National Rail Museum: साल 1909 में ओखिल चंद्र सेन की एक अनोखी शिकायत ने भारतीय रेल का इतिहास बदलने की नींव रख दी. 2 जुलाई को उन्होंने साहिबगंज डिविजनल रेलवे ऑफिस को पत्र लिखकर बताया कि अहमदपुर स्टेशन पर टॉयलेट के लिए उतरते समय ट्रेन बिना चेतावनी आगे बढ़ गई. उस दौर में ट्रेनों में शौचालय नहीं होते थे, इसलिए यात्रियों को रुकने पर प्लेटफॉर्म या खुले स्थानों का सहारा लेना पड़ता था. ओखिल जैसे ही स्टेशन बिल्डिंग के पीछे गए, गार्ड की सीटी बजते ही ट्रेन चल पड़ी. वह एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती संभालते दौड़े, लेकिन फिसलकर गिर गए और सबके सामने अपमानित हो गए. इस मजेदार मगर मार्मिक शिकायत ने रेल प्रशासन को सोच बदलने पर मजबूर किया और आगे चलकर ट्रेनों में टॉयलेट की सुविधा शुरू होने का मार्ग बनाया.
ओखिल ने इंग्लिश में लिखी कंप्लेंट
इसके बाद ओखिल ने इंग्लिश में एक कंप्लेंट लिखी, जिसमें उसने न सिर्फ ट्रेन छूटने पर बल्कि उससे हुई शर्मिंदगी पर भी गुस्सा दिखाया। उन्होंन लेटर में लिखा कि ‘प्रिय सर, मैं पैसेंजर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा हूं और मेरा पेट कटहल से बहुत ज़्यादा फूल गया हैं. इसलिए, मैं टॉयलेट गया. मैं बस यह कर रहा था कि गार्ड ट्रेन के चलने के लिए सीटी बजा रहा था और मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती लेकर दौड़ रहा था, तभी मैं गिर गया और प्लेटफॉर्म पर मौजूद पुरुषों और महिलाओं को अपनी सारी हैरानी दिखा दी. आपका वफादार सेवक ओखिल चौधरी सेन.’ लेकिन इस मजाक के पीछे एक सच्चाई थी कि लाखों भारतीयों को इसलिए परेशानी हुई क्योंकि ट्रेनों में टॉयलेट नहीं थे.
रेलवे अधिकारियों ने ऑफिशियली माना गंभीर समस्या
इस लेटर के बाद एक इंटरनल जांच शुरू हुई और पहली बार, रेलवे अधिकारियों ने ऑफिशियली माना कि लोअर-क्लास डिब्बों में टॉयलेट की कमी एक गंभीर समस्या थी. रेलवे ने उन सभी लोअर-क्लास डिब्बों में टॉयलेट लगवाए जो 50 मील (लगभग 80 km) से ज़्यादा चलते थे. यह रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर में सबसे जरूरी अपग्रेड में से एक था. जो एक आदमी की बहुत बड़ी पब्लिक बदकिस्मती से शुरू हुआ था. आज, यह लेटर नई दिल्ली के नेशनल रेल म्यूज़ियम में रेलवे के इतिहास के एक हिस्से के तौर पर रखा हुआ है. जहां हर साल हजारों लोग इसे पढ़ते हैं.
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