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BNP vs जमात… बांग्लादेश में किसकी सरकार होगी भारत के लिए अच्छी? जानें- तारिक रहमान की वतन वापसी के मायने

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, फरवरी में होने वाले आम चुनावों से पहले बीएनपी सबसे बड़ी दावेदार बनकर उभरी है.

Author Edited By : Arif Khan
Updated: Dec 27, 2025 12:14
तारिक रहमान 17 साल के निर्वासन के बाद 25 दिसंबर को ढाका लौटे हैं.

बांग्लादेश की राजनीति निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. 17 साल का निर्वासन खत्म कर तारिक रहमान की वतन वापसी दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक मानचित्र पर एक बड़े बदलाव का संकेत है. शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद, फरवरी में होने वाले आम चुनाव से पहले बीएनपी सबसे बड़ी दावेदार बनकर उभरी है. अब सब की नजरें इस पर टिकी हैं कि क्या तारिक रहमान का नेतृत्व भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा या पुरानी कड़वाहट बरकरार रहेगी.

दशकों तक भारत ने शेख हसीना के साथ एक अच्छे पार्टनर के रूप में साथ काम किया. लेकिन अगर बीएनपी की सरकार बनती है तो भारत को उसके साथ संबंध अच्छे बनाने होंगे. बीएनपी के साथ भारत के कभी भी संबंध मधुर नहीं रहे. हालांकि, भारत के लिए राहत भरी बात यह है कि तारिक रहमान ‘बांग्लादेश फर्स्ट’ की बात कर रहे हैं. इस दौरान वह दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों से समान दूरी बनाए रखने की बात कर रहे हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि बेशक तारिक रहमान की सरकार बनने से भारत को फायदा बेशक ना हो, लेकिन कोई खतरा भी नहीं रहेगा. क्योंकि वह पाकिस्तान के समर्थन में बिल्कुल नहीं दिख रहे हैं.

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अभी बीएनपी के खिलाफ कट्टरपंथी संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ है. यह संगठन भारत के खिलाफ आग तो उगलता ही है, साथ ही इसे पाकिस्तान की कठपुतली समझा जाता है. बीएनपी की सरकार बनने पर पाकिस्तान के नापाक मंसूबे कामयाब नहीं होंगे. वहीं, अगर ‘जमात-ए-इस्लामी’ की सरकार बनती है तो पाकिस्तान इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है.

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भारत को क्या चाहिए?

फरक्का जल संधि रिन्यु, आतंकवाद या व्यापारिक रिश्ते, जैसे मामलों के लिए भारत के लिए बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार होनी चाहिए, जो पड़ोसी की सुरक्षा चिंताओं को समझे. भारत के लिए व्यक्ति से ज्यादा अहम बांग्लादेश की स्थिरता है. एक चुनी हुई सरकार, चाहे वह तारिक रहमान की ही क्यों न हो, अराजकता और कट्टरपंथ से बेहतर विकल्प है. बांग्लादेश चुनाव को लेकर भारत का बयान भी आया है, जिसमें कहा गया है, ‘हम बांग्लादेश में आजाद, निष्पक्ष, सबको साथ लेकर चलने वाले और लोगों की भागीदारी वाले चुनाव चाहते हैं, जो शांतिपूर्ण माहौल में होने चाहिए.’

इस बयान से साफ जाहिर होता है कि भारत को क्या चाहिए. रहमान बांग्लादेश को एक ऐसे देश के रूप में देखते हैं जिसमें धार्मिक उग्रवाद के रास्ते पर ले जाने के बजाय सभी धर्मों के लोगों के लिए जगह और सुरक्षा हो.

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भारत-समर्थक अवामी लीग पर चुनाव लड़ने से बैन लगा दिया गया है. ऐसे में भारत के पास रहमान के नेतृत्व वाली बीएनपी को एक अधिक उदार और लोकतांत्रिक भागीदार के रूप में देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. क्योंकि दूसरी ओर पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त जमात है. जमात सिर्फ भारत विरोधी है और उसे सुरक्षा, कल्याण, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और अन्य कारणों की चिंता नहीं है जिनके बारे में तारिक रहमान ने बात की है.

