---विज्ञापन---

देश

Bharat Band: कर्जमाफी… लेबर कोड, 25 करोड़ कर्मचारियों का ‘भारत बंद’ आज, सरकार के सामने रखीं ये 10 मांग

भारत बंद 2025 के तहत पूरे देश में हड़ताल बुलाई गई है, जिसमें 25 करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं। यह बंद 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा बुलाया गया है, जिसे किसान संगठनों और ग्रामीण श्रमिक समूहों का भी समर्थन प्राप्त है। पढ़ें भारत बंद का असर किस-किस सेक्टर पर देखने को मिला सकता है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Avinash Tiwari Updated: Jul 9, 2025 11:45
Bharat Band
आज भारत बंद का ऐलान

आज भारत बंद का ऐलान किया गया है, पूरे देश में केंद्रीय कर्मचारियों ने हड़ताल बुलाई है। इस बंद में प्रमुख सरकारी क्षेत्रों से जुड़े 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी हिस्सा लेने वाले हैं। भारत बंद का बुलावा 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा किया गया है। इन संगठनों को किसान संगठनों और ग्रामीण श्रमिक समूहों का भी समर्थन प्राप्त है।

कहां-कहां दिखेगा असर

बैंकिंग और बीमा सेवाएं, डाक संचालन, कोयला खनन, बिजली आपूर्ति, परिवहन, सार्वजनिक परिवहन पर इस भारत बंद का असर पड़ सकता है। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, प्राइवेट ऑफिस खुले रह सकते हैं।

---विज्ञापन---

बिहार पर टिकी हैं सबकी निगाहें

भारत बंद को लेकर बिहार में जमकर राजनीति हो रही है। भारत बंद को विपक्ष और महागठबंधन का समर्थन प्राप्त है। इसके साथ ही इस दौरान बिहार की राजधानी पटना में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी मौजूद रहने वाले हैं। वह तेजस्वी यादव के साथ इस भारत बंद में शामिल होने के लिए पटना पहुंच रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा वोटरों के वेरिफिकेशन की प्रक्रिया SIR को लेकर महागठबंधन ने बिहार पूर्ण बंद का ऐलान किया है और चक्का जाम की घोषणा की है।

बंद में कौन-कौन से संगठन शामिल?

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी), भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस, भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीआईटीयू), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), स्वरोजगार महिला एसोसिएशन (सेवा), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ), यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) इस भारत बंद में शामिल हैं।

---विज्ञापन---

क्यों हड़ताल पर गए कर्मचारी?

कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि ये हड़ताल उन नीतियों के विरोध में है, जिसे वे कॉर्पोरेट समर्थक, मजदूर विरोधी और किसानों तथा आम लोगों के लिए हानिकारक बताते हैं। वे चार श्रम कोड्स को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। संगठनों का आरोप है कि चार श्रम कानून सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों को कमजोर करते हैं, काम के घंटे बढ़ाते हैं, यूनियनों को बनाना या बनाए रखना कठिन बनाते हैं और कंपनियों को जवाबदेही से मुक्त बनाते हैं, इसके साथ नौकरी और वेतन को भी खतरे में डालते हैं। संविदाकरण और नौकरियों के निजीकरण का विरोध किया जा रहा है।

यूनियन नेताओं ने कहा है कि उनकी 17-सूत्री मांगों पर सरकार की ओर से कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं आई है। जिसमें नए संहिताओं को खत्म करने, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) को बढ़ाकर प्रति वर्ष 200 दिन का काम करना, पुरानी पेंशन योजना को बहाल ककरना, श्रमिकों के लिए सुरक्षा को मजबूत करने की मांग की है।

क्या है प्रमुख मांगे?

तमाम यूनियनों का आरोप है कि सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज कर रही है। वहीं, चार लेबर कोड को लेकर यूनियनों का कहना है कि ये हड़ताल के अधिकार को कमजोर करते हैं, काम के घंटे बढ़ाते हैं और कंपनियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। इसके साथ ही, ये ट्रेड यूनियनों की शक्ति को भी कमजोर करते हैं।

यूनियनों का कहना है कि क्या चार नए लेबर कोड लागू करने से यूनियनों को नुकसान होगा और काम के घंटे बढ़ेंगे? क्या सरकार संविदा नौकरियों और निजीकरण को बढ़ावा दे रही है? क्या पब्लिक सेक्टर में अधिक भर्ती और वेतन वृद्धि की मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है? क्या युवा बेरोजगारी से निपटे बिना ही कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने की पेशकश की जा रही है?

इसके साथ ही ट्रेड यूनियनों का कहना है कि बिजली वितरण और उत्पादन को निजी हाथों में देने से नौकरियों की सुरक्षा और वेतन की गारंटी खत्म हो जाएगी। इसके अतिरिक्त, सरकार पर नई भर्तियों को रोकने और युवाओं को रोजगार न देने के आरोप भी लगाए गए हैं। यूनियन ₹26,000 मासिक न्यूनतम वेतन तय करने और पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग कर रही हैं।

 

First published on: Jul 09, 2025 07:44 AM

संबंधित खबरें