---विज्ञापन---

सोशल मीडिया का सम्मोहन कितना हानिकारक: रिश्तों की कमजोर कड़ी में कैसे बनेगा संतुलन?

नई दिल्ली: आज की तारीख में गांव से शहर तक ऐसा परिवार खोजना मुश्किल है, जिनके पास स्मार्ट फोन न हो। ऐसा युवा खोजना मुश्किल है, जो Facebook, Whatsapp, Twitter, Instagram जैसे प्लेटफॉर्म पर एक्टिव न हो। ये लोगों को पूरी दुनिया से वर्चुअली जोड़ने के माध्यम हैं। आज की तारीख में बच्चों से लेकर […]

Edited By : Pushpendra Sharma | Updated: Jul 31, 2023 13:08
Share :
News 24 Editor in Chief Anurradha Prasad Special Show
News 24 Editor in Chief Anurradha Prasad Special Show

नई दिल्ली: आज की तारीख में गांव से शहर तक ऐसा परिवार खोजना मुश्किल है, जिनके पास स्मार्ट फोन न हो। ऐसा युवा खोजना मुश्किल है, जो Facebook, Whatsapp, Twitter, Instagram जैसे प्लेटफॉर्म पर एक्टिव न हो। ये लोगों को पूरी दुनिया से वर्चुअली जोड़ने के माध्यम हैं। आज की तारीख में बच्चों से लेकर बुर्जुगों तक की सामूहिक चेतना को प्रभावित करने में इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन इस माध्यम ने लोगों के सामने एक नए तरह का संकट पैदा कर दिया है।

अपनों से कटने लगे हैं लोग 

ये लोगों तो वर्जुअली पूरी दुनिया से जोड़ रहा है, लेकिन पूरी दुनिया से जुड़ने के चक्कर में लोग अपनों से कटने लगे हैं। सोशल मीडिया पर ओवर एक्टिव रहना एक बड़ी बीमारी की तरह बनता जा रहा है। ये एक खतरनाक नशे का रूप लेता जा रहा है। जिसकी चपेट में बच्चे, नौजवान और बुजुर्ग सभी अपने तरीके से आ रहे हैं।

---विज्ञापन---

ऐसे में आज मैंने एक ऐसे मुद्दे पर आपसे जुड़ने का फैसला किया है, जो घर-घर की समस्या है। जो बच्चों का बचपन छीन रहा है, जो उनकी सेहत पर असर डाल रहा है। साथ ही उनकी पढ़ाई को प्रभावित कर रहा है। ये युवाओं की कार्यक्षमता को भी प्रभावित कर रहा है। उनका जाने-अनजाने समय बर्बाद कर रहा है। जो लोकतंत्र में वोटिंग पैटर्न को भी प्रभावित कर रहा है। सोशल मीडिया और इंटरनेट से जुड़े सभी पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे अपने खास कार्यक्रम सोशल मीडिया का सम्मोहन कितना हानिकारक में…

और पढ़े:- मोबाइल का 155 रुपए का प्रीपेड रिचार्ज करवाना पड़ा महंगा, लुट गए एक लाख रुपए

---विज्ञापन---

समाज और परिवेश से कटे रहे लोग 

कुछ दिनों पहले की एक घटना मेरी आंखों देखी है। एक जगह चार परिवार मिले। उनमें चार बच्चे पांच से सात वर्ष के बीच के थे। चारों एक कमरे में घुसे, दरवाजा बंद किया और सभी के हाथों में स्मार्टफोन थे। करीब दो घंटे के बीच किसी भी बच्चे ने आपस में बात नहीं की। सभी अपने-अपने मोबाइल सेट के साथ व्यस्त रहे। वो मासूम बच्चे अपनी-अपनी पसंद के मुताबिक पूरी दुनिया से जुड़े रहे, लेकिन हकीकत में उस समाज और परिवेश से कटे रहे, जिसमें रहने की आदत उन्हें सीखनी चाहिए थी। सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल से होने वाले खतरों पर नए सिरे से मंथन होने लगा है।

