After the Supreme Court’s decision what option left for the LGBTQ: सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर अपना फैसला सुना दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने छह महीने से सुरक्षित रखे अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता देना का उसका काम नहीं है। हालांकि, अब सवाल उठता है कि अब आगे क्या है। एलजीबीटीक्यू समुदाय के पास अब क्या विकल्प बचा है?
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ बच्चा गोद लेने को लेकर जताई सहमति
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हैट्रोसेक्शुअल लोगों को जो वैवाहिक अधिकार मिलते हैं, वहीं अधिकार समलैंगिक समुदाय के लोगों को भी मिलने चाहिए। अगर समलैंगिक जोड़े को ये अधिकार नहीं मिलता है तो ये मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा। इसके साथ ही चंद्रचूड़ ने बिना शादीशुदा वाले कपल, क्वियर कपल को एक साथ बच्चा गोद लेने को लेकर सहमति जताई है।
कानून बनाने का काम संसद और विधासभाओं का
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल रहे हैं। उन्होंने समलैंगिक विवाह को लेकर कहा कि इसपर कानून बनाने का काम संसद और विधानसभाओं का काम है। वहीं, बच्चा गोद लेने के अधिकार से जुड़े मुद्दे पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल ने अपनी सहमति दी। हालांकि, पांच में से तीन जजों की असहमति के चलते इसे कानूनी मान्यता नहीं मिल पाई।
एक्सपर्ट पैनल समलैंगिक जोड़ों को विवाह का अधिकार देने पर करेगा विचार
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाले मामले पर स्पष्ट तौर पर कहा कि वो इस मामले में अपना फैसला नहीं दे सकता है क्योंकि ये काम संसद और विधानसभाओं का है। ऐसे में एलजीबीटीक्यू समुदाय के पास केंद्र सरकार से कुछ आस बचती है, लेकिन वो भी न के बराबर। संमलैंगिग विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर केंद्र सरकार शुरुआत से ही इसका विरोध करती आ रही है। वहीं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्ताव दिया था कि केंद्र सरकार की ओर से एक एक्सपर्ट पैनल बनाया जाए, जो समलैंगिक जोड़ों को शादी के अधिकार समेत कई अधिकार देने पर विचार करेंगे। अब आगे देखना होगा कि फैसला एलजीबीटीक्यू समुदाय के पक्ष में आएगा या नहीं।