Sabse Bada Sawal, 17 April 2023: नमस्कार…मैं हूं संदीप चौधरी। आज सबसे बड़ा सवाल में मैं बात करना चाहता हूं पिछड़ों की। पिछड़ा जिसे अगड़ा बनाया जा रहा है। तैयारियां पहले से ही शुरु हो चुकी हैं। लेकिन अब एक शक्ल बनती नजर आ रही है। मैं जातीय जनगणना की बात कर रहा हूं। जनगणना काफी समय पहले ही हो जानी थी, लेकिन कोविड के चलते इसमें विलंब हुआ।
सरकार जातीय जनगणना से साफ इंकार कर चुकी है, हालांकि 2018 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि सरकार जातीय जनगणना के पक्ष में है। रोहिणी आयोग भी बना था 2017 में और जातीय जनगणना की ओर कदम उठते दिख रहे थे, लेकिन वो रोक दिये गये कि ये सामाजिक ताना- बाना जो कड़वी हकीकत है समाज की वो उजागर होगी तो ताना-बाना उधड़ सकता है। ये एक पहलू बताया जा रहा था।
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अब कांग्रेस इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाती दिख रही है। कल कर्नाटक के कोलार में थे राहुल गांधी। वही कोलार जहां मोदी सरनेम पर दिये उनके बयान को लेकर उन्हें 2 साल की सजा हुई औऱ संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। राहुल गांधी ने पीएम से पूछा- आप जातीय जनगणना क्यों नहीं करवाते। देश में कितने ओबीसी हैं, कितने दलित हैं आप देश को पता क्यों नहीं चलने देना चाहते।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्य़क्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया कि जनगणना जल्द से जल्द करवाई जाये और इसमें जातीय जनगणना भी हो। बिहार में जातीय जनगणना 15 अप्रैल से शुरू हो गई है। यही तर्क पिछले साल से नीतीश कुमार भी देते आ रहे थे। बिहार विधानसभा में उन्होंने प्रस्ताव भी पारित करवाया था, जिसका उस समय बीजेपी ने भी समर्थन किया था। रोहिणी आयोग के कुछ आकड़े इसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं। मोदी सरकार ने ही यह आयोग बनाया है और इस आयोग ने यह पाया है कि 983 ऐसी जातियां हैं, जिन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा और कहने को पिछड़ी जाति के हैं।
994 जातियों को 2.8 प्रतिशत ही लाभ मिल रहा है, जबकि पिछड़ी जाति की 10 जातियां ऐसी हैं जो 25 फीसदी लाभ ले रही हैं। 38 जातियां 25 फीसदी उठा ले जाती हैं। ये रोहिणी आयोग का आंकड़ा है। और इसी में मैं आपको बताऊं केंद्र में जो सचिव लेवल सेक्रेटरी स्तर यानी टॉप लेवल के अधिकारी हैं, वे 91 अतिरिक्त सचिव हैं जिनमे कुल 4 ओबीसी हैं, संयुक्त सचिव भारत सरकार में 245 हैं, जिनमें सिर्फ 29 ओबीसी, कैबिनेट सचिवालय में 81 अधिकारी हैं। सिर्फ दो ओबीसी, सार्वजनिक उद्यम विभाग में 30 अधिकारी है एक भी ओबीसी नहीं और 40 केंद्रीय कॉलेज जो हैं, उसमें एक भी प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर ओबीसी नहीं है।
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ऐसे में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार जो कहते हैं कि शेर, बाघ, पक्षी सभी जीव गिने जा सकते हैं तो जातियों की गणना क्यों ना हो? और देश में समय-समय पर जाति जनगणना हुई है, यह भी एक दिलचस्प बात है । 1931 में जाति जनगणना हुई थी। कुछ उसी तर्ज पर 2011 में आर्थिक और सामाजिक जनगणना की गई थी। पिछले कुछ सालों में ओबीसी बीजेपी के बड़े वोट बैंक के तौर पर उभरते नजर आए हैं। हमने मंडल कमंडल की राजनीति भी 90 के दशक में देखी थी लेकिन आजकल कमंडल के साथ मंडल का भी झुकाव बीजेपी की ओर देखा जा रहा है। ऐसे में आज का सबसे बड़ा सवाल …पिछड़े किसे बनाएंगे अगड़ा? जाति की गिनती, 2024 की उल्टी गिनती?