आसिफ सुहाफ, जम्मू।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद घाटी में सुरक्षा बलों ने आतंकियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ दिया है। इसी दौरान सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी मिली है। सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के ग्रेडबल कैमोह इलाके में एक चेकपॉइंट पर दो आतंकी साथियों को गिरफ्तार किया है। बताया जा रहा है कि दोनों आतंकी टीआरएफ यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट से जुड़े हैं। गिरफ्तार किए गए आतंकियों के पास से दो पिस्तौल, दो मैगजीन और 25 राउंड कारतूस बरामद किए गए हैं।
दो आतंकियों के घर तबाह
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा के मुर्रान इलाके में हुए धमाके में लश्कर के सक्रिय आतंकी अहसान उल हक शेख का घर तबाह हो गया है। अहसान 2023 से आतंकी गतिविधियों में सक्रिय है। वहीं, एक अन्य घटना में पुलवामा के काचीपोरा इलाके में हुए धमाके में लश्कर के आतंकी हारिस अहमद का घर भी तबाह हो गया है। हारिस अहमद भी 2023 से सक्रिय है।
TRF ने ली थी पहलगाम आतंकी हमले की जिम्मेदारी
बता दें कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत की हुई थी। इस कायराना हमले की जिम्मेदारी TRF यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट नाम के आतंकी संगठन ने ली थी। इस आतंकी संगठन की जड़े पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से जुड़ी हुई है। इस संगठन को लश्कर का सहयोगी माना जाता है। इस संगठन का मुखिया शेख सज्जाद गुल है, जो पाकिस्तान में रहता है। खतरनाक आतंकी सज्जाद गुल को हाफिज सईद का राइट हैंड भी माना जाता है। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने सज्जाद के खिलाफ कई सालों से बड़ा इनाम घोषित कर रखा है, उसकी तलाश लगातार जारी है। द रेजिस्टेंट फ्रंट को लश्कर का मुखौटा माना जाता है। जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था तब इस संगठन ने अपने पैर पसारने शुरू किए थे। पहले ये एक ऑनलाइन संगठन की तरह काम करता था और लश्कर को सिर्फ उसके हमलों में कवर देने का काम करता था। लेकिन धीरे-धीरे टीआरएफ ने खुद हमले करने शुरू किए, जब उसे पाकिस्तान की सेना और ISI से फंडिंग मिलनी शुरू हुई।
2019 में अस्तित्व में आया था TRF
टीआरएफ ज्यादातर लश्कर के फंडिंग चैनलों का इस्तेमाल करता है। भारतीय गृह मंत्रालय ने मार्च में राज्यसभा में बताया था कि ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है। ये संगठन साल 2019 में अस्तित्व में आया था।’ इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार पाकिस्तान से रची गई थी। टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा है। इसका गठन इसलिए किया गया ताकि आतंकी हमलों में सीधे पाक का नाम न आए।
2020 में कुलगाम हत्याकांड के बाद सामने आया था TRF
साल 2022 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा था कि कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा 90 से ज्यादा ऑपरेशनों में 42 विदेशी नागरिकों सहित 172 आतंकवादी मारे गए। घाटी में मारे गए आतंकवादियों में से ज्यादातर (108) द रेजिस्टेंस फ्रंट या लश्कर-ए-तैयबा के थे। इसके साथ ही आतंकवादी समूहों में शामिल होने वाले 100 लोगों में से 74 टीआरएफ द्वारा भर्ती किए गए थे।
टीआरएफ के आतंकियों का टारगेट किलिंग पर फोकस
टीआरएफ का नाम पहली बार साल 2020 में कुलगाम में हुए हत्याकांड के बाद सामने आया था। उस समय बीजेपी कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हाजम की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। टीआरएफ के आतंकी टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं। वो ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें।