अश्विनी कुमार: ‘छावा’ की कामयाबी ने साबित किया है कि अगर भारत के वीरों की कहानियां को, जिन्हें इतिहास ने भुला दिया या जिन्हें किताबों में जगह नहीं मिली, उनके शौर्य और बलिदान की कहानियां सही तरीके से दिखाई जाएं तो लोग उन्हें सिर-माथे पर लेते हैं। प्रथम ज्योतिर्लिंग- सोमनाथ मंदिर को मुगल सुल्तान मुहम्मद तुगलक के सूबेदार जफर खान की हजारों की सेना से बचाने की कोशिश में बलिदान हुए वीर हमीर गोहिल जी की शौर्य गाथा एक ऐसी ही कहानी है। इसे गुजरात में लोक-गीतों तक में सुनाया जाता रहा है। वीर हमीर जी की कहानी को इतिहास से रूबरू करवाने का इरादा लिए ‘केसरी वीर’ का ट्रेलर देखकर लगा कि ‘छावा’ का जादू वापस छाएगा और साथ में सूरज पंचोली का सूरज चमकने लगेगा लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पाया?
केसरी वीर की कहानी
एक लंबे-चौड़े डिस्क्लेमर के साथ ‘केसरी वीर’ की शुरुआत होती है, जिसमें ये बताया जाता है कि वीर गोहिल जी की कहानी को दिलचस्प बनाए रखने के लिए थोड़ी सिनेमैटिक लिबर्टी ली गई है। इसके बाद 2 घंटे 41 मिनट की फिल्म शुरू होती है, जिसके पहले सीन से ही मुगलों के चंगुल से कुछ बच्चियों को बचाने के दौरान जबरदस्त एक्शन सीक्वेंस आता है और राजल और वीर हमीर जी का आमना-सामना कर दिया जाता है। वीर हमीर गोहिल की कहानी पढ़े-सुने लोगों को यहीं से पता चल जाएगी कि उनकी सुनी-कही जाने वाली कहानी का रुख बदल गया है। हालांकि जब जफर खान की वहशियत को दिखाया जाता है तो आप फिर से कहानी से जुड़ जाते हैं और उम्मीद बंधती है कि राजपूत राजाओं को दौलत और इज्जत दोनों छीनने वाले, इस मुगल वहशी सेनापती के खिलाफ, केसरी वीर खड़ा होगा। मगर तीसरे सीन में भील सरदार वेगड़ा जी को साहसी, बलशाली और हौसले मंद शिव भक्त साबित करने की कोशिश में डायरेक्टर और राइटर ने शिवलिंग खंडित करने और बचाने का जो पूरा एक्शन दिखाया, वो देखकर आप सिर पकड़ लेते हैं।
ये सिलसिला पूरी फिल्म में जारी रहता है, हमीर जी का भाभी से दुलार, राजल के सात हमीर जी के प्यार को दिखाने के लिए रचा गया रोमांटिक ट्रैक, आदिवासी भील सरदार के उत्सव में अफ्रीकन कबीला डांस दिखाने की गलती, हमीर जी का मां के साथ रिश्ता दिखाने के लिए भारत वर्ष विश्वगुरु वाला जबरदस्ती का गाना, और क्लाइमेक्स के दौरान जफर खान और हमीर जी की लड़ाई के खूनी लम्हे के बीच, मां का इमोशनल ट्रैक घुसा देने का एक्सपेरिमेंट बहुत ज्यादा खलता है। जहां-जहां फिल्म हमीर जी की असली कहानी पर आई है, वहां-वहां आप जुड़ते हैं। जफर खान और हमीर जी का जब-जब सामना होता है, फिल्म से आप जुड़ जाते हैं और प्रोड्यूसर कनू भाई, जो इस फिल्म के को-राइटर भी हैं और को-डायरेक्टर भी, राइटर क्षितिज श्रीवास्तव के साथ जहां-जहां रोमांस, ड्रामा और इमोशन को ऐड करने के लिए सिनेमैटिक लिबर्टी ली है, फिल्म हाथ से फिसलती चली गई है। सोमनाथ मंदिर में शिवरात्रि के दौरान हुए हमले और क्लाइमेक्स में मुगल फौज के साथ वीर हमीर जी और उनके जख्मी साथियों का युद्ध आपके रोंगटे खड़े कर देता है। हालांकि फिर जफर खान को धड़-विहीन वीर हमीर जी की तलवार का आकार लगना, इतिहास के साथ कुछ ज्यादा ही सिनेमैटिक लिबर्टी है।
सिनेमैटोग्राफी और विजुअल्स
फिल्म के विजुअल इफेक्ट्स अच्छे हैं, लेकिन डायरेक्टर प्रिंस धीमान ने अपने सीरियल वाले बैकग्राउंड के चक्कर में हर सीन को बाहुबली का माहिष्मती जैसा दिखाने की कोशिश में कुछ ज्यादा ही एरियल व्यू दिखा दिए हैं। इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, यानी भील सरदार वेगड़ा जी के ऊपर गिरे पहाड़ के पत्थरों वाले सीक्वेंस के दौरान, वहां आर्ट डिपार्टमेंट के नकली पत्थरों को ढका भी नहीं। युद्ध के सीन को अच्छे से फिल्माया गया है। क्लाइमेक्स आपको ‘छावा’ जैसा सिहराने का दम रखती है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। ‘केसरी बंधन’ और ‘शंभू हर-हर’ गाने भी अच्छे हैं और उन्हें फिल्माया भी बहुत अच्छे से गया है। काश फिल्म में जबरदस्ती डाले गए इमोशनल और रोमांटिक सीन्स को एडिट टेबल पर काट दिया जाता तो कम से कम केसरी वीर 35 मिनट छोटी होती और असरदार भी होती।
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स्टारकास्ट की एक्टिंग
केसरी वीर की सबसे बड़ी खासियत अगर कोई है तो इसके सितारे। वीर हमीर जी के किरदार को सूरज पंचोली ने वाकई अपने कमबैक की तरह लिया है और इसमें पूरी जान झोंक दी। एक्शन सीन्स में सूरज को देखकर लगता है कि कोई घायल शेर आ गया है। शरीर को तपाने से लेकर इमोशनल सीन्स तक में उनकी मेहनत दिखती है, लेकिन योद्धा के तौर पर सूरज को देखना आप सिहर जाते हैं। वेगड़ा जी बने सुनील शेट्टी ने अपने किरदार के साथ पूरी ईमानदारी बरती है। इमोशन और एक्शन दोनों ही सीन्स में परफेक्ट लगे हैं। जफर खान बने विवेक ओबेरॉय ने ऐसा खलनायक बनकर खुद को पेश किया है कि आप डरते भी हैं और उनसे नफरत भी करते हैं। न्यूकमर आकांक्षा शर्मा बेहद खूबसूरत लगी हैं और उनके एक्शन सीन्स भी कमाल के हैं। हां, अरुणा ईरानी और किरण कुमार का कैमियो बिल्कुल भी असरदार नहीं रहा। हमीर जी गोहिल की मां बनी बरखा बिष्ट का रोल इस फिल्म का सबसे कमजोर किरदार है।
‘केसरी वीर’ एक कमाल की फिल्म हो सकती थी, अगर इसमें रोमांस, इमोशनल सीन्स से सजाने की कोशिश नहीं की जाती। दो सौ सैनिकों की सेना लेकर जफर की हजारों की फौज को सोमनाथ मंदिर तक पहुंचने से 11 दिन तक रोकने वाले हमीर जी की कहानी को फिल्मी बनाने की कोशिश ही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।