AAP MP Raghav Chadha in Rajya Sabha: राज्यसभा में बजट पर चर्चा के दौरान आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद राघव चड्ढा ने अपने भाषण में कहा कि गरीबों को सब्सिडी और स्कीम्स मिल जाती हैं, अमीरों के कर्ज माफ कर दिए जाते हैं, लेकिन मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिलता। सरकार सोचती है कि मिडिल क्लास के पास कोई सपने और अरमान नहीं हैं। इसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है, जिसे बार-बार निचोड़ा जाता है।
राघव चड्ढा ने उठाई मिडिल क्लास की परेशानी
उन्होंने कहा कि अगर अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, तो मांग भी बढ़ रही है, लेकिन यह मांग मिडिल क्लास से ही है जिसकी जेबें खाली हैं। जनगणना और सर्वेक्षण भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मिडिल क्लास के अपने सपने और अरमान होते हैं और उनके बच्चों की आंखों में ख्यालों का आसमान होता है। उन्होंने कहा, “1989 में अमेरिका में फिल्म ‘हनी, आई श्रंक द किड्स’ आई थी और 2025 में भारत में फिल्म बनेगी ‘हनी, आई श्रंक इंडियाज मिडिल क्लास’।”
‘मिडिल क्लास से हर बार वसूली की जाती है’
सांसद राघव चढ्डा ने कहा कि 87,762 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि की मांग के लिए विधेयक का विनियोजन किया गया है। लेकिन, यह राशि कहां से आएगी और इसका बोझ किस पर डाला जाएगा? उन्होंने कहा, “मिडिल क्लास वो वर्ग है जिससे हर बार वसूली की जाती है। नई संसद बनानी हो या अन्य खर्चे, सबकी भरपाई मिडिल क्लास से की जाती है। राघव चड्ढा ने कहा कि रिपोर्ट्स बताती हैं कि मिडिल क्लास की खर्च करने की क्षमता और उपभोग में कमी आई है। उन्होंने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि ’12 लाख रुपये कर योग्य आय = कोई कर नहीं।’ लेकिन यह छूट भी उतनी सरल नहीं है। यदि आप 12 लाख से अधिक कमाते हैं, जैसे कि 12.10 लाख रुपये कमाते हैं, तो आपको स्लैब के अनुसार टैक्स भरना होगा।”
‘मिडिल क्लास सोने का अंडा देने वाली मुर्गी’
सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि भारत की 140 करोड़ आबादी में से केवल 6.68% लोग ही इन छूटों का लाभ उठा पाते हैं। 8 करोड़ भारतीय कर दाखिल करते हैं, लेकिन उनमें से 4.90 करोड़ लोग शून्य आय दिखाते हैं और केवल 3.10 करोड़ लोग ही टैक्स भुगतान करते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि टैक्स का असली बोझ मिडिल क्लास पर ही है। उन्होंने वित्त मंत्री की उस सोच को भी खारिज किया कि इस टैक्स छूट से खपत में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा, “यह खपत तब तक नहीं बढ़ेगी, जब तक जीएसटी दरें कम नहीं की जातीं। जीएसटी का भुगतान सभी करते हैं, न कि केवल आयकरदाताओं द्वारा। आम आदमी जब दूध, सब्जी और दवाइयों पर भी टैक्स भरता है तो उसकी जेब और हल्की होती जाती है।”
राघव चड्ढा ने कहा कि सरकार की नीतियां गरीबों और अमीरों के लिए अलग-अलग हैं। गरीबों को सब्सिडी और योजनाएं मिलती हैं जबकि अमीरों के कर्ज माफ कर दिए जाते हैं। लेकिन मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिलता। न सब्सिडी, न टैक्स में राहत और न ही किसी योजना का लाभ। उन्होंने कहा, “मिडिल क्लास उस मुर्गी की तरह है जो सोने का अंडा देती है, लेकिन सरकार उसे भी खुश नहीं रखती।”
मिडिल क्लास के अरमान टैक्स के बोझ तले दबे
राघव चड्ढा ने कहा कि मिडिल क्लास सबसे बड़ा टैक्सदाता हैं लेकिन, उसे सबसे कम लाभ मिलता है। सैलरी बढ़ती नहीं, बचत नहीं हो पाती और महंगाई लगातार बढ़ती जाती है। जब खाद्य पदार्थों की महंगाई 8 फीसदी से अधिक बढ़ती है तो वेतन वृद्धि 3 फीसदी से भी कम होती है।
महंगाई और कर्ज के जाल में फंसा मिडिल क्लास