अमेरिका से भारत तक बढ़ी परेशानी 

अमेरिका के लोग परेशान हैं कि उनके बच्चों का पढ़ने में मन क्यों नहीं लग रहा है। यूरोप के लोग परेशान हैं कि उनके बच्चों की याद्दाश्त कमजोर क्यों हो रही है। भारत में लोग परेशान हैं कि उनके बच्चे इतने चिड़चिड़े क्यों होते जा रहे हैं। दरअसल, स्मार्टफोन के जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल ने पूरी दुनिया में बच्चों के व्यवहार को बुरी तरह से प्रभावित किया है।

बच्चों के अंदर बढ़ रहा गुस्सा 

इस साल जनवरी में अमेरिका के वर्जीनिया में एक 6 साल के बच्चे ने क्लास रूम में फायरिंग कर दी..जिसमें गोली एक टीचर को लगी। पहली क्लास का छात्र, 6 साल की उम्र और बंदूक से फायरिंग ये पूरी दुनिया के लिए हैरान करने वाली खबर थी। आखिर इतने छोटे बच्चे के भीतर इतना जहर कैसे आया? इतना गुस्सा कहां से आया? ऐसे में उस छोटे बच्चे के दिलो -दिमाग पर अमेरिकी गन-कल्चर के साथ-साथ सोशल मीडिया के प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

बच्चों के व्यवहार में तेजी से बदलाव

वर्जीनिया से साढ़े सात हजार किलोमीटर दूर फरीदाबाद में एक 15 साल की बहन पर अपने छोटे भाई का गला दबाने का आरोप है क्योंकि भाई ने गेम खेलने के लिए मोबाइल फोन देने से मना कर दिया दिया था। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया बच्चों के व्यवहार में तेजी से बदलाव ला रहा है और इसका इस्तेमाल एक नशे की तरह बनता जा रहा है। इंटरनेट से लैस स्मार्ट फोन में दुनियाभर जानकारी मौजूद है । उसमें भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बच्चों को उनकी पसंद और नापसंद के मुताबिक कंटेंट उनकी आंखों के सामने पेश करता रहता है। बच्चों के सामने इतनी तरह की जानकारियां एक झटके में मौजूद हैं, जिन्हें संभालना और उनमें गलत-सही का अंतर करना बच्चों के लिए मुश्किल हो जाता है।

स्कूली बच्चे भी सोशल मीडिया के नशे में चूर

अमेरिका के स्कूली बच्चे भी सोशल मीडिया के नशे में चूर हैं । इंटरनेट और सोशल मीडिया का नशा शराब के नशे से भी खतरनाक है… इसकी लत में आने वाले शख्स रोजाना अपना घंटों का समय स्मार्ट फोन में बीता रहे है । कभी दूसरों की प्रोफाइल देखने में, कभी मनोरंजन के लिए Reels और Shots में कभी ज्ञान बढ़ाने के नाम पर Youtube के वीडियो लोक में खोए रहते हैं। इस साल अमेरिका के सिएटल पब्लिक स्कूल ने छात्रों में सोशल मीडिया के मोहपाश में फांसने के लिए बड़ी कंपनियों को जिम्मेदार मानते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

पिछड़ रहे हैं स्कूल 

मुकदमे में दलील दी गई कि सोशल मीडिया की वजह से स्कूल अपने मकसद को हासिल नहीं कर पा रहे हैं तो स्कूली छात्र चिंता, डिप्रेशन और दूसरी मनोवैज्ञानिक बीमारियों से जूझने लगे हैं। कुछ रिसर्च के मुताबिक, सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा असर बच्चों की नींद पर पड़ता है। जिससे उनका कॉन्फिडेंस हिल रहा है। खाने-पीने के तौर-तरीकों पर भी असर पड़ रहा है। मतलब, बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी कम होने और स्क्रीन में घुसे रहने की वजह से बच्चों का मेंटल हेल्थ बहुत हद तक प्रभावित हो रहा है। ये एक ग्लोबल समस्या बनती जा रही है।

एंग्जायटी, डिप्रेशन, ईटिंग डिसऑर्डर जैसे लक्षण बढ़े 

अमेरिका में स्कूल गंभीरता से महसूस कर रहे हैं कि सोशल मीडिया की वजह से बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है। जिस तरह से सोशल मीडिया पर बच्चे जरुरत से ज्यादा एक्टिव रह रहे हैं…उससे बच्चों में एंग्जायटी, डिप्रेशन, ईटिंग डिसऑर्डर जैसे लक्षण महसूस किए जा रहे हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई पर भी बुरी तरह से असर पड़ रहा है। सोशल मीडिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल की वजह से बच्चे साइबर बुलीइंग की चपेट में भी आ रहे हैं।

