World Asthma Day 2025: अस्थमा एक गंभीर रेस्पिरेटरी डिजीज है। यह बीमारी सांसों से जुड़ी होती है, जिसमें मरीज को सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है। हालांकि, ऐसा कुछ स्थितियों में होता है, जैसे कि अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर जाने से, धुएं और धूल-मिट्टी के संपर्क में रहने से। आपको बता दें कि भारत भी इस गंभीर अस्थमा संकट से जूझ रहा है। देश में 3 करोड़ 43 लाख से ज्यादा अस्थमा के मरीज हैं, जो कि दुनिया भर के मामलों का करीब 13 फीसदी है। चिंता की बात यह है कि अस्थमा से होने वाली सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं, करीब 46 फीसदी। यह दर्शाता है कि देश में अस्थमा को लेकर जागरूकता की भारी कमी है और इसका सही ढंग से प्रबंधन नहीं हो रहा।
क्या है अस्थमा?
अस्थमा एक पुरानी फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें वायुमार्ग (एयरवेज़) में सूजन आ जाती है और वे संकुचित हो जाते हैं। इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। Global Burden of Disease (GBD) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अस्थमा से होने वाली मृत्यु दर वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना ज्यादा है और इससे होने वाला जीवन गुणवत्ता में नुकसान भी दोगुना है।
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बढ़ता प्रदूषण बना बड़ा खतरा
भारतीय शहरों में लगातार खराब होती वायु गुणवत्ता स्थिति को और भी गंभीर बना रही है। प्रदूषण अस्थमा के अटैक को ट्रिगर करता है और लक्षणों को और बिगाड़ देता है। डॉ. विक्रमजीत सिंह, सीनियर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, आकाश हेल्थकेयर के अनुसार, अस्थमा अटैक जानलेवा हो सकता है। समय पर इलाज से मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं।
अस्थमा को लेकर फैली गलतफहमियां
अस्थमा को लेकर कई भ्रांतियां लोगों में फैली हैं। एक आम धारणा है कि अस्थमा सिर्फ बच्चों को होता है और बड़े होने पर यह ठीक हो जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि अस्थमा रोगियों को व्यायाम नहीं करना चाहिए। जबकि डॉ. सुष्रुत गनपुले, चेस्ट मेडिसिन, ज्यूपिटर हॉस्पिटल, पुणे के अनुसार, नियमित शारीरिक गतिविधि अस्थमा मरीजों के लिए फायदेमंद होती है। यह फेफड़ों की क्षमता और शरीर की सेहत को बेहतर बनाती है।
अस्थमा से बचने के लिए शुरुआती पहचान जरूरी
डॉ. गनपुले कहते हैं कि अगर शुरुआती लक्षणों को पहचान लिया जाए और एक स्पष्ट एक्शन प्लान हो, तो गंभीर हमलों से बचा जा सकता है। अस्थमा के शुरुआती संकेत:
- सांस लेने में तकलीफ होना।
- घरघराहट जैसी आवाजें आना।
- सीने में जकड़न होना।
- रात को या ठंडी हवा में खांसी आना।
- सांस न लेने पर थकान महसूस करना।
जल्द जांच और तकनीक से मदद
भारत में अस्थमा से निपटने के लिए सबसे जरूरी है, समय रहते जांच और सही निदान। कई मरीजों की बीमारी का समय पर पता नहीं चल पाता या वे गलत उपचार के शिकार हो जाते हैं, जिससे इलाज में देरी होती है और जोखिम भी बढ़ता है। डॉ. मानव मनचंदा, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के डायरेक्टर एवं हेड, एशियन अस्पताल कहते हैं कि भारत जैसे देश में, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं, वहां मोबाइल आधारित स्क्रीनिंग टूल्स एक व्यवहारिक समाधान हो सकते हैं।
विश्व अस्थमा दिवस 2025 की थीम
“Make Inhaled Treatments Accessible for ALL” यानी “इनहेल्ड इलाज को सभी के लिए सुलभ बनाना”। इस थीम के तहत जरूरी है कि हर व्यक्ति को सही इलाज मिल सके, खासकर इनहेलर दवाएं जो कि अस्थमा नियंत्रण में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं।
तकनीक और इलाज, दोनों जरूरी
डॉ. आकार कपूर, सीईओ, सिटी एक्स-रे और स्कैन क्लिनिक प्राइवेट लिमिटेड कहते हैं, सिर्फ लक्षणों को नियंत्रित करने से काम नहीं चलेगा। जरूरी है कि अटैक होने से पहले ही बीमारी को रोका जाए। इसके लिए शुरुआती जांच, इलाज और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बेहद जरूरी है। मोबाइल ऐप्स और डिजिटल टूल्स के जरिए अस्थमा का प्रबंधन अब और आसान, सुलभ और असरदार बनाया जा सकता है।
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