Gestational Diabetes during Pregnancy Causes in Hindi: मां बनना हर महिला का एक सपना होता है। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि अपने होने वाले बच्चे का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। इस दौरान गर्भवती महिलाओं को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। शारीरिक बदलावों के अलावा उनमें कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिसके कारण वो डायबिटीज की भी चपेट में आ सकती हैं।
प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबिटीज को क्या कहा जाता है? ये कैसे शिशु को भी प्रभावित करता है और हार्मोनल परिवर्तन क्यों होते हैं? News24 Hindi से बातचीत के दौरान सर गंगाराम हॉस्पिटल की वाइस प्रेसिडेंट और आंतरिक चिकित्सा विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर पूजा खोसला (Dr Pooja Khosla) ने इससे जुड़े कई सवालों के जवाब दिए हैं।
गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन क्यों होते हैं?
वरिष्ठ सलाहकार डॉ पूजा खोसला के अनुसार एक गर्भवती महिला में प्लेसेंटा (placenta) बच्चे को बढ़ने में मदद करने के लिए हार्मोन का उत्पादन करता है। ये हार्मोन आपके शरीर में इंसुलिन की क्रिया को भी ब्लॉक करते हैं। इसे इंसुलिन प्रतिरोध के रूप में जाना जाता है। सामान्य गर्भावस्था में, अगर आप गर्भवती हैं तो आपका शरीर 2 से 3 गुना ज्यादा इंसुलिन बनाएगा। अगर किसी में इंसुलिन प्रतिरोध है, तो उसका शरीर इंसुलिन की इस अतिरिक्त जरूरतों का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकता है। इससे प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं में डायबिटीज हो सकता है।
क्या है प्रेग्नेंसी में होने वाली डायबिटीज?
प्रेगनेंसी के दौरान महिला में होने वाले डायबिटीज को गर्भावधि मधुमेह यानी जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। आमतौर पर इसके होने का कारण हार्मोनल परिवर्तन हो सकता है। ऐसे में गर्भवती महिला को अपना खास ख्याल रखना चाहिए।
क्या है जेस्टेशनल डायबिटीज?
गंगाराम की डॉ पूजा खोसला के अनुसार गर्भावधि मधुमेह यानी जेस्टेशनल डायबिटीज (What is Gestational Diabetes) एक प्रकार का मधुमेह है जो गर्भावस्था के दौरान शुरू होता है। ये गर्भावस्था में पहले से मौजूद मधुमेह से अलग है। जेस्टेशनल डायबिटीज का डायग्नोस आमतौर पर नियमित स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद प्रेगनेंसी के 24वें और 28वें सप्ताह के बीच किया जाता है।
क्या जेस्टेशनल डायबिटीज शिशु को भी प्रभावित करता है?
जेस्टेशनल डायबिटीज मैक्रोसोमिया या “मोटे” बच्चे का कारण बन सकता है। मैक्रोसोमिया से पीड़ित शिशुओं को खुद की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें जन्म के दौरान उनके कंधों को नुकसान भी शामिल है। बच्चे के पैंक्रियास द्वारा बनाए गए अतिरिक्त इंसुलिन के कारण, नवजात शिशु में जन्म के समय रक्त शर्करा का स्तर बहुत कम हो सकता है और सांस लेने में समस्या होने का खतरा भी अधिक होता है। अतिरिक्त इंसुलिन के साथ पैदा हुए बच्चों में मोटापे का खतरा और एडल्ट्स होने पर टाइप 2 डायबिटीज का खतरा होता है।