और पढ़े:- iPhone खरीदने के लिए कपल ने बेच दिया 8 महीने का बच्चा, हनीमून पर भी गए

स्कूलों में मनोचिकित्सकों की नियुक्ति

ऐसे में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के बच्चों पर नकारात्मक असर को देखते हुए अमेरिका के कई स्कूल तो बाकायदा मनोचिकित्सकों की नियुक्ति कर रहे हैं। सिलेबस में सोशल मीडिया से होनेवाले नुकसानों से भी बच्चों को परिचित कराया जा रहा है। पूरी दुनिया में स्मार्ट फोन के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और सोशल मीडिया की दुनिया में घंटों खोए रहने वाली नई प्रवृति के साइड इफेक्ट को लेकर रिसर्च जारी है। कुछ रिसर्च ये भी इशारा कर रही हैं कि सोशल मीडिया लोगों को वर्चुअल वर्ल्ड में नए रिश्ते जोड़ने में मदद तो कर रहा है, लेकिन उन रिश्तों को कमजोर कर रहा है, जिनके बगैर रोजमर्रा की जिंदगी में खुशहाली की कल्पना नहीं की जा सकती है।

30 फीसदी बच्चे मानसिक बीमारी से पीड़ित

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 73% बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। ये आम बात है कि 6 माह से सालभर के बच्चे को भी स्मार्ट फोन में ज्यादा मजा दिखता है। वो अपनी छोटी-छोटी अंगुलियों की मदद से स्मार्ट फोन में अपनी खुशी खोजने लगता है। रिसर्च ये भी बताती है कि स्मार्ट फोन का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले 30 फीसदी बच्चे मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। यानी हर 10 में से 3 बच्चा डिप्रेशन, डर और चिड़चिड़ेपन से बेहाल है। ब्रिटिन में भी एक स्टडी में खुलासा हो चुका है कि सोशल मीडिया का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बच्चों की दिमागी क्षमता और तौर-तरीकों को प्रभावित कर रहा है। इस साल जनवरी में परीक्षा पर चर्चा कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मार्ट फोन और गैजेट्स से होने वाले नुकसान को लेकर देश को सतर्क किया।

सोशल मीडिया के इस्तेमाल की सीमा तय करना जरूरी

प्रधानमंत्री मोदी भी अच्छी तरह जानते हैं कि भारत के भविष्य यानी स्कूली छात्रों का कितना समय स्मार्ट फोन की स्क्रिन पर बीत रहा है। ऐसे में वो कहते हैं कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल की सीमा तय करना कितना जरूरी है। जरा सोचिए जब सोशल मीडिया नहीं था, तब जिंदगी कैसी थी।

स्मार्ट फोन के जरिए सोशल मीडिया नेटवर्क में खुशियां खोजने का जब दौर शुरू हुआ… तब जिंदगी कैसी है ? अगर 24 घंटे में कोई व्यक्ति 6 घंटे रोजाना स्मार्ट फोन स्क्रिन और सोशल मीडिया की दुनिया में गुजारेगा, तो उसकी जिंदगी में अपने करीबियों के लिए कितना समय बचेगा। वो समाज और हकीकत से कितना करीब और कितना दूर होगा? आज की तारीख में स्मार्ट फोन एक ऐसी बड़ी कमजोरी बनता जा रहा है, जिसमें लोगों को बगैर स्क्रीन देखे कुछ कमी…कुछ छूटता सा महसूस होता रहता है।

