BJP Foundation Day: भारतीय जनता पार्टी आज अपना 44वां स्थापना दिवस मना रही है। 6 अप्रैल 1980 को जन्मी बीजेपी 2019 तक विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी यह किसने सोचा था। 1980 में बीजेपी का पहला अधिवेशन मुबंई में होता है। इस अधिवेशन में भाजपा के पहले अध्यक्ष स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था भाजपा का अध्यक्ष पद कोई अलंकार की वस्तु नहीं है। ये पद नहीं दायित्व है। प्रतिष्ठा नहीं है परीक्षा है। ये सम्मान नहीं है चुनौती है। मुझे भरोसा है कि आपके सहयोग से देश की जनता के समर्थन से मैं इस जिम्मेदारी को ठीक तरह से निभा सकूंगा।
अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा
अपने भाषण को समाप्त करते हुए उन्होंने आखिरी में कहा था भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं ये भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि ‘अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’। वास्तव में 42 साल पहले उन्होंने जो कहा था वो आज हकीकत में बदल गया है। बीजेपी 2023 में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। तो वहीं उसकी 16 से अधिक राज्यों में उसकी सरकार है।
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6 अप्रैल 1980 को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में जनसंघ से निकले लोगों ने बीजेपी बनाई। हिंदुत्व और राम जन्मभूमि के रथ पर सवार बीजेपी को पहली सरकार बनाने का मौका 1996 में मिला।
भारतीय जनसंघ से शुरू हुआ सफर
देश की आजादी के बाद बनी अंतरिम सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू जी के मंत्रिमंडल का हिस्सा होते है। लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदूओं पर हो रहे अत्याचारों पर नेहरू जी की चुप्पी के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उस समय के राजनीति विद्वानों की मानें तो मुखर्जी ने कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। मंत्रिमंडल से निकलने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संघ के उस समय के प्रचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। भारतीय जनसंघ ने 1951 का पहला आमचुनाव लड़ा। पार्टी को 3 सीटें मिली। 1977 के चुनावों में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया।
कुछ इस तरह हुआ बीजेपी का जन्म
भारतीय जनता पार्टी संस्थापक सदस्य रहे लाल कृष्ण आडवाणी अपनी आत्मकथा मेरा देश, मेरा जीवन में लिखा कि एक विषय जिसने पूरे राजनीतिक जीवन में मुझे चकित किया है, वह है भारतीय मतदाता चुनावों में अपनी पसंद का निर्धारण कैसे करते हैं? कई बार उनके रुझान का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर नहीं।
भारतीय मतदाताओं के विशाल विविधता के चलते सामान्यत: चुनाव के परिणामों का पूर्वानुमान लगाना असंभव होता है। मैंने ऐसा वर्ष 1977 के आम चुनावों से पहले किया था, जो आपातकाल के बाद हुए थे। और मैंने पुन: ऐसा ही 1980 के आरंभ में किया, जब छठी लोकसभा भंग होने के बाद मध्यावधि चुनाव हुए थे। मैं जानता था कि राजनीतिक पार्टी का सफाया हो जाएगा और इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में लौटेंगी।
और हमें निष्कासित कर दिया गया
आडवाणी लिखते हैं जनता पार्टी के भीतर संघ विरोधी अभियान ने 1980 के लोकसभा चुनावों में कार्यकर्ताओं के उत्साह को ठंडा कर दिया था। इससे स्पष्ट रूप से कांग्रेस को लाभ हुआ और चुनावों में इसने जनता पार्टी के प्रदर्शन को गिराने का प्रयास किया। 4 अप्रैल को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक अहम बैठक नई दिल्ली में निश्चित की गई, जिसमें दोहरी सदस्यता के बारे में आखिरी फैसला लिया जाना था।
मोरारजी देसाई और कुछ अन्य सदस्यों ने हमें पारस्परिक समझौते की स्वीकार्यता के आधार पर जनता पार्टी में बनाए रखने का अंतिम प्रयास किया। परंतु भविष्य लिखा जा चुका था। जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने समझौते फॉर्मूले को 14 की तुलना में 17 वोटों से अस्वीकार कर दिया और प्रस्ताव पारित किया गया कि पूर्व जनसंघ के सदस्यों को निष्काषित कर दिया जाए।
एक दल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा
आडवाणी के अनुसार विचित्र संयोग था कि अगले ही दिन जगजीवन राम जनता पार्टी को छोड़कर वाई वी चव्हाण के नेतृत्ववाली कांग्रेस (यू) पार्टी में शामिल हो गए। चरण सिंह ने पहले ही पार्टी छोड़ दी थी। मूल जनता पार्टी में जो लोग बचे थे, वे बस अवशेष थे, जिसकी अध्यक्षता चंद्रशेखर कर रहे थे। कई आलोचक पार्टी का मजाक उड़ाने लगे। एक फिल्म गाने, दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा में उन्होंने दिल शब्द को दल से बदलकर व्यंग्यात्मक रूप में कहा, एक दल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा।
कुछ इस तरह फिरोजशाह कोटला में हुआ जन्म
आडवाणी के अनुसार, दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में 5-6 अप्रैल, 1980 के दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में 3, 500 से अधिक प्रतिनिधि एकत्र हुए और 6 अप्रैल को एक नए राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के गठन की घोषणा की गई। अटल बिहारी वाजपेयी को इसका पहला अध्यक्ष चुना गया। मुझे सिकंदर बख्त और सूरजभान के साथ महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। यह कयास लगाए जाने लगे कि क्या नई पार्टी जनसंघ को पुनःजीवित करेगी। अटल जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में स्पष्ट रूप से इस कयास को नकार दिया। उन्होंने कहा, नहीं हम वापस नहीं जाएंगे।