देश में कानून-व्यवस्था के महत्व पर जोर देते हुए तारिक रहमान ने कहा, ‘हमें किसी भी कीमत पर इस देश में कानून-व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए, और हमें किसी भी उकसावे के सामने शांत और संयमित रहना चाहिए. युवा पीढ़ी के सदस्य, आप आने वाले दिनों में देश का नेतृत्व करेंगे और राष्ट्र का निर्माण करेंगे. युवा पीढ़ी के सदस्यों को आज यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि हम इस देश को एक मजबूत लोकतांत्रिक आधार और एक मजबूत आर्थिक आधार पर खूबसूरती से बना सकें.’

पीएम मोदी का ‘गुडविल गेस्चर’

हालांकि, शेख हसीना को शरण देने का भारत का फैसला रहमान और नई दिल्ली के बीच एक बड़ी राजनयिक बाधा बना हुआ है. लेकिन, दूसरी ओर पीएम मोदी का ‘गुडविल गेस्चर’ भी देखने को मिला. तारिक रहमान की मां और बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया कई दिनों से बीमार चल रही हैं. वह कई दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं. ऐसे में इस महीने की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खालिदा जिया के बिगड़ते स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त की और ‘हर संभव सहायता’ की पेशकश की. बीएनपी ने जवाब में मोदी के प्रति अपनी ‘हार्दिक कृतज्ञता’ और सद्भावना के भाव को व्यक्त किया.

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जमात में खलबली क्यों?

कट्टरपंथी इस्लामी समूह जमात-ए-इस्लामी, 2001-2006 के दौरान बीएनपी का सहयोगी रहा था, लेकिन अब आगामी आम चुनावों में उसका मुख्य प्रतिद्वंद्वी है. इस बार, बीएनपी ने जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI) के साथ गठबंधन का ऐलान किया है. जेयूआई कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी से अलग है, और भले ही दोनों इस्लामी पार्टियां हैं, लेकिन उनकी विचारधाराएं अलग हैं. जेयूआई का फोकस धार्मिक विद्वानों और पारंपरिक इस्लामी कानून पर है. जबकि जमात-ए-इस्लामी का मकसद इस्लामी देश बनाने पर है.

वहीं, दूसरी ओर जमात, नेशनल सिटीजन्स पार्टी (NCP) – के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है. सीटों के बंटवारे को लेकर भी दोनों पार्टियों में बातचीत हुई है.

जमात ने तारिक रहमान पर भी भारत का पक्षधर होने का आरोप लगाया है. जमात-ए-इस्लामी से जुड़े वकील शहरयार कबीर ने आरोप लगाया कि तारिक रहमान बांग्लादेश लौटकर ‘अपने पिता के साथ विश्वासघात’ कर रहे हैं और ‘भारत की शर्तों को स्वीकार’ कर रहे हैं.

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जब तारिक रहमान 17 साल बाद बांग्लादेश लौटे तो लाखों की संख्या में समर्थक उनके स्वागत में ढाका की सड़कों पर उतर आए. जिस शेख हसीना की सरकार गिराई गई थी, जिसकी मुख्य विरोधी के रूप में बीएनपी ही उभर कर आई है. बेशक शेख हसीना को सत्ता से हटवाने में जमात की भूमिका अहम रही. लेकिन उसका क्रेडिट जमात नहीं उठा पाई. अब फरवरी में होने वाले चुनाव केवल जमात और बीएनपी के बीच होंगे. लेकिन बीएनपी काफी पीछे छूटती नजर आ रही है. अमेरिका की एक संस्था ने सर्वे भी किया था. सर्वे में दिखाया गया था कि आगामी चुनाव में बीएनपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर आ सकती है.

First published on: Dec 27, 2025 12:14 PM

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