Caring for your demanding puppy becoming frustrating: घर में puppy को लाना एक नई खुशी लाता है। घर में बच्चे के जन्म के साथ पप्पी को लाना इन दिनों ट्रेंड में है। लेकिन कुत्ते के बच्चे को शुरुआती दिनों में पालना लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है। दरअसल, एक मेडिकल जर्नल में पब्लिश स्टडी के मुताबिक (npj Mental Health Research) पप्पी को पालने वाले लोगों में पप्पी लाने के शुरुआती करीब छह महीनों में चिंता, निराशा और थकावट जैसे लक्षण देने गए हैं।
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साइंटिफिक लैंग्वेज में इस बीमारी को कहते हैं ‘Puppy Blues’
स्टडी के अनुसार जानवरों के डॉक्टर इसे बीमारी या लक्षण को साइंटिफिक लैंग्वेज में puppy blues कहते हैं। इसमें अपने पप्पी की केयर करने, उसे समय से खाना देने, उसके सोने और नहाने आदि का ध्यान रखने को लेकर उसका मालिक इतना संवेदनशील हो जाता है कि खुद को पप्पी को पालने की काबिलियत तक पर शक करने लगता है। जिससे उसका मूड स्विंग होने है और उसमें चिंता, निराशा और थकावट जैसे लक्षण आते हैं जो उसकी मानसिक सेहत पर बुरा असर डालते हैं।
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नींद की कमी और गंभीर मानसिक थकावट से जूझना पड़ा
स्टडी के अनुसार कुत्तों के मालिकों ने ये माना कि कुत्तों के पालने के दौरान शुरुआती छह महीने बेहद चुनौतीपूर्ण रहे। अपने पप्पी की सेहत को लेकर उनके मन में कई बार तनाव, निराश, थका हुआ होने और पछतावे जैसे भाव आए। वहीं, शुरुआत में छोटा होने के चलते पप्पी की 24 घंटे केयर करनी पड़ती थी। उसके नहाने, खाने के समय और तबीयत का ज्यादा ध्यान रखना पड़ता था। जिससे उन्हें नींद की कमी और गंभीर मानसिक थकावट से जूझना पड़ा। इसके अलावा लोगों में अपने कुत्तों की ठीक से देखभाल करने में असमर्थ होने जैसे भाव आए।
मानसिक सेहत पर हुए ये बदलाव अस्थायी थे
स्टडी में आगे ये स्पष्ट किया गया कि लोगों की मानसिक सेहत पर हुए ये बदलाव अस्थायी थे। कुछ हफ्ते या महीनों के बाद जैसे-जैसे पप्पी के खानपान की आदतें, सोने और डेली रूटीन में बदलाव आए तो उनके मालिक का मूड स्विंग भी अपने आप ठीक हो गया।
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