पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया और पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी के पीछे लोइटरिंग म्यूनिशन का बड़ा हाथ है, जिसे भारत ने पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है। लॉइटरिंग म्यूनिशन एक प्रकार का सटीक हथियार होता है, जो लक्ष्य के ऊपर बाज की तरह मंडराता है और अपने टारगेट की पहचान कर उसे तबाह कर देता है। इस हथियार की मदद से भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना ने समन्वय तरीके से काम करते हुए पूरी सटीकता से आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इस समन्वित प्रयास में तीनों सेनाओं ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के बड़े नेताओं को निशाना बनाया। आइए जानते हैं क्या है ये LM टेक्नोलॉजी और कैसे इसने भारत को इतनी बड़ी सफलता दिलाई?
लोइटरिंग म्यूनिशन का क्यों किया गया इस्तेमाल?
भारत ने ‘सटीक हमला’ करने के लिए लोइटरिंग म्यूनिशन (मंडराते हथियारों) को तैनात किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल आतंकी लॉन्च पैड की पहचान की जाए और उन्हें नष्ट किया जाए। हमलों के निर्देश भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए थे ताकी ऑपरेशन को पूरी तरह से भारतीय धरती से ही अंजाम दिए जा सके। सूत्रों के अनुसार, चयनित लक्ष्यों के लिए विशेष रूप से जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के बड़े नेताओं को चुना गया था, जो भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार हैं। सूत्रों के अनुसार, भारतीय वायुसेना द्वारा खुफिया सूचना के आधार पर किए गए हवाई हमलों में जैश-ए-मोहम्मद के 4 शिविर, लश्कर-ए-तैयबा के 3 ठिकाने और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के 2 ठिकाने नष्ट किए गए हैं।
क्या है लोइटरिंग म्यूनिशन?
लोइटरिंग म्यूनिशन को आत्मघाती या कामीकेज ड्रोन्स भी कहा जाता है। ये अनमैन्ड एरियल हथियार हैं। आसान शब्दों में कहें तो भारत के ये हथियार दुश्मन पर बाज की तरह मंडराते हैं और ढूंढ़कर खत्म कर देते हैं। इनकी खासियत ये है कि ये अपने टारगेट के ऊपर आसमान में मंडराते रहते हैं और कमांड मिलते ही दुश्मन के ठिकाने को तबाह कर देते हैं। ये ड्रोन्स जैसे हथियार कुछ वक्त तक आसमान में मंडराते रहते हैं, इसी वजह से इन्हें ‘Loitering’ कहा जाता है।
सटीकता के लिए जाने जाते हैं
लोइटरिंग म्यूनिशन अपनी सटीकता के लिए जाने जाते हैं। लोइटरिंग म्यूनिशन या आत्मघाती ड्रोन्स का साइज, पेलोड और वारहेड अलग-अलग हो सकते हैं। लोइटरिंग म्यूनिशन एक ही बार के लिए इस्तेमाल होते हैं, क्योंकि ये अपने टारगेट के साथ ही फटकर तबाह हो जाते हैं। यह इंसानी कंट्रोल या ऑटोमैटिक मोड में काम कर सकता है और अपने साथ विस्फोटक ले जा सकता है, जो लक्ष्य पर टकराने के बाद नष्ट हो जाता है। इसकी खासियत यह है कि यह पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में अधिक लचीलापन प्रदान करता है, क्योंकि यह हमले से पहले लक्ष्य की पुष्टि कर सकता है और अनावश्यक नुकसान को कम करता है।
पहली बार कब हुआ था इस्तेमाल?
लोइटरिंग म्यूनिशन का इस्तेमाल पहली बार साल 1980 में हुआ था, लेकिन 1990 और 2000 के दशक में इनका इस्तेमाल बढ़ा। यमन, इराक, सीरिया और यूक्रेन की लड़ाई में इन ड्रोन्स का काफी इस्तेमाल हुआ है।
लोइटरिंग म्यूनिशन की क्या है खासियत?
- सटीक निशाना: ये अपने लक्ष्य पर बिल्कुल सही तरीके से हमला करते हैं।
- कम नुकसान: आम लोगों या आस-पास के इलाकों को नुकसान नहीं पहुंचाते।
- रियल-टाइम कंट्रोल: इन्हें ऑपरेटर सीधे कंट्रोल कर सकते हैं या ऑटोनॉमस तरीके से भी काम कर सकते हैं।
- कोई जोखिम नहीं: इसमें किसी सैनिक की जान जाने का खतरा नहीं होता है। ये चलते-फिरते दुश्मन को भी मार सकते हैं।
- कम लागत: पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में इसकी लागत कम होती है।
🚨BREAKING
🇮🇳India releases official footage of Operation Sindoor air strikes.
At 1 AM on May 7, nine terror sites in Pakistan were hit using cruise missiles, loitering munitions, and armed quadcopters. pic.twitter.com/yNvH1tGJ5P
— EurAsian Times (@THEEURASIATIMES) May 7, 2025