Sanatan Dharma Controversy, चेन्नई: सनातन धर्म को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम स्टालिन के बेटे और कैबिनेट मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा दिए गए बयान पर देश की राजनीति गर्म है, वहीं अब इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी आई है। कोर्ट ने साफ किया कि बोलने की आजादी का मतलब जहर उगलना या भड़काऊ बयानबाजी करना नहीं है। सनातन धर्म ‘शाश्वत कर्तव्यों’ का एक समूह है जिसे हिंदू धर्म से संबंधित कई स्रोतों या हिंदू जीवन शैली का पालन करने वालों से एकत्र किया जा सकता है।
बता दें कि 15 सितंबर को तमिलनाडु की राजधानी स्थित प्रदेश के उच्च न्यायालय (High Court) की जस्टिस शेषशायी की पीठ एक स्थानीय सरकारी कॉलेज के परिपत्र को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुरई की जयंती पर छात्राओं से ‘सनातन का विरोध’ विषय पर अपने विचार रखने की अपील वाले इस परिपत्र के वापस हो जाने की वजह से कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया है।
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इसी दौरान सनातन धर्म को लेकर जारी बहस के बीच मद्रास हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि बोलने की आजादी के मौलिक अधिकार (Fundamental Right To Free Speech) का मतलब नफरत फैलाने वाले भाषण की अनुमति नहीं है। खासकर जब मामला धर्म से जुड़ा हुआ हो। कोर्ट ने कहा, ‘हर धर्म आस्था पर आधारित है और आस्था में अतार्किकता शामिल होती ही है। इसलिए जब धर्म से जुड़े मामलों पर स्वतंत्र भाषण दिया जाए, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उससे किसी को तकलीफ न हो। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो फ्री स्पीच हेट स्पीच नहीं हो सकती है’।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले अगस्त के आखिरी सप्ताह में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे और मौजूदा कैबिनेट मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर एक विवादत बयान दिया था। मंत्री ने कहा था, ‘ऐसी कुछ चीजें होती हैं, जिनका विरोध करना काफी नहीं होता, हमें उन्हें समूल मिटाना होगा। मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना ये ऐसी चीजें हैं, जिनका हम केवल विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें मिटाना होगा। सनातन भी ऐसा ही है’।