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मुगल और अंग्रेजों को कर्ज देने वाला ‘जगत सेठ’ कैसे एक गलती से हुआ कंगाल, बैंक ऑफ इंग्लैंड से भी ज्यादा थी दौलत

यह कहानी है, एक ऐसे शख्स की, जो ना कोई राजा या ना कोई शासक था, लेकिन इनके हस्ताक्षर पर मुगल सम्राट, बंगाल के नवाब और ताकतवर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी निर्भर करती थी। बताया जाता है कि इनकी दौलत उस समय के सबसे बड़े बैंक 'बैंक ऑफ इंग्लैंड' के समूचे खजाने से भी ज्यादा थी।

Author By: Aditya Author Published By : News24 हिंदी Updated: Dec 2, 2025 14:04

यह कहानी है भारत के एक धन्ना सेठ की। जिनके पास अकूत संपत्ति थी। बताया जाता है कि इनकी दौलत एक समय में बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूरे खजाने से भी ज्यादा थी। कहा जाता है कि इन्होंने मुगलों, नवाबों से लेकर अंग्रेजों तक सभी को कर्जा दिया था। इन्हें इतिहास ‘जगत सेठ’ के नाम से जानता है। इस शख्सियत का नाम था ‘फतेहचंद’ था। लेकिन एक दिन अचानक ये धन्ना सेठ सड़क पर आ गए, यानी कंगाल हो गए। आज हम बताएंगे वो कहानी कि इतना धनी शख्स अचानक कौनसी एक गलती की वजह से कंगाल हो गए।

बताया जाता है कि इनका परिवार मूल रूप से राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से ताल्लुक रखता था। ये एक मारवाड़ी जैन परिवार था। बिजनेस के लिए यह परिवार पहले पटना शिफ्ट हुआ। इसके बाद परिवार बिहार से मुर्शिदाबाद चला गया। मुर्शिदाबाद उस वक्त बंगाल सूबे की राजधानी हुआ करता था। परिवार की किस्मत फतेह चंद ने चमकाई। उन्हें बिजनेस और फाइनेंस की बेहद अच्छी समझ थी। जिसकी बदौलत वे जगत सेठ बनकर उभरे। ‘जगत सेठ’ की उपाधि उन्हें उस वक्त के मुगल बादशाह ने दी थी।

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कितनी थी दौलत?

बात 1700 के शुरुआती दशक की है। बताया जाता है कि उस वक्त यानी करीब 300 साल पहले उनकी रोजाना की कमाई 10 हजार रुपए थे। उस वक्त ये राशि कोई सामान्य नहीं थी। उनका घर एक सेंट्रल बैंक की तरह काम करता था। इनके घर से पूरे सूबे का कारोबार चलता था। इस परिवार के पास इतनी दौलत थी कि उसकी रखवाली के लिए करीब तीन हजार सैनिकों की सेना इस परिवार के पास थी।

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काम क्या करते थे?

  • फतेह चंद नवाब, जमींदार और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी समेत कई विदेशी कंपनियों को कर्ज देते थे।
  • ये सरकारी खजांची भी थे, जो लैंड-रेवेन्यू का कलेक्शन और खजाने का मैनेजमेंट संभालते थे।
  • इतना ही नहीं, ये बंगाल के नवाबों के टकसाल भी चलाते थे। यानी उनके सिक्के ढालने का काम करते थे।
  • इनका मुख्य कारोबार हुंडी का था। हुंडी का कारोबार आज के हवाला कारोबार जैसा था। इनकी हुंडियां विदेश में भी कबूल की जाती थी।

वो एक बड़ी गलती…

अब सवाल ये पैदा होता है कि आखिर इतना धनी शख्स, अचानक सड़क पर कैसे आ गया। उनकी एक गलती की वजह से वे कंगाली के रास्ते पर आ गए। यह गलती थी नवाब सिराज-उद-दौला के खिलाफ साजिश रचना। जब सेठ के नवाब से रिश्ते बिगड़े तो वे उनके विरोधियों से जा मिले। उनके विरोधियों में मीर जाफर और ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव शामिल थे। इन सबने मिलकर नवाब के खिलाफ साजिश रची, जिसकी वजह से 1757 में प्लासी की लड़ाई हुई। फतेह चंद ने इस लड़ाई में अंग्रेजों की पैसों से मदद की। इसके साथ ही उन्हें खुफिया जानकारी भी साझा की। प्लासी की लड़ाई में सिराज-उद-दौला की हार हो जाती है। फतेह चंद को लगा था कि अंग्रेज सत्ता में आ गए तो वो और ज्यादा मजबूत हो जाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और ये भी उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।

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फिर कंगाली और गुमनामी की ओर…

अंग्रेजों ने प्लासी का युद्ध जीत लिया था। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर शासन करना शुरू कर दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने जगत सेठ परिवार से धीरे-धीरे काम छीनना शुरू किया। सबसे पहले उस परिवार से सिक्के ढालने का काम छीन लिया। इसके बाद सूबे के खजाने का काम भी उनसे ले लिया. यानी खजानों के मैनेजमेंट में उनका रोल खत्म कर दिया। फिर राजधानी को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता शिफ्ट कर दिया गया। इसकी वजह से जगत सेठ परिवार का पूरा बिजनेस सिस्टम हिल गया।

इसके बाद यह परिवार धीरे-धीरे कर्ज में दबता चला गया। परिवार की पीढ़ियां फतेह चंद की विरासत को संभालने में नाकाम रही। बताया जाता है कि ईस्ट इंडिया के सत्ता में आने के बाद इस परिवार के हाथ से अपनी ज्यादात्तर जमीन चली गई। यह भी कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को इस परिवार ने जो भारी-भरकम कर्ज दिया था, वो भी कभी नहीं लौटाया गया।

First published on: Dec 02, 2025 11:30 AM

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