नियंत्रण में रखनी चाहिए। हाई कोर्ट ने किशोरवय लड़के और लड़कियों के लिए कई दिशानिर्देश भी तय किए।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था

20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए निचली अदालत के दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकरार रखा। निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 6 और आईपीसी 376(3) और 376(2) के तहत दोषी माना था और 20 साल की सजा दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराए जाने के फैसले को बरकार रखा, लेकिन सजा कितनी दी जाए, इस पहलू पर फैसला पेंडिंग रखा था। कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को कमेटी बनाने को कहा था।

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‘कानून की नजर में अपराध, लड़की की नजर में नहीं’

कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने आज दोषी को सजा नहीं देने का फैसला लिया। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आरोपी को सजा नहीं देने का फैसला लिया। कोर्ट ने कहा कि कानून की नजर में भले ही यह अपराध हो, लेकिन पीड़ित लड़की ने इसे कभी अपराध की तरह देखा नहीं।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि पीड़ित लड़की को सामाजिक दबाव और कानूनी प्रकिया के चलते बहुत मुश्किल झेलनी पड़ी है। लड़की अब बालिग हो चुकी है और आरोपी के साथ शादी भी कर चुकी है और अपनी जिंदगी में खुश है। कोर्ट ने कहा कि इस केस के तथ्य आंख खोल देने वाले है। यह हमारे कानूनी सिस्टम की कमियों को दर्शाता है। इस केस में समाज ने लड़की को ‘जज’ किया। उसके घरवालों ने उसे अकेला छोड़ दिया। उसे अपने प्रेमी को बेगुनाह साबित करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि लड़की आरोपी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी है। उसके साथ शादी कर चुकी है और उनका एक बच्चा भी है। इन सब परिस्थितियों के मद्देनजर हम आर्टिकल 142 के तहत सजा नहीं देने का फैसला ले रहे हैं।

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First published on: May 23, 2025 06:28 PM

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