उन्होंने कहा, “मिडिल क्लास को किताब, कॉपी, दवाइयां, मिठाइयां, कपड़े, मकान हर चीज पर टैक्स देना पड़ता है। मेहनत से कमाई गई हर चीज पर टैक्स लगाया जाता है। मिडिल क्लास के अरमान भी टैक्स के बोझ तले दब जाते हैं। आय स्थिर है लेकिन, खर्चे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बच्चों की शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य खर्च तक, हर मोर्चे पर मिडिल क्लास संघर्ष कर रहा है।” उन्होंने आगे कहा कि मिडिल क्लास के लोग कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। पूरी जिंदगी काम करने के बाद भी 2BHK घर खरीदने के लिए मिडिल क्लास को 20-25 साल के कर्ज में डूबना पड़ता है। सैलरी 7 तारीख को आती है लेकिन, मकान मालिक 1 तारीख को किराया मांगता है। बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है और स्वास्थ्य आपातकाल के समय तो सोना तक गिरवी रखना पड़ता है। यह स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि FMCG कंपनियों जैसे नेस्ले इंडिया की ग्रोथ वर्षों में सबसे धीमी रही है, क्योंकि मिडिल क्लास अब खर्च नहीं कर रहा है। सस्ती चीजों की मांग गिर गई है, लोग अब खर्च करने से बच रहे हैं।
भारतीय रेलवे जनता से वसूल रही प्रीमियम किराया, लेकिन सुविधाएं जीरो
रेलवे की स्थिति पर भी राघव चड्ढा ने सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि रेलवे में सुविधाएं घटती जा रही हैं, जबकि किराया बढ़ता जा रहा है। वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों में आम आदमी यात्रा नहीं कर सकता और बुजुर्गों की सब्सिडी भी बंद कर दी गई है। सांसद राघव चड्ढा ने आरोप लगाया कि जनता से प्रीमियम किराया वसूला जा रहा है लेकिन, सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हुआ है। वंदे भारत और बुलेट ट्रेन जैसी महंगी परियोजनाएं केवल अमीरों के लिए हैं।
उन्होंने रेलों की रफ्तार पर बात करते हुए कहा, दुनिया भर में जब ट्रेनों की स्पीड बढ़ रही है लेकिन, भारतीय रेलवे की रफ्तार घटती जा रही है। वंदे भारत की स्पीड भी घटा दी गई है। जबकि किराया 2013-14 के 0.32 रुपये प्रति किलोमीटर से बढ़कर 2021-22 में 0.66 रुपये हो गया है जो 107 फीसदी की वृद्धि है। वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनें खाली चल रही हैं क्योंकि आम आदमी के लिए ये ट्रेनें अब किफायती नहीं रहीं। सरकार ने दावा किया था कि ‘हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई यात्रा करेगा’ लेकिन, अब रेल यात्रा भी आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। राघव चड्ढा ने कहा कि आम आदमी मजबूरी में ही रेलवे का रुख करता है, लेकिन रेल मंत्री को रेल से ज्यादा रील्स में दिलचस्पी है। उनका ध्यान सोशल मीडिया पर व्यूज और लाइक्स पर है, न कि यात्रियों की असल समस्याओं पर।
स्वच्छता संबंधी शिकायतों में 500 फीसदी की वृद्धि
उन्होंने कहा, 3AC और 2AC को ‘लक्जरी’ माना जाता था लेकिन, अब इनकी हालत जनरल डिब्बों से भी खराब हो गई है। टिकट लेने के बावजूद यात्रियों को सीट मिलने की कोई गारंटी नहीं है। ट्रेनों में भीड़ इतनी बढ़ गई है कि लोग आलू की बोरियों की तरह एक-दूसरे पर चढ़े रहते हैं। शौचालय में जगह मिलना भी अब सौभाग्य की बात हो गई है। कंबल और चादरें गंदी हैं, जिनसे दुर्गंध आती है। प्लेटफॉर्म पर गंदगी, गंदा पानी, और खाने में कीड़े-मकोड़े आम शिकायतें बन चुकी हैं। पिछले दो वर्षों में स्वच्छता संबंधी शिकायतों में 500 फीसदी की वृद्धि हुई है।
टिकट बुकिंग पर बोलते हुए राघव चड्ढा ने कहा, टिकट बुक करना मुश्किल हो गया है, जिससे लोग थर्ड-पार्टी ऐप्स का सहारा लेते हैं जो भारी कमीशन वसूलते हैं। टिकट कैंसिल करने पर भी यात्रियों से भारी शुल्क लिया जाता है। प्लेटफॉर्म टिकट और स्टेशन पर मिलने वाला खाना महंगा हो चुका है। बिसलेरी की जगह नकली पानी बेचा जा रहा है और खाने में घटिया सामग्री का उपयोग हो रहा है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि 140 करोड़ लोगों में से कितने लोग बुलेट ट्रेन और वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं? अगर 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देना पड़ता है तो वही लोग 2,000-3,000 रुपये के टिकट कैसे खरीद पाएंगे? जिनकी महीने भर की कमाई ही 8,000-10,000 रुपये है, वे इतनी महंगी ट्रेन यात्रा कैसे कर पाएंगे?
