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Explainer: भारत में शान से पकते हैं सरसों के तेल में पकवान, लेकिन US और यूरोप में है बैन; जानें अहम वजह

Why US And Europe Banned Mustard Oil  for Food Purpose : सरसों के तेल को एशियाई देशों में खाने में खूब पसंद किया जाता है, वहीं अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों के देशों में इसे बेहद खतरनाक माना जाता है। जानें दिलचस्प वजह...

Edited By : Balraj Singh | Updated: Dec 18, 2023 22:11
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एशिया के बहुत सारे देशों में खाने में सरसों के तेल का बड़े स्तर पर उपयोग होता है। भारत इनमें से एक देश है। दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों के बहुत से देशों में यह साफ तौर पर बैन है। वहां कोई सरसों के तेल का इस्तेमाल खाने में नहीं करता है। अब हर किसी के जेहन में सवाल उठेगा कि आखिर तिलहन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान रखते इस खाद्य पदार्थ में ऐसी कौन सी कमी है कि पश्चिम के देशों के लोग इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने से पहले हजार बार सोचे हैं। आज हम इसी कारण पर बात करेंगे।

ये है सरसों के तेल का ऐतिहासिक पहलू

दरअसल, सरसों का विकास मानव सभ्यता के साथ हुआ है। पाषाण युग में सरसों को एक महत्वपूर्ण मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसके बाद की विभिन्न मानवीय सभ्यताओं में भी सरसों को अलग-अलग तरह से अपने दैनिक जीवन में मनुष्य ने शामिल किया। रोमन सभ्यता में इसे टार्ट सॉस बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। फ्रांसीसी लोगों ग्रे पौपोन डिजॉन बनाकर इसे अपने जीवन में अहमियत दी। एक मसाले के रूप में उनकी प्रतिष्ठा के अलावा, सरसों के बीज में एक अद्वितीय संरचना वाला तेल होता है, जिसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन और खाना पकाने सहित कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

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सरसों के तेल के गुण और अवगुण

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सरसों के तेल में बहुत सारे औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं। यह शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में भी खासा मददगार है, लेकिन इसमें मौजूद इरुसिक एसिड की वजह से इसे बहुत से देशों में प्रतिबंधित भी कर दिया गया है। इस बारे में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो सरसों के तेल में इरुसिक एसिड की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है। यह एक तरह का फैटी एसिड है, जिसे सेहत के लिए ठीक भी नहीं माना जाता। इससे शरीर में वसा का संचय भी बढ़ जाता है। मेटाबॉलिज्म ठीक से नहीं हो पाने के चलते यह दिमाग की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाता है। जहां तक असर को पहचानने की बात आती है, मेमोरी लॉस इनमें से एक विकार है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका और कनाडा के अलावा यूरोपीय देशों ने अपने यहां सरसों के तेल के सेवन पर प्रतिबंध लगा रखा है।

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पाबंदी का क्षेत्र और विकल्प

हालांकि सरसों के तेल के त्वचा और बालों की देखभाल के फॉर्मूलेशन जैसे अन्य अनुप्रयोग इस प्रतिबंध की कैटेगरी में नहीं आते। संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में बेचे जाने वाले सरसों के तेल के सभी कंटेनरों पर केवल बाहरी उपयोग के लिए लेबल लगाया जाता है। अब बात आती है सरसों के तेल के विकल्प की तो अमेरिका और यूरोप दोनों ही महाद्वीपों में खाना पकाने के लिए लोग सरसों के तेल की जगह सोयाबीन के तेल का उपयोग करते हैं। सोयाबीन के तेल में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड होते हैं, जो कोलेजन को बढ़ावा देते हैं। सोयाबीन के तेल में विटामिन ई भी प्रचुर मात्रा में होता है, जो स्वस्थ त्वचा और बालों के लिए आवश्यक है। इससे शरीर में लचीलापन आता है और त्वचा अधिक कोमल हो जाती है। यह तेल मस्तिष्क के विकास में भी सहायक है और चेहरे की झुर्रियों को भी कम करता है।

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खतरा कम करने के लिए हुए ये प्रयोग

मौजूदा स्थिति जिन देशों में सरसों के तेल को मानव उपभोग के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है, वो इसमें सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। एंडरसन इंटरनेशनल कॉर्प के अनुसार इस तेल में इरुसिक एसिड सामग्री को कम करने के लिए अनुसंधान और विकास चल रहा है। कनाडाई शोधकर्ताओं ने 1950 के दशक में रेपसीड की एक कम-एरुसिक एसिड किस्म भी विकसित की। उन्होंने इसे कैनोला नाम दिया, जो कम एसिड वाले कनाडाई तेल का संक्षिप्त रूप है। एफडीए ने खाद्य सरसों के बीज के तेल के एक ब्रांड को मंजूरी दे दी है। यह ब्रांड स्पष्ट रूप से इरुसिक एसिड के निम्न स्तर के लिए पैदा की गई किस्म से तैयार किया गया है।

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Written By

Balraj Singh

First published on: Dec 18, 2023 08:54 PM

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