1984 में मिली 2 सीटें
1980 में गठन के बाद पार्टी ने पहला आम चुनाव 1984 में लड़ा। तब उन्हें केवल दो सीटों पर ही कामयाबी मिली लेकिन उस चुनाव में बीजेपी को देश में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा वोट शेयर हासिल हुए थे। तब पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा परिवार नियोजन के नारे हम 2 हमारे 2 का सही से पालन तो बीजेपी ने किया है। 1984 के चुनाव में बीजेपी को दो सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में देशभर में इंदिरा सहानूभूति लहर के बावजूद यहां बीजेपी के चंदूपाटिया रेड्डी ने जीत का परचम लहराया था। चंदू पाटिया ने कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को पटखनी दी थी।
1989 में मिली 85 सीटें
1984 के आम चुनावों के बाद बीजेपी गांधीवादी आदर्शवाद से बाहर निकलकर हिंदूत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ी। 1984 में लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए। पार्टी ने विश्व हिंदू परिषद के साथ मिलकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अभियान की शुरुआत की। राम मंदिर आंदोलन ने भाजपा की लोकप्रियता में जबरदस्त बढोतरी की। लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने 1989 के चुनावों में बीजेपी को मुख्यधारा की राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। पार्टी को चुनावों में 85 सीटों पर जीत मिली। इसके बाद तीसरे मोर्चे की गठबंधन सरकार में वीपी सिंह की सहयोगी भी बनी।
06 दिसंबर 1992 का इतिहास
06 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इससे जुड़े संगठनों की रैली अयोध्या पहुंची। इसमें हजारों कार्यकर्ता शामिल थे। बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। देशभर में सांप्रदायिक हिंसा हुई। दो हजार से अधिक लोग मारे गये। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत कई नेता विध्वंस के दौरान उत्तेजक भड़काऊ भाषण देने के कारण गिरफ़्तार कर लिए गए।
3 बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी
6 दिसंबर 1992 की हिंसा के बाद पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। पार्टी को 1991 के आम चुनावों में पार्टी को 120 लोकसभा सीटों पर जीत मिली। 1996 के चुनाव में बीजेपी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राष्ट्रपति ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार कुछ दिनों में ही गिर गई। 1998 के मध्यावधि चुनावों में एक बार फिर पार्टी सबसे ज्यादा 182 सीटें मिली।
बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनाई। लेकिन यह सरकार भी 13 महीने ही चल पाई। जयललिता के गठबंधन से समर्थन वापस ले लेेने के कारण सरकार गिर गई। एक बार फिर 1999 में मध्यावधि चुनाव हुए इस बार भी बीजेपी को 182 सीटें मिली। अटल तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और देश के पहले ऐसे गैर कांग्रेसी पीएम बने जिन्होंने सफलतापूर्वक 5 वर्ष तक गठबंधन सरकार चलाई। 1999 की गठबंधन सरकार में कुल 22 दल थे।
अटल-आडवाणी युग का अंत
दिसंबर 2003 में पार्टी को राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में जीत मिली। इस जीत से गदगद बीजेपी के उस समय के सबसे बड़े सिपहसालार प्रमोद महाजन ने पीएम वाजपेयी से कहा कि मानसून शानदार रहा है, पार्टी को 3 बड़े हिंदी भाषी राज्यों में सत्ता हासिल हुई है क्यों ना समय से पहले चुनाव करा लिया जाए। वाजपेयी ने हामी भर दी। समय से 5 महीने पहले चुनाव हुए। पार्टी को 2004 के लोकसभा चुनावों में मात्र 138 सीटें मिली। इसके बाद शुरू हुआ वाजपेयी और बीजेपी के नेपथ्य का दौर। वाजपेयी का स्वास्थ्य भी अब कुछ ठीक नहीं रहता था। पार्टी की गतिविधियों में उन्होंने हिस्सा लेना बंद कर दिया था। उनका अधिकतर समय अब घर में ही बीतने लगा। 2009 में पार्टी के अध्यक्ष बने नितिन गडकरी। उनकी अध्यक्षता में पार्टी को 2009 के लोकसभा चुनावों में 116 सीटों पर जीत हासिल हुई।
मोदी शाह के युग की शुरूआत
2014 के आम चुनावों से पहले बीजेपी को ऐसे करिश्माई नेता की जरूरत थी जो उसे पुनः केंद्र की सत्ता में पहुंचा दे। पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम इन वेटिंग घोषित किया। और इसके बाद की कहानी आप और हम सब जानते हैं। पार्टी को इस चुनाव में 282 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं एनडीए गठबंधन को 334 सीटें मिली। अगले लोकसभा चुनावों ने बीजेपी की टैली को और मजबूत होते हुए ही देखा। 2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं और मोदी फिर प्रधानमंत्री बने।
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एक नजर में अब तक बीजेपी के अध्यक्ष
1. अटल बिहारी वाजपेयी – 1980 से 1986 तक
2. लाल कृष्ण आडवाणी – 1986 से 1990 तक
3. डॉ. मुरली मनोहर जोशी – 1990 से 1992
4. लाल कृष्ण आडवाणी – 1992 से 1998
5. स्व. कुशाभाऊ ठाकरे – 1998 से 2000
6. स्व. बंगारू लक्ष्मण – 2000 से 2001
7.स्व. के. जना कृष्णमूर्ति – 2001 से 2002
8. एम. वेंकैया नायडू – 2002 से 2004
9. लाल कृष्ण आडवाणी – 2004 से 2006
10 राजनाथ सिंह – 2006 से 2009
11. नितिन गडकरी – 2009 से 2013
12. राजनाथ सिंह – 2013 से 2014
13. अमित शाह – 2014 से 2020
14. जेपी नड्डा – 2020 से अब तक
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