Shiva Temples of India: भगवान शिव का प्रिय महीना सावन इस साल 11 जुलाई से शुरू होगा। सावन के पावन माह में शिव भक्ति और पूजा का विशेष महत्व है। इस पवित्र महीने में किसी भी रूप में भगवान शिव का ध्यान लाभकारी माना गया है। इस महीने कुल 4 सोमवार पड़ हैं। वहीं इस साल कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से ही आरंभ हो जाएगी। आइए जानते हैं, एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में जहां दूध और गंगाजल की जगह एक विशेष जूस यानी रस से महादेव का अभिषेक होता है। यह विलक्षण मंदिर मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित हैं और यह अत्यंत प्राचीन है।
भगवान विष्णु ने की थी शिव पूजा
मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के बोधवाड़ा गांव में स्थित शिव मंदिर ‘देवपथ महादेव मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है। देवपथ महादेव मंदिर को श्री महायंत्र के रूप में निर्मित किया गया है, जबकि शिवलिंग के ऊपर गुंबद के आकार का रुद्र यंत्र स्थापित है। कहते हैं, यह मंदिर मनुष्यों द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं देवताओं द्वारा निर्मित किया गया था। मान्यता है कि जब देवताओं ने मां नर्मदा की परिक्रमा आरंभ की थी, उसी दौरान उन्होंने इस मंदिर का निर्माण भी किया। इसी कारण इस स्थान का नाम पड़ा, ‘देवपथ महादेव’। भगवान विष्णु ने भी इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। स्कंद पुराण, शिव पुराण और नर्मदा पुराण जैसे प्रमुख ग्रंथों में इस मंदिर का विशेष उल्लेख मिलता है।
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हर साल तिल-तिल बढ़ता है शिवलिंग
बोधवाड़ा के देवपथ महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की रचना विशेष और दुर्लभ है। यह शिवलिंग अष्टकोणीय है और 12 फीट ऊंचा है। इसमें से 10 फीट हिस्सा भूमिगत है, जबकि केवल 2 फीट का भाग ही बाहर दिखाई देता है। आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, यह शिवलिंग हर साल ‘तिल-तिल’ बढ़ता जाता है, जिसे भक्त चमत्कार मानते हैं।
गंगाजल नहीं, इस रस से होता है अभिषेक
इस मंदिर की एक अनोखी परंपरा यह भी है कि यहां शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल से नहीं, बल्कि गन्ने के रस से किया जाता है। विशेष रूप से महाशिवरात्रि और सावन के सोमवार के अवसर पर, जब भक्तगण पूरी श्रद्धा से गन्ने के रस से अभिषेक करते हैं, तो माना जाता है कि उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
रोट का अनूठा प्रसाद
महाशिवरात्रि पर यहां एक और रोचक परंपरा निभाई जाती है। विधिपूर्वक एक गड्ढे में आटे को सूत में लपेटा जाता है, फिर उसे कपड़े से ढंककर कंडे की आग में ‘रोट’ बनाया जाता है। रोट का मतलब विशालकाय रोटी से है। यह रोट अगली सुबह प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है। यह परंपरा भी मंदिर की विशेष पहचान बन चुकी है। एमपी इस मंदिर में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
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