Earthquake in Asian Countries: हिमालयन फॉल्ट लाइन पर भारत सरकार की मदद से अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक स्टडी की थी। इस स्टडी को यूएस जर्नल लिथोस्फीयर और जेजीआर में छपी थी। स्टडी के मुताबिक हिमालय कुछ सेंटीमीटर के हिसाब से उत्तर में खिसक रहा है। स्टडी को लीड कर चुके सीपी राजेंद्रन के मुताबिक हिमालय 700 साल पुरानी फॉल्ट लाइन पर मौजूद है। ये फॉल्ट लाइन ऐसी जगह पर पहुंच चुकी है, जिसकी वजह से कभी भी वहां ऐसा बड़ा भूकंप आ सकता है, जो पिछले 500 साल में नहीं देखा गया हो। सवाल ये कि भूकंप आता क्यों और कैसे है?
पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित
भूकंप की वजह बनती हैं धरती की प्लेट जो आपस में टकराती हैं। पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है जिसे भूकंप कहते हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वो जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं। जब ज्यादा दबाव बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं, इससे नीचे की एनर्जी बाहर आने का रास्ता तलाशती हैं और डिस्टर्बेंस के बाद भूकंप आता है।
भूकंप आने की सबसे बड़ी वजह क्या?
सवाल ये भी कि धरती की प्लेट्स क्यों टकराती हैं। दरअसल ये प्लेंटे बेहद धीरे-धीरे घूमती रहती हैं, जिससे ये हर साल 4-5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं। जिस वजह से आता है भूकंप।
म्यांमार में इतना तेज भूकंप क्यों?
म्यांमार में धरती की सतह के नीचे की चट्टानों में मौजूद एक बहुत बड़ी दरार है, जो देश के कई हिस्सों से होकर गुजरती है। यह दरार म्यांमार के सागाइंग शहर के पास से गुजरती है इसलिए इसका नाम सागाइंग फॉल्ट पड़ा। यह म्यांमार में उत्तर से दक्षिण की तरफ 1200 किमी तक फैली हुई है। इसे ‘स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट’ कहते हैं, जिसका मतलब है कि इसके दोनों तरफ की चट्टानें एक-दूसरे के बगल से हॉरिजॉन्टल दिशा में खिसकती हैं, ऊपर-नीचे नहीं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे दो किताबें टेबल पर रखी हों और उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ स्लाइड किया जाए। यह दरार अंडमान सागर से लेकर हिमालय की तलहटी तक जाती है और पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेट्स के हिलने-डुलने से बनी है। भारतीय प्लेट उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ रही है, जिससे सागाइंग फॉल्ट पर दबाव पड़ता है और चट्टानें बगल में सरकती हैं।