खुल सकते हैं रिहैबिलिटेशन सेंटर 

अब तक आपने नशा मुक्ति केंद्र के बारे में सुना होगा…लेकिन, वो दिन भी दूर नहीं जब माता-पिता को अपने बच्चों की सोशल मीडिया की लत छुड़ाने के लिए किसी रिहैबिलिटेशन सेंटर ले जाना पड़ सकता है। देश के छोटे-बड़े शहरों में ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर की तरह सोशल मीडिया और मोबाइल रिहैबिलिटेशन सेंटर खुलने लगेंगे। जब भी कोई तकनीक आती है…तो उसके फायदे भी होते हैं और नुकसान भी। स्मार्ट फोन से अगर जिंदगी आसान हुई है, दुनिया की हर खबर आपकी अंगुलियों के इशारे पर मौजूद है, तो दूसरा सच ये भी है कि ये रोजाना आपको दुनिया से कनेक्ट करने के नाम पर अपनों के लिए समय कम देने पर मजबूर कर रही है । घर-परिवार में संवाद की कड़ियां कमजोर हो रही है। वर्चुअल कनेक्शन जोड़ने के चक्कर में रियल सोशल कनेक्शन का नेटवर्क दिनों-दिन कमजोर होता जा रहा है।

अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं लोग 

इंटरनेट और स्मार्टफोन ने फासलों को मिटा दिया है। करोड़ों लोगों के नेटवर्क के साथ एक क्लिक पर जुड़ने का मौका दिया है। युवा से लेकर बुजुर्ग तक फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और इंस्ट्राग्राम जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए जुड़ रहे हैं । नए रिश्ते जोड़ रहे हैं, अपने पुराने दोस्तों को सोशल मीडिया के जरिए खोज रहे हैं। लेकिन, पुरी दुनिया के जुड़ने की कोशिश में अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं।

सोशल मीडिया की लत इतनी खतरनाक रूप लेती जा रही है कि परिवार के सदस्य एक साथ बैठे होने के बावजूद आपस में बातचीत करने की जगह अपने-अपने स्मार्ट फोन स्क्रिन और सोशल मीडिया के संसार में गोता लगाते रहते हैं । ऐसे में सुख- दुख आपस में बांटने वाली प्रवृति कमजोर हुई है…परिवार के बीच संवाद का दायरा तंग हुआ और लोग वर्चुअल दुनिया में ही अपनी समस्याओं का हल खोजने की कोशिश करते दिखते हैं । इससे मानवीय संवेदना,सामाजिक सरोकार, समस्याओं को मिलजुल कर सुलझाने वाली संस्कृति कमजोर और दिखावे की प्रवृति मजबूत हुई है ।

खुद सीमा तय करने की जरूरत

ऐसे में मनोवैज्ञानिको की सोच है कि स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया लोगों को भीड़ के बीच भी अकेला बनाता जा रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया में इस बात पर गंभीरता से मंथन हो रहा है कि तकनीक का किस हद तक इस्तेमाल किया जाए कि इंसान उसका गुलाम न बने, बल्कि तकनीक का इस्तेमाल खुद की और समाज की बेहतरी के लिए कर सके। आज की तारीख में स्मार्ट फोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया वक्त की जरूरत है। ऐसे में तकनीक से दूरी बनाते हुए दुनिया के साथ कदमताल करना नामुमकिन जैसा है…लेकिन, इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल निजी रिश्तों से लेकर सेहत तक के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। ऐसे में तकनीक का किस हद इस्तेमाल किया जाए कि समाज से भी न कटें। दफ्तर में प्रोडक्टिविटी भी कम न हो और वर्चुअल दुनिया में संतुलन के साथ बने रहें। इसके लिए खुद सीमा तय करने की जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही है।

61 फीसदी से ज्यादा लोग कर रहे हैं इस्तेमाल 

एक रिसर्च के मुताबिक, अभी देश की आबादी में 61 फीसदी से अधिक लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये आंकड़ा 2025 में बढ़कर 67 फीसदी के निशान को पार करने का अनुमान है । लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि 2015 में सिर्फ 19 फीसदी लोग ही भारत में सोशल मीडिया पर एक्टिव थे, लेकिन आठ वर्षों में ही ये तादाद तीन गुना बढ़ गयी। इंटरनेट और सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल आम आदमी अपने तरीके से कर रहा है। बिजनेस कंपनियां अपने तरीके से और राजनीतिक दल अपने तरीके से।

पॉलिटिकल नैरेटिव अपने हिसाब से आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल और नेता सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में फेक न्यूज और सूचनाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की प्रवृति तूफानी रफ्तार से आगे बढ़ रही है। जो लोगों की सामूहिक चेतना को प्रभावित कर रहे हैं। सच को झूठ और झूठ को सच बताने का खेल भी सोशल मीडिया के जरिए धड़ल्ले चल रहा है। इसे कुछ समाजशास्त्री लोकतंत्र के लिए बेहतर, तो कुछ हानिकारक मान रहे हैं।

