Women Health and Autoimmune Diseases: हमें कई बीमारियों से बचाने में हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम काम करता है। हमारी इम्युनिटी शरीर में आने वाले किसी भी बाहरी चीज के खिलाफ लड़ती है। लेकिन कई बार अपने ही शरीर की सेल्स पर भी हमला कर देती है, इस स्थिति को ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Diseases) कहा जाता है। इसके चलते जोड़ों में दर्द, सूजन, रैशेज होना, थकान होना, बुखार, बेचैनी होना आदि परेशानियां हो सकती हैं। ऑटोइम्यून की बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में देखी जाती है। इस बीमारी के लक्षणों से लेकर रोकथाम तक के बारे में बता रहे हैं Bhagat Chandra Hospital, Delhi से Dr. Manish Jain, Consultant Neonatology।
किन लोगों को ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा
ऑटोइम्यून बीमारियों में हेरेडिटरी अहम रोल निभाती है। अगर आपकी फैमिली में किसी को भी किसी बी प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी है तो आपको भी ये बीमारी हो सकती है। जेनेटिक फैक्टर के साथ ही पर्यावरणीय (environmental) कारण से भी इस बीमारी का खतरा है। ऑटोइम्यून बीमारी का खतरा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होता है।
डॉ. नंदिता शाह के साथ ऑटो इम्यून रोग, कारण और उपचार जानें इस Video में-
महिलाओं को इससे क्यों खतरा है
डॉ. मनीष जैन बताते हैं कि पुरुषों के मुकाबले में, महिलाओं में संक्रामक बीमारी के होने का चांस कम होता है, लेकिन उन्हें ऑटोइम्यून बीमारियों का जोखिम ज्यादा होता है। इसके पीछे क्रोमोसोम (Chromosome) जिम्मेदार होते हैं। एक्स क्रोमोसोम (X Chromosome), जिसमें इम्यून सिस्टम से जुड़ी कई जीन मौजूद रहते हैं, जो थोड़ा ही जिम्मेदार होते हैं। महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम (2 X Chromosome) होते हैं, लेकिन उनमें ऑटोइम्यूनिटी होने का खतरा ज्यादा होता है।
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महिलाएं एक्स लिंक्ड हेरेडिटरी बीमारियों से इम्यून्ड होती हैं। जब तक किसी महिला के पास 1 एक्स क्रोमाजोम पर जीन की हेल्दी कॉपी मौजूद रहती है, तब तक दूसरे एक्स क्रोमोसोम पर गलत जीन होने के बाद भी महिलाओं को कोई भी लक्षण महसूस नहीं होते हैं।
ऑटोइम्यून रोग उपचार कैसे करें, जानें Dr.Hemant sharma की इस Video के जरिए-
यही कारण है कि महिलाएं अक्सर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा टाइम तक जिंदा रहती हैं। लेकिन दो एक्स गुणसूत्र ऑटोइम्यून डिसऑर्डर की संभावना को बढ़ाते हैं। इससे जेनेटिक म्यूटेशन (Genetic Mutation), डिलीशन (Deletion) या डुप्लीकेशन (Duplication) के चांस बढ़ जाते हैं। इससे जीन प्रोडक्ट फंक्शन और जीन एक्सप्रेशन लेवल में चेंज आ जाता है। इसलिए महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
ऑटोइम्यून डिजीज से क्या हो सकता है
ऑटोइम्यून डिजीज के 80 से भी ज्यादा प्रकार होते हैं। आमतौर पर इससे रयूमेटायड अर्थराइटिस, सोरायसिस, सोरायटिक अर्थराइटिस, ल्यूपस जैसी बीमारियां होती हैं। कुछ महिलाओं में इसके लक्षण बहुत ज्यादा दिखते हैं, तो कुछ में बहुत कम। जेनेटिक्स, एनवॉयरमेंट और निजी स्वस्थ की वजह से ऐसा होता है।
महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारी का निदान, देखें इस Video में-
ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान कैसे करें
ऑटोइम्यून बीमारी के बारे में पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री की जानकारी लेते हैं। फिजिकल एग्जामिनेशन करते हैं और ब्लड में ऑटोएंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए खून की जांच भी करवाते हैं।
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ऑटोइम्यून बीमारी होने पर क्या खाएं
- अनाज में पुराना चावल, जौ, मक्का, राई, गेहूं, बाजरा और दलिया का सेवन करें।
- दाल में मूंग की दाल, मसूर की दाल और काली दाल खानी चाहिए। इसके अलावा मटर और सोयाबीन भी फायदेमंद है।
- फल और सब्जियों में पपीता, सेब, अमरूद, चेरी, जामुन, एप्रिकोट, आम, तरबूज, एवोकाडो, अनानास, केला, परवल, लौकी, तोरई, कद्दू, ब्रोकली का सेवन करना चाहिए।
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