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Spinal Muscular Atrophy कितनी खतरनाक? जिसका इलाज केवल 17 करोड़ का टीका

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी एक प्रकार का जेनेटिक डिसऑर्डर होता है जो मरीज के नर्व सेल्स और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाता है। यह खतरनाक बीमारी होती है, जो समय पर इलाज न मिलने की वजह से मरीज की जान भी ले सकती है, लेकिन इसका इलाज उतना आसान भी नहीं होता है जितना की कोई और बीमारी। आइए विस्तार से जानते हैं इस बीमारी और इसके इलाज के बारे में।

Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: Mar 31, 2025 11:58
Baby Genetic Traits

जेनेटिक्ल डिसऑर्डर्स कई बार इतने गंभीर हो जाते हैं कि उनसे बचन लगभग नामुमकिन महसूस होता है। स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी भी इनमें से एक दुर्लभ बीमारी है। इस जेनेटिक डिसऑर्डर से बचाव के लिए एक इंजेक्शन की जरूरत होती है, जो कि किसी भी आम इंसान की जेब पर जिंदगी भर का बोझ डाल सकता है। जी हां, इस बीमारी से बचने के लिए इंजेक्शन दिया जाता है, जिसकी कीमत 17 करोड़ बताई जा रही है। यह बीमारी बच्चे को जन्म से ही होती है, कई बार इसके लक्षण पैदा होने के बाद ही दिख जाते हैं और कभी-कभी 6 से 7 महीने बाद दिखाई देते हैं। इस बीमारी में मरीज या यूं कहें कि बच्चे के नर्वस सिस्टम और मांसपेशियों पर प्रभाव डालता है। रिपोर्ट्स बताती है कि 10,000 नवजातों में से एक नवजात को यह दुर्लभ रोग होता है। भारत में इसके आंकड़े हर 38 में से एक बच्चे में होने के हैं। SMA की पहचान समय पर होना जरूरी है ताकि इलाज शुरू किया जा सके। समय पर सही उपचार मिलने से ही इस बीमारी से जान बचाई जा सकती है।

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

अद्वैत एक मासूम बच्चा जो इस वक्त इस गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। उसकी मां बताती हैं कि उनके बच्चे में लक्षण पैदा होने के कुछ समय बाद दिखाई दिए थे। उनका बच्चा क्रॉल करने लगा था लेकिन अचानक उसकी क्रॉलिंग की स्पीड धीमी हो गई, जिसके बाद जांच करवाने पर पाया गया कि बच्चे को SMA हुआ था। एसएमए के भी 2 प्रकार होते हैं।- SMA-1 और SMA-2। न्यूज 24 से खास बातचीत में मौजूद डॉक्टरों के पैनल ने इस बीमारी के बारे में विस्तार से विश्लेषण किया है। इस पैनल में एम्स की डॉक्टर शेफाली गुलाटी, डॉक्टर शंकर आचार्य और सर गंगा राम अस्पताल की डॉक्टर सुनीता बिजरानी शामिल थीं।

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क्यों होती है यह बीमारी?

डॉक्टर शेफाली बताती हैं कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी एक मस्कुलर डिजीज है, जो जेनेटिक डिसऑर्डर है। इस बीमारी में कोई भी शुरुआती लक्षण जन्म के समय नहीं दिखाई देते हैं। जन्म के बाद बच्चे की रीढ़ की हड्डी के मोटर न्यूरॉन धीरे-धीरे डैमेज होने लगते हैं। इस बीमारी की पहचान बिना जांच के कर पाना मुश्किल होता है। SMA-0 स्टेज के लक्षणों के बारे में कुछ हफ्तों के अंदर-अंदर ही पता चल जाता है और ऐसे बच्चे 6 महीने तक भी जिंदा नहीं रह पाते हैं। स्टेज 1 के मरीजों को 6 महीने के अंदर इस बीमारी के बारे में पता चलता है, जिसमें बच्चे के हाथ-पैर ढीले महसूस होते हैं, उसे सांस लेने में मुश्किल होती है और जांच के बाद पुष्टि होती है। इस प्रकार को सबसे गंभीर माना जाता है और इसमें बच्चा 2 साल से अधिक जिंदा नहीं रहता है। टाइप-3 वाले बच्चों को यह लक्षण देर से, जब बच्चा खुद से चलने या बैठने लगता है, तब दिखाई देते हैं और टाइप-4 व्यस्कों में होता है, जिसमें उम्र बढ़ने पर मांसपेशियों में कमजोरी के लक्षण दिखते हैं। इस बीमारी के होने का कारण बच्चे के माता-पिता के शरीर में कैरियर फ्रीक्वेंसी का ज्यादा होना है। लोगों को कैरियर फ्रीक्वेंसी के बारे में जानकारी नहीं होने से भी इस बीमारी के होने का रिस्क बढ़ता है।

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ट्रीटमेंट क्यों इतना महंगा?

डॉक्टर सुनीता बताती हैं कि इस बीमारी का इलाज मौजूद है। इसमें जीन थेरेपी दी जाती है। अद्वैत को भी इस थेरेपी की जरूरत है। इसका इलाज भी जीन थेरेपी होती है। इस थेरेपी में एक जीन को वायरस की तरह तैयार करके शरीर में पहुंचाया जाता है। इसमें भी सिर्फ उम्मीद लगाई जाती है कि यह वायरस नर्व सेल्स तक पहुंचकर अपना काम कर पाएगा या नहीं। कई बार 1 इंजेक्शन भी बच्चे के लिए पर्याप्त होता है, लेकिन कई बार एक से ज्यादा भी किसी काम नहीं आता है। इसका इंजेक्शन 17 करोड़ का होता है, इसलिए हर माता-पिता इसे अफोर्ड भी नहीं कर सकते हैं। जीन थेरेपी एक बार दी जाती है, लेकिन बाकी थेरेपी को कंटिन्यू करवाना पड़ता है ताकि जान बचाई जा सके। साथ ही, अगर बिल्कुल शुरुआती दिनों में इंजेक्शन मिल जाए तो बच्चे की जान बचाना ज्यादा आसान होता है। देरी से इलाज या बीमारी के लंबे समय बित जाने के बाद इसे देने का लाभ नहीं मिलता है।

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Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले विशेषज्ञों से राय अवश्य लें। News24 की ओर से जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है।

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Edited By

Namrata Mohanty

First published on: Mar 31, 2025 11:58 AM

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