यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) ने बीती 17 अगस्त को एक विज्ञापन सर्कुलेट किया था। इसमें केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी के पदों पर लेटरल रिक्रूटनमेंट के लिए टैलेंटेड और उत्साही भारतीय नागरिकों से आवेदन मांगे गए थे। 45 पदों पर नियुक्ति का यह विज्ञापन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (PSUs), विश्वविद्यालयों और प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी लोगों के लिए जारी किया गया था।
UPSC invites applications for lateral entries at Joint Secretary and Directors Level. See link below for eligibility criteria and application process (deadline 17th Sept). See image for indicative roles that may be availble. #UPSC https://t.co/qcWL890HC1 pic.twitter.com/Mf86X42azs
---विज्ञापन---— Sanjeev Sanyal (@sanjeevsanyal) August 17, 2024
विज्ञापन में यह भी कहा गया था कि सभी पद बेंचमार्क दिव्यांगता वाले लोगों के लिए योग्य हैं। लेकिन, कई विपक्षी दलों ने इस बात को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है कि इस विज्ञापन में अनुसूचित जाती (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण नहीं दिया गया है। इन सबके बीच ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री के जरिए नौकरी देने के इस आइडिया पर कई बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। इस रिपोर्ट में जानिए लेटरल एंट्री विवाद पर उठे 5 बड़े सवालों के जवाब।
1. किसका आइडिया, कब शुरू हुआ काम?
साल 2017 में नीति आयोग अपने तीन साल के एक्शन एजेंडे में और गवर्नेंस पर सेक्रेटरीज के क्षेत्रीय समूह ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि केंद्र सरकार की ब्यूरोक्रेसी के अंदर मिडिल और सीनियर मैनेजमेंट पोजिशंस के लिए ऑल इंडिया सर्विसेज से बाहर के लोगों को रिक्रूट किया जाए। इन लोगों को डोमेन एक्सपर्ट और अहम अंतर भरने वाला बताया गया था। सबसे पहली लेटरल एंट्री रिक्रूटमेंट एनडीए सरकार के कार्यकाल में साल 2018 में हुई थी। हालांकि, इस विचार के बीज कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-आई सरकार के दौरान रोप दिए गए थे। कांग्रेस ने साल 2005 में दूसके प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना की थी। इसकी अध्यक्षता कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली को सौंपी गई थी। मोइली ने विशेष ज्ञान की जरूरत वाली भूमिकाओं में अंतर को पाटने के लिए एक्सपर्ट्स को रिक्रूट करने की सिफारिश की थी।
2. क्या है ये स्कीम और कैसे करती है मदद?
इस योजना के पीछे का आइडिया नए विचारों और एक्सपर्टीज को ब्यूरोक्रेसी में समाहित करने का है। यह काम पर पारंपरिक रूप से ऑल इंडिया सर्विसेज और सेंट्रल सिविल सर्विसेज के ब्यूरोक्रेट्स की मजबूत पकड़ रही है। इस स्कीम में एक्सपर्ट्स को शुरुआत में 3 साल के लिए रिक्रूट किया जाता है। इस अवधि को बाद में 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। अभी तक वह वरिष्ठतम पद जॉइंट सेक्रेटरी यानी संयुक्त सचिव का है जिसके लिए रिक्रूटमेंट हुई है या एजवर्टाइज की गई है। सेक्रेटरी और एडिशनल सेक्रेटरी के बाद सबसे वरिष्ठ पद जॉइंट सेक्रेटरी का होता है। 45 भर्तियों वाले इस विज्ञापन में 10 सीटें जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारियों के लिए रखी गई हैं। इन पदों के लिए विज्ञापन में उभरती टेक्नोलॉजी, सेमीकंडक्टर्स और साइबर सिक्योरिटी में एक्सपर्ट्स को मौका दिया गया है। करियर ब्यूरोक्रेट्स में आम तौर पर ऐसे विशेष कार्यों के लिए जरूरी स्किल सेट नहीं होता है।
✅Lateral Entry into Indian Civil Services
🔰What is lateral entry in the context of the Indian government?
➡️Lateral entry refers to the process of appointing individuals from the private sector, state government, autonomous bodies, or public sector undertakings directly… pic.twitter.com/0Gw3IenIMX
— CSE Aspirants (@cse_aspirantss) August 19, 2024
3. लेटरल एंट्री से कितनी भर्तियां हो चुकी हैं?
साल 2018 के बाद से अब तक लेटरल एंट्री योजना के तहत 63 अधिकारियों को रिक्रूट किया जा चुका है, जो ब्यूरोक्रेसी में एंट्री कर चुके हैं। इनमें से लगभग 35 अधिकारी प्राइवेट सेक्टर के हैं। इन रिक्रूटमेंट्स के तहत साल 2019 में 8 जॉइंट सेक्रेटरीज की भर्ती की गई ती। इसके बाद साल 2022 में 30 अधिकारियों को रिक्रूट किया गया था। इनमें 3 जॉइंट सेक्रेटरी और 27 डायरेक्टर्स थे। देश के कई मंत्रालयों और विभागों में इस समय लेटरल एंट्री के जरिए आए 57 अधिकारी सेवाएं दे रहे हैं। साल 2018 में जो विज्ञापन जारी हुआ था वह जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारियों के केवल 5 पदों के लिए था। डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी की रैंक बाद में खोली गई थीं।
4. विपक्षी नेता किन कारणों कर रहे विरोध?
ब्यूरोक्रेट्स की भर्ती लेटरल एंट्री के जरिए करने के केंद्र सरकार के फैसले की कई विपक्षी नेताओं ने आलोचना की है। विपक्ष का कहना है कि इस योजना का स्वरूप एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को प्रभावित करता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को मिलने वाला आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा है। गांधी ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा करके संविधान पर हमला कर रहे हैं। सपा के प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इसे असंवैधानिक और मनमाना बताया है।
Lateral entry is an attack on Dalits, OBCs and Adivasis.
BJP’s distorted version of Ram Rajya seeks to destroy the Constitution and snatch reservations from Bahujans.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 19, 2024
5. लेटरल एंट्री आरक्षण के घेरे से बाहर क्यों?
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने साल 2019 में राज्यसभा को बताया था कि ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री से होने वाली रिक्रूटमेंट्स पर आरक्षण लागू नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लेटरल एंट्री सिंगल कैडर अपॉइंटमेंट्स हैं जिन पर रिजर्वेशन का नियम अप्लाई नहीं होता। उन्होंने समझाया था कि किस तरह लेटरल एंट्री का इस्तेमाल हर मंत्रालय में खाली पड़े एक पद को भरने के लिए किया जा सकता है। लेटरल एंट्री से होने वाली नियुक्ति उसी तरह है जैसे एक ब्यूरोक्रेट को किसी डिपार्टमेंट में नियुक्त किया जाता है। वहां भी आरक्षण लागू नहीं होता। कुल मुलाकर लेटरल एंट्री के अधिकारी एक छोटी अवधि के लिए होते हैं इसलिए आरक्षण का सेंस भी नहीं बनता।