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आज कैसा दिखता है राजा जनक का महल, जिसकी सुंदरता देख दंग रह गए थे भगवान राम

Janakpur Dhaam Palace Beauty: जनकपुर धाम के मुख्य मंदिर के ठीक पीछे एक और मंदिर है, जिसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है।

Edited By : Pooja Mishra | Updated: Jan 4, 2024 19:48
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Janakpur Dhaam Palace Beauty: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर इन दिनों जश्न का माहौल है। ऐसे में इस बीच सीता स्वयंवर और उनकी शादी के बाद की एक कहानी सामने आई है, जिसकी खूब चर्चा हो रही है। कहानी कुछ ऐसी है कि स्वयंवर के बाद कब श्री राम अपने भाइयों के साथ राजा जनक के महल में आते हैं तो यहां की खूबसूरती देखते ही रह जाते हैं। बारातीयों को राजा जनक का महल और यहां का आतिथ्य इतना ज्यादा अच्छा लगता है कि कई महीनों तक वे यहीं रह जाते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि आज भी राजा जनक के इस महल की अलौकिक सुंदरता का लोग बखान करते हैं। इस महल को आज जानकी धाम के नाम से जाना जाता है। इसी महल की आंगन में सीता माता जिन्हें जनकपुर के लोग किशोरी कहते हैं बचपन से किशोरावस्था तक रही थीं।

जनकपुर में है अलौकिक मंदिर

मुख्य मंदिर के पीछे एक और मंदिर है जिसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है। वहां भी सबसे ऊपर राजा जनक और महारानी गोद में जानकी को लिए हुई है। जबकि उसके नीचे किशोरी अपनी बहनों के साथ है और उसके नीचे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हैं। यहां शालीग्राम की पूजा होती है। राजा जनक शालीग्राम की हर रोज पूजा करते थे। मंदिर के पुजारी ने कहा कि जानकीधाम के दाहिने तरफ विवाह मंडप है। मान्यता है की इसी मंडप में प्रभु श्रीराम और उनके तीन अन्य भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की शादी हुई थी। विवाह मंडप में आज भी प्रतिकात्मक मूर्तियां लगी हैं। एक तरफ राजा दशरथ, विश्वामित्र और वशिष्ठ ऋषि हैं तो दूसरी तरफ राजा जनक और उनका परिवार हैं। बीच में शालीग्राम है। विवाह के पश्चात राजा जनक श्रीराम से कहा था कि आप तो जगत पिता हैं, एक बार पाना दिव्य स्वरूप का दर्शन दीजिए। श्री राम ने अपना दिव्य रूप दिखाया था। मंडप के चारों कोनों पर कोहबर है। जो चारों भाइयों का है। मिथिला की परंपरा के अनुसार शादी के बाद वर वधु को कोहबर में रहना पड़ता है।

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सीता स्वयंवर का धनुष

जनक महल से करीब बीस किलोमीटर दूर है धनुष…..राजा जनक प्रतिदिन शालीग्राम की पूजा करने के बाद परशुराम के उस धनुष की पूजा करते थे। यह एक विशाल धनुष था लेकिन किशोरी सीता ने एक दिन दाहिने हाथ से इस धनुष को उठा लिया तभी राजा जनक ने कहा था जो राजकुमार इस धनुष को उठाएगा वही सीता के विवाह के योग्य होगा। श्रीराम ने जैसे ही धनुष को कान तक खींचा, वैसे ही वह बीच में से टूट गया इसके तीन टुकड़े हो गए। एक टुकड़ा आकाश में उड़ गया जो रामेश्वरम में गिरा, दूसरा पाताल कुंड में और तीसरा जो मध्य भाग था वह धनुषा में आज भी मौजूद है। आज भी वैज्ञानिक नहीं पता कर पाए है कि आखिर यह किस धातु से बनी है।

First published on: Jan 04, 2024 06:46 PM

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