भारत ने पहली बार दो नए चावल के बीज तैयार किए हैं। इनका नाम है ‘कमला-DRR धन-100’ और ‘पुसा DST राइस 1’। ये खास बीज बहुत फायदे वाले हैं। इनसे खेती में ज्यादा पैदावार होगी। ये चावल की फसल 15 से 20 दिन पहले ही पक जाएगी, यानी जल्दी तैयार हो जाएगी। इसके अलावा इससे एक हेक्टेयर खेत में 30% तक ज्यादा चावल पैदा हो सकता है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इन चावलों को उगाने के लिए कम पानी लगेगा और इससे पर्यावरण को भी कम नुकसान होगा क्योंकि ये गैसों का उत्सर्जन भी कम करेंगे। लेकिन किसानों को इन बीजों को इस्तेमाल करने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना होगा। इन बीजों को खेतों तक पहुँचने में 4 से 5 साल का समय लग सकता है। इसकी वजह यह है कि पहले इन्हें खास प्रक्रिया से गुजरना होगा जैसे ब्रीडर बीज, फाउंडेशन बीज और फिर प्रमाणित बीज बनाना पड़ेगा। इसके बाद ही ये बीज किसानों को दिए जा सकेंगे।
क्या होती है जीन एडिटिंग
जीन एडिटिंग और जेनेटिक मॉडिफिकेशन (GM) दोनों फसलों को बदलने की तकनीकें हैं, लेकिन इन दोनों में एक बड़ा फर्क है। जीन एडिटिंग में किसी दूसरे जीव का जीन नहीं डाला जाता, जबकि GM में बाहर से जीन जोड़ा जाता है। इसलिए जीन एडिटिंग को ज्यादा सुरक्षित और प्राकृतिक माना जाता है। भारत सरकार ने कुछ साल पहले SDN1 और SDN2 नाम की तकनीकों से तैयार किए गए पौधों को नियमों में छूट दे दी थी। इसका मतलब यह है कि अब इन पौधों को GEAC (जो नियम बनाती है) की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। इन्हीं तकनीकों का इस्तेमाल करके दो नई चावल की किस्में बनाई गई हैं। सरकार ने 2023-24 के बजट में जीन एडिटिंग के काम के लिए ₹500 करोड़ भी तय किए थे, जिससे इस तकनीक को और बढ़ावा मिलेगा।
Union Agriculture Minister Shri Shivraj Singh Chouhan Announces Two Genome-Edited Rice Varieties Developed in India
India Becomes the First Country in the World to Develop Genome-Edited Rice Varieties
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— PIB Agriculture (@PIBAgriculture) May 4, 2025
सांबा मशूरी और MTU 1010 को सुधारकर बनीं नई किस्में
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने साल 2018 में इस काम की शुरुआत की थी। यह काम ‘नेशनल एग्रीकल्चरल साइंस फंड’ के तहत हुआ। वैज्ञानिकों ने भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली दो चावल की किस्मों को चुना सांबा मशूरी और MTU 1010 सांबा मशूरी का चावल बहुत अच्छा होता है, लेकिन यह बदलते मौसम को सहन नहीं कर पाता। वहीं MTU 1010 जल्दी पकने वाला चावल है, लेकिन यह सूखा और खराब मिट्टी बर्दाश्त नहीं कर सकता। वैज्ञानिकों ने इन दोनों किस्मों को जीन एडिटिंग की तकनीक से और बेहतर बनाया और इनके नए नाम रखे ‘कमला’ और ‘पुसा DST राइस 1’। अब ये नई किस्में ज्यादा मजबूत, जल्दी पकने वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली बन गई हैं।
अब किसानों तक पहुंचाने की तैयारी
मैदानों में जब इन नए चावलों की किस्मों का परीक्षण किया गया, तो अच्छे नतीजे सामने आए। कमला (DRR धन-100) की औसत पैदावार 5.37 टन प्रति हेक्टेयर रही, जो पहले वाली किस्म सांबा मशूरी से 19% ज्यादा है। वहीं पुसा DST राइस 1 की पैदावार 9% से 30% तक ज्यादा रही। यह पैदावार मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। इन दोनों किस्मों को अब देश के कई राज्यों में खेती के लिए रेकमेंडेड किया गया है, जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा। अब इन नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए ICAR के वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्रों के विशेषज्ञ हर साल दो बार 15 दिन तक गांवों में जाकर किसानों से मिलेंगे। वे किसानों को इन नई चावल की किस्मों और खेती की आधुनिक तकनीकों के बारे में आसान भाषा में जानकारी देंगे।