इस तरह बढ़े यूजर 

पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ी है। उसमें राजनीतिक पार्टियों ने भी लोगों तक पहुंचने का रास्ता बदला है। ऐसे में पहले ये समझते हैं कि भारत के अंदर पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया यूजर किस रफ्तार से बढ़े हैं। 2015 में सिर्फ 19.1 % सोशल मीडिया यूजर थे, जो 2016 में बढ़कर 23% हो गए। अगले साल 29.5%, 2018 में 35.4%, 2019 में 46.4%, 2020 में 50.4%, 2021 में 54.6%, 2022 में 58.3% और इस साल 61.7% के निशान को पार कर जाने का अनुमान है।

कई मुल्कों में सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट की तैयार

मतलब, आठ साल के भीतर भारत में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या तीन गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है । ऐसे में लोगों की सोच प्रभावित करने के लिए सियासी पार्टियां सोशल मीडिया का धड़ल्ले इस्तेमाल कर रही हैं…लोगों तक बात पहुंचाने के लिए नेता सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में गलत-सही सूचनाओं को सोशल मीडिया के जरिए फैलाने का खेल भी धड़ल्ले चल रहा है। सोशल मीडिया के जरिए दुनिया ने अरब स्प्रिंग देखा, जब लोग सोशल मीडिया के जरिए आपस में जुड़े और कई मुल्कों में सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट तैयार कर दी। हाल में ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं को एकजुट करने में भी सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई। दुनिया के हर हिस्से में कई मौकों पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आम आदमी की आवाज बना, तो कभी स्वार्थी लोगों के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले औजार के तौर पर भी इस्तेमाल होता दिखा है।

ताकतवर हथियार की तरह

आज की तारीख में सोशल मीडिया आम आदमी के हाथों में एक ताकतवर हथियार की तरह है, जिसका इस्तेमाल वो अपनी समझ के मुताबिक करता है । इसे कंट्रोल करना असंभव जैसा है … इसके जितने फायदे हैं, जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल पर उतना ही नुकसान भी। भले ही कोरोना काल में बच्चों के लिए पढ़ाई-लिखाई का जरिया स्मार्ट फोन, टैबलेट, लैपटॉप और डेस्कटॉप बन गए। उनके सामने दुनिया की इतनी जानकारियां आ गईं, जिनमें से बच्चों लिए ये तय कर पाना मुश्किल था कि उनके लिए क्या जरूरी है और क्या फालतू?

डिजिटल उपवास का चलन

ऑनलाइन से ऑफलाइन की दुनिया में वापसी के बाद भी बच्चों का सम्मोहन सोशल मीडिया से खत्म नहीं हुआ…जो उन्हें खेल के मैदान, हकीकत के दोस्त, समाज की हकीकत और अड़ोस-पड़ोस के माहौल दूर कर रहा है । ऐसे में एक स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था के लिए सबको गंभीरता से सोचना होगा कि सोशल मीडिया का कितना और कब इस्तेमाल करना है। जिससे हमारी प्रोडक्टिविटी प्रभावित न हो…गलत सूचनाओं के भंवर जाल में फंसकर सच्चाई से दूर न हों।

सोशल मीडिया पर रिश्ता जोड़ने के चक्कर में इतना समय न बर्बाद कर दें, जिससे करीब के रिश्तों में ही दूरी बन जाए। मतलब, सोशल मीडिया पर समय खर्च करते समय संतुलन बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया के दखल को जिंदगी में कम करने के लिए डिजिटल उपवास का चलन भी धीरे-धीरे शुरू हो रहा है। ठीक उसी तरह जैसे दफ्तरों में हफ्ते में एक दिन या दो दिन का ऑफ मिलता है। स्कूलों में शनिवार और रविवार को क्लास नहीं लगती है। इसलिए अब सोशल मीडिया का उपयोग करते समय हमें इन्हीं विचार-मंथन की जरूरत है।

स्क्रिप्ट और रिसर्च : विजय शंकर

HISTORY

Edited By

Pushpendra Sharma

Edited By

Manish Shukla

First published on: Jul 30, 2023 09:09 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें