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ब्रह्मोस मिसाइल खुद ही दुश्मन को ढूंढ करती है तबाह, 1998 से डॉ. अब्दुल कलाम से जुड़ी है कहानी

BrahMos Missile: रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में ब्रह्मोस एकीकरण और परीक्षण सुविधा केंद्र का वर्चुअल उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि 'यह मिसाइल भारत और रूस की टॉप डिफेंस टेक्नोलॉजीज का संगम है। ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में से एक कहा जाता है।

Author Edited By : Shabnaz Updated: May 12, 2025 10:20
BrahMos Missile

BrahMos Missile: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच, भारत की सिक्योरिटी सिस्टम की हर तरफ तारीफ हो रही है। भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान के हमलों को रोका है, उसको देखकर ही देश के सिक्योरिटी सिस्टम का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन दिनों भारत में ब्रह्मोस मिसाइल की काफी चर्चा हो रही है। जंग के हालात के बीच ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ब्रह्मोस को बनाने वाली एक यूनिट का उद्घाटन भी किया है, जो कि उत्तर प्रदेश में है। यानी कुछ ही समय बाद देश के पास ज्यादा ब्रह्मोस मिसाइल होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में ब्रह्मोस को सुरक्षा बेड़े में कब शामिल किया गया?

फायर एंड फॉरगेट

ब्रह्मोस मिसाइल ऐसी मिसाइल है, जिसे फायर एंड फॉरगेट के तौर पर जंग में यूज किया जाता है। फायर एंड फॉरगेट का मतलब होता है, इसे एक बार लॉन्च कर दो, तो बार-बार टारगेट के लिए इसे सेट नहीं करना पड़ता है। यह खुद ही अपने दुश्मन को खोजती है और शिकार करती है। इसे पानी, हवा और जमीन हर जगह से लॉन्च किया जा सकता है।

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ब्रह्मोस की कहानी कहां से शुरू हुई?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1980 के दशक से भारत के इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) ने न्यूक्लियर कैपेबल बैलिस्टिक मिसाइलों की अग्नि सीरीज बनानी शुरू कर दी। इसके केंद्रीय व्यक्ति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे। इस प्रोग्राम में कई मिसाइलें भी तैयार की गईं, जिनमें सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल आकाश, सतह से सतह पर मार करने वाली कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल नाग का नाम शामिल है।

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इसके बाद 1990 में भारत में पॉलिसी बनाने वालों ने सशस्त्र बलों को क्रूज मिसाइलों से लैस करने की सलाह दी। इसमें गाइडेड मिसाइलों को शामिल करने की बात कही गई, जो बैलिस्टिक मिसाइलों से अलग थीं। 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान उनका सफल उपयोग हुआ, जिससे इन मिसाइलों की जरूरत और भी ज्यादा साफ हो गई।

रूस के साथ किए साइन

फरवरी 1998 में रूस के साथ शुरुआती बातचीत के बाद मास्को में डॉ. अब्दुल कलाम और रूस के उप रक्षा मंत्री एन. वी मिखाइलोव ने एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए। आपको बता दें कि उस वक्त डॉ. अब्दुल कलाम रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख थे। इस समझौते के बाद DRDO और रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया के बीच एक जॉइंट वेंचर ब्रह्मोस एयरोस्पेस का गठन किया गया।

कैसे पड़ा ब्रह्मोस नाम?

ब्रह्मोस नाम ब्रह्मपुत्र और मोस्कवा नदियों के नामों को मिलाकर रखा गया है। इस इकाई की स्थापना सुपरसोनिक, हाई प्रिसिजन वाली क्रूज मिसाइल और इसके वेरिएंट के डिजाइन और निर्माण के लिए की गई। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसमें हिस्सेदारी की बात की जाए, तो भारत की 50.5 फीसदी और रूस की 49.5 फीसदी रही। मिसाइल का पहला सफल टेस्ट 12 जून, 2001 को ओडिशा के चांदीपुर तट पर किया गया।

दो स्टेज में करती है काम

ब्रह्मोस मिसाइल के दो स्टेज होते हैं, जिसमें ठोस प्रणोदक बूस्टर इंजन लगा होता है। पहले स्टेज की बात करें, तो मिसाइल को साउंड की रफ्तार से भी ज्यादा सुपरसोनिक रफ्तार पर लाता है और फिर अलग हो जाता है। लिक्विड रैमजेट का दूसरा स्टेज मिसाइल को फायर करता है, जो क्रूज चरण में साउंड की रफ्तार से तीन गुना ज्यादा रफ्तार से आगे बढ़ाने का काम करता है। लिक्विड रैमजेट एक एयर-ब्रीदिंग जेट इंजन है, जो लिक्विड ईंधन का इस्तेमाल करता है। इसे हाई-स्पीड एयरस्ट्रीम में इंजेक्ट किया जाता है।

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First published on: May 12, 2025 10:20 AM

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