संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में पास वक्फ संशोधन बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मंजूरी मिल गई है। अब यह विधेयक कानून बन गया है। विपक्षी दलों के साथ मुस्लिम संगठनों के नेता इस कानून से नाराज हैं। ऐसे में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती दी। आइए जानते हैं कि क्यों सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने वक्फ संशोधन विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की, जिसमें दावा किया है कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनने की एक खतरनाक साजिश है। सुप्रीम कोर्ट में इस बिल की वैधता को चैलेंज करने के लिए कई पिटीशन दाखिल की गई हैं, जिनमें से एक समस्त केरल जमीयतुल उलेमा की याचिका भी है।
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संविधान पर सीधा हमला करता है ये कानून : जमीयत
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में कहा कि यह वक्फ संशोधन एक्ट देश के संविधान पर सीधा हमला है। जमीयत ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक खतरनाक साजिश है, इसलिए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राज्य इकाइयां भी अपने-अपने राज्यों के हाई कोर्ट में इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देंगी।
केरल जमीयतुल उलेमा ने भी खटखटाया SC का दरवाजा
इसमें यह भी कहा गया है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने न सिर्फ वक्फ संशोधन एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है, बल्कि इस कानून को प्रभावी होने से रोकने के लिए अदालत में एक अंतरिम याचिका भी दायर की है। केरल में सुन्नी मुस्लिमों के धार्मिक संगठन समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने SC में अलग से दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि यह कानून धार्मिक मामलों में संप्रदाय के अधिकारों में स्पष्ट हस्तक्षेप है।
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