रेलवे बुजुर्गों को फिर से दे सब्सिडी
सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि देश को कुछ बुलेट ट्रेनों की नहीं बल्कि हजारों किफायती सामान्य ट्रेनों की जरूरत है। महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में लोग सस्ती यात्रा चाहते हैं न कि महंगी हाई-स्पीड ट्रेनें। 2020 में रेलवे ने बुजुर्गों की यात्रा सब्सिडी बंद कर दी, जिससे 15 करोड़ सीनियर सिटिजंस प्रभावित हुए। राघव चड्ढा ने सवाल उठाया कि क्या हमारी रेलवे अब इतनी निर्मम हो गई है कि बुजुर्गों की सूखी हड्डियों को निचोड़कर पैसा कमाना पड़ रहा है? रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों का सपना होता है तीर्थ यात्रा करने का, लेकिन सरकार ने उनसे ये सुविधा भी छीन ली। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि बुजुर्गों के साथ नाइंसाफी न करें। बुजुर्गों की सब्सिडी को फिर से शुरू किया जाए ताकि वे अपने जीवन के आखिरी वर्षों में सम्मानपूर्वक यात्रा कर सकें। जब ये बुजुर्ग तीर्थ यात्रा करेंगे, तो वे आपके लिए भी दुआ करेंगे।
रेल हादसों पर भी उठाए सवाल
सांसद राघव चढ्डा ने रेल हादसों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, हमारे रेल मंत्री को रेलवे और जनता की सुरक्षा की कोई फिक्र नहीं है। रेल मंत्री ‘कवच सिस्टम’ की बात करते हैं, मगर हर हफ्ते कोई न कोई रेल दुर्घटना हो ही जाती है। पहले भारतीय रेलवे को सुरक्षित यात्रा का पर्याय माना जाता था लेकिन, आज कोई गारंटी नहीं है कि आप जहां जाना चाहते हैं वहां सुरक्षित पहुंच भी पाएंगे। पिछले 5 वर्षों में 200 से अधिक रेल दुर्घटनाओं में 351 लोगों की जान गई और 1000 से अधिक लोग घायल हुए। बालासोर रेल दुर्घटना (जून 2023) में 293 लोग मारे गए और 1100 से ज्यादा लोग घायल हुए, लेकिन जांच और कार्रवाई के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
ट्रंप की नीतियों से खतरे में पड़ीं लाखों नौकरियां
राघव चड्ढा ने अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि एच-1बी वीजा प्रतिबंध और टैरिफ की वजह से भारतीय पेशेवरों और उद्योगों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय आईटी निर्यात, फार्मास्युटिकल्स, और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर अमेरिकी टैरिफ से भारी नुकसान हो रहा है, जिससे लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। एच-1बी वीजा प्रतिबंध से सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय होंगे। 2023 में कुल 3.86 लाख एच-1बी आवेदनों में से 72% आवेदन भारतीयों के थे। इससे भारतीय प्रोफेशनल्स की बड़ी संख्या में नौकरियां चली जाएंगी। इससे अनुमानित 5 लाख भारतीयों के अमेरिका में नौकरी जाने की संभावना है। वहीं, एच-1बी वीजा की लागत बढ़ने के कारण भारतीय आईटी कंपनियों को स्थानीय कर्मचारियों को ज्यादा वेतन पर नियुक्त करना पड़ेगा।