Story of Nawanagar Jam Sahib Digvijaysinhji Jadeja: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड के दौरे पर हैं। 45 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली पोलैंड यात्रा है। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वारसॉ स्थित जाम साहब ऑफ नवागर मेमोरियल जाकर जाम साहेब का श्रद्धांजलि दी। इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने नवानगर (अब जामनगर) के महाराजा को याद किया। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जामनगर के महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंहजी ने पोलैंड के 600 से ज्यादा लोगों को शरण दी थी। जामनगर के महाराजा के इस योगदान को पोलैंड आज भी याद करता है और भारत के प्रति अपना शुक्रिया अदा करता है। पीएम मोदी के पोलैंड में जाम साहेब को श्रद्धांजलि देने का वीडियो गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने एक्स पर पोस्ट किया।
India’s unsung hero in Poland: Jam Saheb Digvijaysinhji
---विज्ञापन---At the community program in Warsaw, Poland, PM @narendramodi highlighted Jam Saheb Digvijaysinhji Ranjitsinhji’s compassionate act of sheltering Polish children and women during WWII. His actions showcase the power of… pic.twitter.com/TEvEPhLznw
— MyGovIndia (@mygovindia) August 21, 2024
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‘गुड महाराजा’ को कैसे याद करता है पोलैंड
पोलैंड ने अपनी राजधानी वारसॉ में एक चौराहे का नाम जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंहजी के नाम पर रखा है। इसे स्क्वॉयर ऑफ द गुड महाराजा के नाम से जाना जाता है। पोलैंड में जामनगर के महाराजा के नाम पर एक स्कूल भी है। वहीं पोलैंड ने महाराजा जाम साहेब को मरणोपरांत पोलैंड गणराज्य के कमांडर ‘क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट’ से सम्मानित किया गया।
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दूसरे विश्व युद्ध में महाराजा की भूमिका
हिटलर ने 1939 में पोलैंड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी। युद्ध के हालात में पोलैंड के सैनिकों ने 500 महिलाओं और करीब 200 बच्चों को एक शिप में बिठाकर समुद्र में छोड़ दिया। शिप के कैप्टन से कहा गया कि इन्हें किसी भी देश में ले जाओ, जो भी इन्हें शरण दें। फिर कैप्टन उस शिप को लेकर कई देशों में गया, लेकिन किसी ने भी शरण नहीं दी। आखिर में यह शिप मुंबई पहुंची।
उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था, अंग्रेजों ने पोलैंड के रिफ्यूजियों को जगह देने से इनकार कर दिया, लेकिन पोलैंड के लोगों की किस्मत ने अचानक से टर्न लिया। उस समय नवानगर के शासक महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंहजी मुंबई में ही थे। उन्होंने पोलैंड के रिफ्यूजियों की व्यथा सुनी और उन्होंने तत्काल रिफ्यूजियों से भरे दो जहाजों को जामनगर के बेदी पोर्ट ले जाने का आदेश दिया। जाम साहेब की इस दरियादिली ने न केवल सैकड़ों पोलिस रिफ्यूजियों की जान बचाई बल्कि भारत और पोलैंड के रिश्तों का नया अध्याय लिखा।
बालाचदी में रिफ्यूजी कैंप
महाराजा जाम साहेब को उनके मानवतावादी कार्यों के लिए जाना जाता है। उस समय भारत अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। फिर भी महाराजा ने पोलिश रिफ्यूजियों को बालाचदी में रहने के लिए जगह दी। बालाचदी जामनगर से 30 किलोमीटर की दूरी पर एक तटीय इलाका है। रिफ्यूजियों में 2 से 15 साल के बच्चे भी थे, जो अनाथ थे या अपने परिवार से अलग हो गए थे। महाराजा ने उनका अच्छे से ख्याल रखा, उन्हें रहने के लिए जगह दी। शिक्षा और मेडिकल सुविधाएं दीं। बच्चों को घर जैसा खाना मिले इसके लिए उन्होंने एक पोलिश कुक की भी व्यवस्था की।
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बालाचदी में मौजूदा समय में एक सैनिक स्कूल है। लेकिन, इसी जगह पर पोलिश रिफ्यूजियों को बसाया गया था। महाराजा को रिफ्यूजी बच्चे बापू (पिता के लिए गुजराती संबोधन) कहकर बुलाते थे। महाराजा भी नियमित अंतराल पर बच्चों से मिलने जाते थे। उन्हें मिठाइयां और तोहफे भेंट करते। भारतीय और पोलिश त्यौहारों के मौके पर तो महाराजा उनके साथ ही होते और रिफ्यूजी लोगों के साथ मिलकर त्यौहार मनाते।
पोलिश बच्चों को अपने वतन लौटना
बालाचदी रिफ्यूजी कैंप से बच्चों का अपने देश लौटने की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद शुरू हुई। कुछ बच्चे परिस्थितियों के हिसाब से ज्यादा समय तक भारत में रूके। पोलिश रिफ्यूजियों का आखिरी जत्था 1940 के दशक के आखिर में अपने देश वापस लौटा।
रिफ्यूजियों में शामिल थे राष्ट्रपति के घर वाले
पोलैंड के राष्ट्रपति एंद्रेज डूडा ने इस घटना को लेकर अपना व्यक्तिगत किस्सा भी शेयर किया। 2017 में अपने भारत दौरे के दौरान प्रेसिडेंट डूडा ने बताया कि उनके परिवार के कुछ लोग उन रिफ्यूजी लोगों में शामिल थे, जिन्हें जामनगर के महाराजा ने शरण दी थी। अपने दौरे के दौरान प्रेसिडेंट डूडा ने महाराजा के वंशजों से मुलाकात की और जाम साहेब को श्रद्धांजलि अर्पित की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जाम साहेब की दरियादिली से जुड़ा भारत और पोलैंड का रिश्ता आज नई ऊंचाइयों को छू रहा है।