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400 साल पुराना मंदिर, 100 दरवाजे थे…जानें उस शक्तिपीठ का इतिहास जहां से PM मोदी का दिया मुकुट हुआ चोरी

Jeshoreshwari Temple Shaktipeeth: मां दुर्गा का एक शक्तिपीठ बांग्लादेश में भी है, जिसे जशोरेश्वरी काली मंदिर के नाम से जाना जाता है। साल 2021 में प्रधानमंत्री मोदी इस मंदिर का यात्रा कर चुके हैं। उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भेंट किया गया मां काली का मुकुट चोरी होने के कारण यह सुर्खियों में है। आइए इस शक्तिपीठ के बारे में जानते हैं...

Edited By : Khushbu Goyal | Updated: Oct 11, 2024 12:24
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Jeshoreshwari Temple Shaktipeeth in Bangladesh
प्रधानमंत्री मोदी ने यहां पूरे विधि विधान से पूर्जा अर्चना करके आशीर्वाद लिया था।

Jeshoreshwari Temple Shaktipeeth History: हिंदू मान्यता के अनुसार, मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं। ज्यादातर शक्तिपीठ भारत में मौजूद हैं, लेकिन एक शक्तिपीठ पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी है, जिसे दुनिया जशोरेश्वरी काली मंदिर (Jeshoreshwari Kali ShaktiPeeth) के नाम से जानती है। इस शक्तिपीठ में मां काली के दर्शन साल 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल यात्रा के दौरान किए थे।

उन्होंने मंदिर में विराजमान मां काली को चांदी और सोने की परत चढ़ा मुकुट भेंट किया था, जो चोरी हो गया है। बांग्लादेश के सतखीरा शहर के श्यामनगर उपजिला के गांव ईश्वरीपुर में बने मां काली के इस जेशोरेश्वरी मंदिर में चोरी होने का मामला दोनों देशों में सुर्खियों में है। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार से पुष्टि हुई। पीढ़ियों से इस मंदिर की देखभाल एक परिवार कर रहा है। आजकल इस मंदिर के संरक्षक इसी परिवार के ज्योति चट्टोपाध्याय हैं।

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क्या है मंदिर का इतिहास?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। इस मंदिर को 12वीं शताब्दी में अनारी नामक ब्राह्मण ने बनवाया था। उस समय बनवाया गया मंदिर इतना विशाल था कि इसमें 100 दरवाजे थे। 13वीं शताब्दी में लक्ष्मण सेन नामक शख्स ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। दंतकथा है कि 16वीं शताब्दी में राजा प्रताप आदित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने झाड़ियों में मानव हथेली के आकार की एक चमचमाती चीज देखी।

देवी का रूप मानकर उन्होंने उस जगह पर मंदिर बनाने का ऐलान कर दिया। क्योंकि महाराज मां काली के भक्त थे तो उन्होंने यहां मां काली का मंदिर बनवाया। वैसे इतिहास में इस मंदिर के निर्माता को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। वहीं कहा जाता है कि 1971 के युद्ध में इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। इसके बाद मुख्य मंदिर के पास एक मंच बनाया गया, जिसे नटमंडिर नाम दिया गया। इस मंच से आज मां काली के दर्शन किए जाते हैं। पुराने मंदिर में आज सिर्फ खंभे देखे जा सकते हैं।

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कष्ट और डर दूर करने को दर्शन करने आते लोग

मान्यता है कि इस मंदिर में आकर मां काली के दर्शन करने से सभी प्रकार के कष्ट, दुख और डर से छुटकारा मिल जाता है। इस मंदिर में किसी भी धर्म-संप्रदाय के लोग आ सकते हैं। अब यहां हर शनिवार और मंगलवार को दोपहर के समय इस मंदिर में खास पूजा होती है। हर साल नवरात्रि के दिनों में मां काली की पूजा के दिन मंदिर में विशेष समारोह होता होता और मेला भी लगाया जाता है।

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HISTORY

Edited By

Khushbu Goyal

First published on: Oct 11, 2024 12:23 PM

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