भारत, दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां की एक बड़ी आबादी युवा है. कई देश ऐसे भी हैं जहां की आबादी में बूढे़ लोग अधिक है, लेकिन भारत के विकास को देखते हुए युवा आबादी किसी वरदान से कम नहीं है. बीते कुछ वर्षों से इस वरदान को शायद किसी की नजर लग गई है, क्योंकि देश में नौजवानों के बीच आत्महत्या के मामले अब बढ़ते ही जा रहे हैं. हाल ही में एक दिल्ली के एक छात्र शौर्य पाटिल ने राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन से कूदकर जान दे दी, जिससे यह सवाल उठता है कि आखिर हमारे युवा इतनी हताशा में क्यों हैं?
एनसीआरबी की चौंकाने वाली रिपोर्ट
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 1995 से 2021 तक लगभग 1,34,735 युवाओं ने आत्महत्या की, जबकि 2022 में यह संख्या बढ़कर 1,70,924 हो गई. आपको जानकर हैरानी होगी कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल वह राज्य रहे जहां आत्महत्या के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए. रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल के बाद भी युवा वर्ग के मानसिक दबाव और नौकरी, पढ़ाई के तनाव के कारण इस संख्या में इजाफा हुआ है.
पुरुष की तुलना में महिलाओं की आत्महत्या दर
पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आत्महत्या दर कम है, लेकिन मानसिक अवसाद जैसे कारण महिलाओं में अधिक पाये जाते हैं. 18 से 30 वर्ष के बीच युवा सबसे ज्यादा प्रभावित हैं और उनके आत्महत्या के कारणों में नौकरी की चिंता, पारिवारिक दबाव और मानसिक तनाव मुख्य रूप से सामने आते हैं. राजस्थान के कोटा जिले में छात्र आत्महत्या का मामला सबसे संवेदनशील बन चुका है. कोटा पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2015 से 2022 तक यहां आत्महत्या के मामले लगातार बढ़े. छात्रों पर बढ़ता परीक्षा और परिवार का दबाव उनके जीवन को कठिन बना रहा है.

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2023 तक 1,72,451 युवाओं ने खत्म की जिंदगी
एनसीआरबी की 2023 रिपोर्ट कहती है कि पूरे देश में कुल 1,72,451 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए, जिसमें छात्रों के 13,044 मामले खासतौर पर चिंताजनक हैं. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और मध्य प्रदेश में छात्र आत्महत्या की संख्या सबसे ज्यादा है. यह समस्या सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक प्रणाली का एक जुड़ा हुआ मुद्दा है. इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार, परिवार और समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि युवाओं को सही मार्गदर्शन, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और एक सुरक्षित माहौल मिल सके.










