Aligarh Muslim University: सुप्रीम कोर्ट में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर एक केस पर सुनवाई चल रही है। कोर्ट के सात जजों की बेंच के सामने AMU और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को चैलेंज किया है। कोर्ट ने साल 2006 में अपने एक निर्णय में यह माना था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसके अलावा इस फैसले में यूनिवर्सिटी में अल्पसंख्यक छात्रों के लिए पोस्ट ग्रेजुएट में 50% रिर्जवेशन को कैंसिल कर दिया गया था।
साल 1920 गठन के दौरान एएमयू ने खुद छोड़ा था अल्पसंख्यक का दर्जा
केंद्र सरकार एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध कर रही है। सरकारी वकील के अनुसार साल 1920 में एएमयू ने खुद से ही यह दर्जा छोड़ा था। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि गठन के दौरान एएमयू ने अपना अल्पसंख्यक दर्जा छोड़ दिया था। अगर उसे यह दर्जा चाहिए था वह उसे बरकरार रख सकता था, जैसे दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज और जामिया मिल्लिया इस्लामिया संस्थानों ने किया था। बता दें अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है। आने वाले समय में अदालत अल्पसंख्यक के दर्जे पर अपना निर्णय देगी।
सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की कुछ खास बातें
- साल 1920 में ब्रिटिश रूल के तहत AMU का गठन हुआ था।
- ब्रिटिश पार्लियामेंट पॉलिसी के तहत कोई भी यूनिवर्सिटी नॉन कॉम्यूनल होगी और उस पर सरकार का पूरा कंट्रोल होगा।
- सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने आया कि एएमयू गठन के बाद अब नए कानून से नई संस्था बनी है और पुरानी संस्था खत्म हो गई।
- कोर्ट ने नए कानून के तहत यूनिवसिर्टी से सवाल किया था कि अगर उन्हें सरकारी सहायता चाहिए तो उन्हें अपना अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं छोड़ना था।
- सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक निर्णय को चुनौती दी गई है। जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना गया है।