सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को झटका देते हुए बड़ी टिप्पणी की है। सरकार द्वारा एमबीबीएस की फीस बढ़ाने संबंधी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा “शिक्षा लाभ कमाने का धंधा नहीं है, ट्यूशन फीस हमेशा होनी चाहिए सस्ती”।
अभी पढ़ें – ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में तिरंगा लेकर चल रहे कांग्रेस नेता का हुआ निधन, राहुल गांधी ने जताया शोक
Education not a business to earn profit, tuition fee must be affordable: Supreme Court
---विज्ञापन---Read @ANI Story | https://t.co/dTUE43INUV#SupremeCourt #education #TutionFees pic.twitter.com/NPCxFTSFzm
— ANI Digital (@ani_digital) November 8, 2022
24 लाख सालाना कर दी थी फीस
दरअसल, आंध्र प्रदेश सरकार ने फीस 24 लाख रुपये प्रति वर्ष बढ़ाने का निर्णय किया था। जिसे चुनौती देने संबंधी याचिका पर आंध्र हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया था। सरकार ने फिर इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने सोमवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है।
सात गुणा फीस करने पर ऐतराज
बता दें कि आंध्र प्रदेश सरकार ने 6 सितंबर, 2017 को अपने सरकारी आदेश द्वारा एमबीबीएस छात्रों द्वारा देय शिक्षण शुल्क में वृद्धि की। अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा “हमारी राय है कि उच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2017 के सरकारी आदेश को रद्द करने और ब्लॉक वर्ष 2017-2020 के लिए शिक्षण शुल्क बढ़ाने में कोई गलती नहीं की है।” कोर्ट ने कहा, ‘फीस को बढ़ाकर 24 लाख रुपये सालाना करना यानी पहले तय फीस से सात गुणा ज्यादा करना बिल्कुल भी जायज नहीं था। शिक्षा लाभ कमाने का धंधा नहीं है। ट्यूशन फीस हमेशा सस्ती होगी।’
फीस बढ़ाते हुए इन बातों का रखें ध्यान
अदालत ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने 6 सितंबर, 2017 के सरकारी आदेश के तहत एकत्रित शिक्षण शुल्क की राशि वापस करने के निर्देश जारी करने में कोई त्रुटि नहीं की है। “इसलिए, उच्च न्यायालय सरकार को रद्द करने और अलग करने में बिल्कुल उचित है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शुल्क का निर्धारण, शुल्क की समीक्षा, निर्धारण नियमों के मापदंडों के भीतर होगी और नियम, 2006 के नियम 4 में उल्लिखित कारकों पर सीधा संबंध होगा। जिसमें पेशेवर संस्थान का स्थान शामिल है।
अभी पढ़ें – Gujarat Election 2022: गुजरात में विजन डॉक्यूमेंट के लिए फीडबैक अभियान शुरू करेगी बीजेपी
अदालत ने अनुमति देने से किया इन्कार
अदालत ने कहा कि ट्यूशन फीस का निर्धारण, समीक्षा करते समय इन कारकों पर प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (AFRC) द्वारा विचार किया जाना आवश्यक है। अदालत ने कहा “प्रबंधन को अवैध सरकारी आदेश दिनांक 6 सितंबर 2017 के अनुसार बरामद, एकत्र की गई राशि को बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। मेडिकल कॉलेज 6 सितंबर, 2017 के अवैध सरकारी आदेश के लाभार्थी हैं। जिसे उच्च न्यायालय द्वारा ठीक ही खारिज कर दिया गया है।
अभी पढ़ें – देश से जुड़ी खबरें यहाँ पढ़ें